Friday, 18 November 2016

बहराइच के पासी राजा सुहेलदेव

बहराइच के पासी राजा भगवान सूर्य के उपासक थे। बहराइच में सूर्यकुंड पर स्थित भगवान सूर्य के मूर्ति की वे पूजा करते थे। इसी वक़्त हज़ारों हज़ार हिंदुओं को काटते और मुसलमान बनाते सालार महमूद बहराइच तक आ धमका। जैसे ही पता चला पासी राजा सुहेलदेव ने युद्ध की तैयारी शुरू कर दी, अपने अधीनस्थ सभी सूबे के राजाओं को खबर भेज दी गयी।
सालार मसूद के बहराइच आने के समाचार पाते ही बहराइच के राजा गण – राजा रायब, राजा सायब, अर्जुन भीखन गंग, शंकर, करन, बीरबर, जयपाल, श्रीपाल, हरपाल, हरख्, जोधारी व नरसिंह महाराजा सुहेलदेव के नेतृत्व में लामबंद हो गये। ये राजा गण बहराइच शहर के उत्तर की ओर लगभग आठ मील की दूरी पर भकला नदी के किनारे अपनी सेना सहित उपस्थित हुए।
अभी ये युद्व की तैयारी कर ही रहे थे कि सालार मसूद ने उन पर रात्रि आक्रमण (शबखून) कर दिया। मगरिब की नमाज के बाद अपनी विशाल सेना के साथ वह भकला नदी की ओर बढ़ा और उसने सोती हुई हिंदु सेना पर आक्रमण कर दिया। इस अप्रत्याशित आक्रमण में दोनों ओर के अनेक सैनिक मारे गए लेकिन बहराइच की इस पहली लड़ाई मे सालार मसूद बिजयी रहा। पहली लड़ार्ऌ मे परास्त होने के पश्चात पुनः अगली लडाई हेतु हिंदू सेना संगठित होने लगी उन्होने रात्रि आक्रमण की संभावना पर ध्यान नही दिया।
उन्होने राजा सुहेलदेव के परामर्श पर आक्रमण के मार्ग में हजारो विषबुझी कीले अवश्य धरती में छिपा कर गाड़ दी। ऐसा रातों रात किया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि जब मसूद की धुडसवार सेना ने पुनः रात्रि आक्रमण किया तो वे इनकी चपेट मे आ गए। हालाकि हिंदू सेना इस युद्व मे भी परास्त हो गई लेकिन इस्लामी सेना के एक तिहायी सैनिक इस युक्ति प्रधान युद्ध मे मारे गए।
दो बार इस तरह से धोखे से सोते हुए में आक्रमण किये जाने से राजा सुहेल देव को इनकी असलियत समझ आ गयी थी। हिंदू सेना सचेत हो गई तथा महाराजा सुहेलदेव के नेतृत्व में निर्णायक लड़ाई हेतु तैयार हो गई। कहते है इस युद्ध में प्रत्येक हिंदू परिवार से युवा हिंदू इस लड़ार्ऌ मे सम्मिलित हुए। महाराजा सुहेलदेव के शामिल होने से हिंदूओं का मनोबल बढ़ा हुआ था। लड़ाई का क्षेत्र चिंतौरा झील से हठीला और अनारकली झील तक फैला हुआ था।
जून, 1034 ई. को हुई इस लड़ाई में सालार मसूद ने युद्ध शुरू होते ही सामने हजारो गायों व बैलो को छोड़ा गया ताकि हिंदू सेना प्रभावी आक्रमण न कर सके लेकिन महाराजा सुहेलदेव की सेना पर इसका कोई भी प्रभाव न पड़ा। वे भूखे सिंहों की भाति इस्लामी सेना पर टूट पडे मीर नसरूल्लाह बहराइच के उत्तर बारह मील की दूरी पर स्थित ग्राम दिकोली के पास मारे गए। सैयर सालार समूद के भांजे सालार मिया रज्जब बहराइच के पूर्व तीन कि. मी. की दूरी पर स्थित ग्राम शाहपुर जोत यूसुफ के पास मार दिये गए। इनकी मृत्य 8 जून, 1034 ई 0 को हुई।
अब भारतीय सेना ने राजा करण के नेतृत्व में इस्लामी सेना के केंद्र पर आक्रमण किया जिसका नेतृत्व सालार मसूद स्वंय कर कहा था। उसने सालार मसूद को धेर लिया। इस पर सालार सैफुद्दीन अपनी सेना के साथ उनकी सहायता को आगे बढे भयकर युद्व हुआ जिसमें हजारों लोग मारे गए। स्वयं सालार सैफुद्दीन भी मारा गया उसकी समाधि बहराइच-नानपारा रेलवे लाइन के उत्तर बहराइच शहर के पास ही है। शाम हो जाने के कारण युद्व बंद हो गया और सेनाएं अपने शिविरों में लौट गई।
10 जून, 1034 को महाराजा सुहेलदेव के नेतृत्व में हिंदू सेना ने सालार मसूद गाजी की फौज पर तूफानी गति से आक्रमण किया। इस युद्ध में सालार मसूद अपनी धोड़ी पर सवार होकर बड़ी वीरता के साथ लड़ा लेकिन अधिक देर तक ठहर न सका। राजा सुहेलदेव ने शीध्र ही उसे अपने बाण का निशाना बना लिया और उनके धनुष द्वारा छोड़ा गया एक विष बुझा बाण सालार मसूद के गले में आ लगा जिससे उसका प्राणांत हो गया।
इसके दूसरे हीं दिन शिविर की देखभाल करने वाला सालार इब्राहीम भी बचे हुए सैनिको के साथ मारा गया। सैयद सालार मसूद गाजी को उसकी डेढ़ लाख इस्लामी सेना के साथ समाप्त करने के बाद महाराजा सुहेल देव ने विजय पर्व मनाया और इस महान विजय के उपलक्ष्य में कई पोखरे भी खुदवाए। वे विशाल ”विजय स्तंभ” का भी निर्माण कराना चाहते थे लेकिन वे इसे पूरा न कर सके। संभवतः यह वही स्थान है जिसे एक टीले के रूप मे श्रावस्ती से कुछ दूरी पर इकोना-बलरामपुर राजमार्ग पर देखा जा सकता है।
हाँ दुःख की बात यही है कि हिन्दू उसी सालार को गाजी बाबा के नाम से पूजने उसके कब्र पर जाते हैं और सुहेलदेव कोई जानता तक नहीं।
लेकिन ये एक ऐसे युद्ध के रूप में जाना जाता है जिसमे हिन्दू राजाओं ने बहुत बुरी तरह से मुसलमानों का घमंड चूर चूर करके मिटटी में मिला दिया। इस्लामी सेना की इस पराजय के बाद भारतीय शूरवीरों का ऐसा आतंक विश्व में व्याप्त हो गया कि उसके बाद आने वाले 150 वर्षों तक किसी भी आक्रमणकारी को भारतवर्ष पर आक्रमण करने का साहस ही नहीं हुआ।

Friday, 19 August 2016

भीमराव रामजी आंबेडकर

आरंभिक जीवन :
भीमराव रामजी आंबेडकर का जन्म ब्रिटिशों द्वारा केन्द्रीय प्रांत ( अब मध्य प्रदेश में ) में स्थापित नगर व सैन्य छावनी महू में हुआ था।वे रामजी मालोजी सकपाल और भीमाबाई की १४ वीं व अंतिम संतान थे। उनका परिवार मराठी था और वो अंबावडे नगर जो आधुनिक महाराष्ट्रके रत्नागिरी जिले मे है, से संबंधित था।कबीर पंथ से संबंधित इस परिवार में, रामजी सकपाल, अपने बच्चों को हिंदू ग्रंथों को पढ़ने के लिए, विशेष रूप से महाभारत और रामायण प्रोत्साहित किया करते थे। उन्होने सेना मे अपनी हैसियत का उपयोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूल से शिक्षा दिलाने मे किया।
शिक्षा : 


अपने भाइयों और बहनों मे केवल अम्बेडकर ही स्कूल की परीक्षा में सफल हुए और इसके बाद बड़े स्कूल मे जाने में सफल हुये।एक देशस्त ब्राह्मण शिक्षक महादेव अम्बेडकर जो उनसे विशेष स्नेह रखते थे । 
ब्राह्मण गुरु महादेव अम्बेडकर ने शिक्षा का बीज और और आगे का रास्ता प्रसस्त किया । उन्होंने अम्बेडकर ने अपने नाम से सकपाल हटाकर अम्बेडकर नाम दिया । जो उनके गांव के नाम "अंबावडे" पर आधारित था।

गायकवाड शासक ने संयुक्त राज्य अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय मे जाकर अध्ययन के लिये अम्बेडकर का चयन किया गया साथ ही इसके लिये एक ११.५ डॉलर प्रति मास की छात्रवृत्ति भी प्रदान की

न्यूयॉर्क शहर में आने के बाद, अम्बेडकर को राजनीति विज्ञान विभाग के स्नातक अध्ययन कार्यक्रम में प्रवेश दे दिया गया।एक अंग्रेज जानकार बंबई के पूर्व राज्यपाल लॉर्ड सिडनेम, के कारण उन्हें बंबई के सिडनेम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनोमिक्स मे राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रोफेसर के रूप में नौकरी मिल गयी।
१९२० में कोल्हापुर के महाराजा अपने पारसी मित्र के सहयोग और अपनी बचत के कारण वो एक बार फिर से इंग्लैंड वापस जाने में सक्षम हो गये। १९२३ में उन्होंने अपना शोध प्रोब्लेम्स ऑफ द रुपी (रुपये की समस्यायें) पूरा कर लिया। उन्हें लंदन विश्वविद्यालय द्वारा "डॉक्टर ऑफ साईंस" की उपाधि प्रदान की गयी। और उनकी कानून का अध्ययन पूरा होने के, साथ ही साथ उन्हें ब्रिटिश बार मे बैरिस्टर के रूप में प्रवेश मिल गया। भारत वापस लौटते हुये अम्बेडकर तीन महीने जर्मनी में रुके, जहाँ उन्होने अपना अर्थशास्त्र का अध्ययन, बॉन विश्वविद्यालय में जारी रखा। उन्हे औपचारिक रूप से ८ जून १९२७ को कोलंबिया विश्वविद्यालय द्वारा पी एच.डी. प्रदान की गयी।
जन्म14 अप्रैल 1891
महूसेन्ट्रल प्रोविंसब्रिटिश भारत (वर्तमानमध्य प्रदेश में)
जीवनसाथी
रमाबाई अंबेडकर (विवाह 1906)
डॉ. सविता अंबेडकर (विवाह 1948)
शिक्षाबी.ए., एम.ए., पी.एच.डी., एम.एससी., डी. एससी., एलएल.डी., डी.लिट., बार-एट-लॉ (कुल 32 डिग्रीया अर्जीत)

भारत  विभाजन  :
छुआछूत का विरोध    
डॉ अम्बेडकर आज तक की सबसे बडी़ अछूत राजनीतिक हस्ती बन चुके थे। उन्होंने मुख्यधारा के महत्वपूर्ण राजनीतिक दलों की जाति व्यवस्था के उन्मूलन के प्रति उनकी कथित उदासीनता की कटु आलोचना की।
हमें अपना रास्ता स्वयँ बनाना होगा और स्वयँ ... राजनीतिक शक्ति शोषितो की समस्याओं का निवारण नहीं हो सकती, उनका उद्धार समाज मे उनका उचित स्थान पाने मे निहित है। उनको अपना रहने का बुरा तरीका बदलना होगा.... उनको शिक्षित होना चाहिए .... एक बड़ी आवश्यकता उनकी हीनता की भावना को झकझोरने और उनके अंदर उस दैवीय असंतोष की स्थापना करने की है जो सभी उँचाइयों का स्रोत है[2]

अम्बेडकर इस्लाम और दक्षिण एशिया में उसकी रीतियों के भी बड़े आलोचक थे।
उन्होंने कहा,बहुविवाह और रखैल रखने के दुष्परिणाम शब्दों में व्यक्त नहीं किये जा सकते जो विशेष रूप से एक मुस्लिम महिला के दुःख के स्रोत हैं। जाति व्यवस्था को ही लें, हर कोई कहता है कि इस्लाम गुलामी और जाति से मुक्त होना चाहिए, जबकि गुलामी अस्तित्व में है और इसे इस्लाम और इस्लामी देशों से समर्थन मिला है। इस्लाम में ऐसा कुछ नहीं है जो इस अभिशाप के उन्मूलन का समर्थन करता हो। अगर गुलामी खत्म भी हो जाये पर फिर भी मुसलमानों के बीच जाति व्यवस्था रह जायेगी।[8]उन्होंने लिखा कि मुस्लिम समाज मे तो हिंदू समाज से भी कही अधिक सामाजिक बुराइयां है और मुसलमान उन्हें " भाईचारे " जैसे नरम शब्दों के प्रयोग से छुपाते हैं। उन्होंने मुसलमानो द्वारा अर्ज़ल वर्गों के खिलाफ भेदभाव जिन्हें " निचले दर्जे का " माना जाता था के साथ ही मुस्लिम समाज में महिलाओं के उत्पीड़न की दमनकारी पर्दा प्रथा की भी आलोचना की। उन्होंने कहा हालाँकि पर्दा हिंदुओं मे भी होता है पर उसे धर्मिक मान्यता केवल मुसलमानों ने दी है। उन्होंने इस्लाम मे कट्टरता की आलोचना की जिसके कारण इस्लाम की नातियों का अक्षरक्ष अनुपालन की बद्धता के कारण समाज बहुत कट्टर हो गया है और उसे को बदलना बहुत मुश्किल हो गया है। उन्होंने आगे लिखा कि भारतीय मुसलमान अपने समाज का सुधार करने में विफल रहे हैं जबकि इसके विपरीत तुर्की जैसे देशों ने अपने आपको बहुत बदल लिया है।[8]
"सांप्रदायिकता" से पीड़ित हिंदुओं और मुसलमानों दोनों समूहों ने सामाजिक न्याय की माँग की उपेक्षा की है।[8]
हालांकि वे मोहम्मद अली जिन्ना और मुस्लिम लीग की विभाजनकारी सांप्रदायिक रणनीति के घोर आलोचक थे पर उन्होने तर्क दिया कि हिंदुओं और मुसलमानों को पृथक कर देना चाहिए और पाकिस्तान का गठन हो जाना चाहिये क्योकि एक ही देश का नेतृत्व करने के लिए, जातीय राष्ट्रवाद के चलते देश के भीतर और अधिक हिंसा पनपेगी। उन्होंने हिंदू और मुसलमानों के सांप्रदायिक विभाजन के बारे में अपने विचार के पक्ष मे ऑटोमोन साम्राज्य और चेकोस्लोवाकिया के विघटन जैसी ऐतिहासिक घटनाओं का उल्लेख किया।
उपाधिभारत के प्रथम कानून मंत्रीसंविधान मसौदा समिति के अध्यक्षशोषित, दलितों के मसिहाअद्वितीय विद्वानइतिहास के सबसे प्रतिभाशाली व्यक्तीओं में प्रथम
पुरस्कारभारत रत्‍न (1990)
संविधान निर्माण
अपने विवादास्पद विचारों और गांधी व कांग्रेस की कटु आलोचना के बावजूद अम्बेडकर की प्रतिष्ठा एक अद्वितीय विद्वान और विधिवेत्ता की थी जिसके कारण जब, 15 अगस्त 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, कांग्रेस के नेतृत्व वाली नई सरकार अस्तित्व मे आई तो उसने अम्बेडकर को देश का पहले कानून मंत्री के रूप में सेवा करने के लिए आमंत्रित किया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। 29 अगस्त 1947 को, अम्बेडकर को स्वतंत्र भारत के नए संविधान की रचना कि लिए बनी के संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया। अम्बेडकर ने मसौदा तैयार करने के इस काम मे अपने सहयोगियों और समकालीन प्रेक्षकों की प्रशंसा अर्जित की
मृत्यु6 दिसम्बर 1956 (उम्र 65)
दिल्लीभारत

नाथूराम

ऐतिहसिक पोस्ट :-आखिर क्या कारण है जो कुछ लोग गोडसे को हीरो और गाँधी को विलेन मानते है कुछ तथ्य पेश है
क्या थी विभाजन की पीड़ा ?

विभाजन के समय हुआ क्या क्या ?

विभाजन के लिए क्या था विभिन्न राजनैतिक पार्टियों दृष्टिकोण ?

क्या थी पीड़ा पाकिस्तान से आये हिन्दू शरणार्थियों की … मदन लाल पाहवा और विष्णु करकरे की?

क्या थी गोडसे की विवशता ?

क्या गोडसे नही जानते थे की आम आदमी को मरने में और एक राष्ट्रपिता को मरने में क्या अंतर है ?

क्या होगा परिवार का ?

कैसे कैसे कष्ट सहने पड़ेंगे परिवार और सम्बन्धियों को और मित्रों को ?

क्या था गांधी वध का वास्तविक कारण ?

क्या हुआ 30 जनवरी की रात्री को … पुणे के ब्राह्मणों के साथ ?

क्या था सावरकर और हिन्दू महासभा का चिन्तन ?

क्या हुआ गोडसे के बाद नारायण राव आप्टे का .. कैसी नृशंस फांसी दी गयी उन्हें l

यह लेख पढने के बाद कृपया बताएं कैसे उतारेगा भारतीय जनमानस हुतात्मा नाथूराम गोडसे जी का कर्ज….

आइये इन सब सवालों के उत्तर खोजें ….

पाकिस्तान से दिल्ली की तरफ जो रेलगाड़िया आ रही थी, उनमे हिन्दू इस प्रकार बैठे थे जैसे माल की बोरिया एक के ऊपर एक रची जाती हैं.अन्दर ज्यादातर मरे हुए ही थे, गला कटे हुए lरेलगाड़ी के छप्पर पर बहुत से लोग बैठे हुए थे, डिब्बों के अन्दर सिर्फ सांस लेने भर की जगह बाकी थी l बैलगाड़िया ट्रक्स हिन्दुओं से भरे हुए थे, रेलगाड़ियों पर लिखा हुआ था,,” आज़ादी का तोहफा ” रेलगाड़ी में जो लाशें भरी हुई

थी उनकी हालत कुछ ऐसी थी की उनको उठाना मुश्किल था, दिल्ली पुलिस को फावड़ें में उन लाशों को भरकर उठाना पड़ा l ट्रक में भरकर किसी निर्जन स्थान पर ले जाकर, उन पर पेट्रोल के फवारे मारकर उन लाशों को जलाना पड़ा इतनी विकट हालत थी उन मृतदेहों की… भयानक बदबू……

सियालकोट से खबरे आ रही थी की वहां से हिन्दुओं को निकाला जा रहा हैं, उनके घर, उनकी खेती, पैसा-अडका, सोना-चाँदी, बर्तन सब मुसलमानों ने अपने कब्जे में ले लिए थे l मुस्लिम लीग ने सिवाय कपड़ों के कुछ भी ले जाने पर रोक लगा दी थी. किसी भी गाडी पर हमला करके हाथ को लगे उतनी महिलाओं- बच्चियों को भगाया गया.बलात्कार किये बिना एक भी हिन्दू स्त्री वहां से वापस नहीं आ सकती थी … बलात्कार किये बिना…..?


जो स्त्रियाँ वहां से जिन्दा वापस आई वो अपनी वैद्यकीय जांच करवाने से डर रही थी….

डॉक्टर ने पूछा क्यों ???

उन महिलाओं ने जवाब दिया… हम आपको क्या बताये हमें क्या हुआ हैं ?

हमपर कितने लोगों ने बलात्कार किये हैं हमें भी पता नहीं हैं…उनके सारे शारीर पर चाकुओं के घाव थे.

“आज़ादी का तोहफा”
जिन स्थानों से लोगों ने जाने से मना कर दिया, उन स्थानों पर हिन्दू स्त्रियों की नग्न यात्राएं (धिंड) निकाली गयीं, बाज़ार सजाकर उनकी बोलियाँ लगायी गयीं और उनको दासियों की तरह खरीदा बेचा गया l

1947 के बाद दिल्ली में 400000 हिन्दू निर्वासित आये, और इन हिन्दुओं को जिस हाल में यहाँ आना पड़ा था, उसके बावजूद पाकिस्तान को पचपन करोड़ रुपये देने ही चाहिए ऐसा महात्मा गाँधी जी का आग्रह था…क्योकि एक तिहाई भारत के तुकडे हुए हैं तो भारत के खजाने का एक तिहाई हिस्सा पाकिस्तान को मिलना चाहिए था l

विधि मंडल ने विरोध किया, पैसा नहीं देगे….और फिर बिरला भवन के पटांगन में महात्मा जी अनशन पर बैठ गए…..पैसे दो, नहीं तो मैं मर जाउगा….एक तरफ अपने मुहँ से ये कहने वाले महात्मा जी, की हिंसा उनको पसंद नहीं हैं l दूसरी तरफ जो हिंसा कर रहे थे उनके लिए अनशन पर बैठ गए… क्या यह हिंसा नहीं थी .. अहिंसक आतंकवाद की आड़ में

दिल्ली में हिन्दू निर्वासितों के रहने की कोई व्यवस्था नहीं थी, इससे ज्यादा बुरी बात ये थी की दिल्ली में खाली पड़ी मस्जिदों में हिन्दुओं ने शरण ली तब बिरला भवन से महात्मा जी ने भाषण में कहा की दिल्ली पुलिस को मेरा आदेश हैं मस्जिद जैसी चीजों पर हिन्दुओं का कोई ताबा नहीं रहना चाहिए l निर्वासितों को बाहर निकालकर मस्जिदे खाली करे..क्योंकि महात्मा जी की दृष्टी में जान सिर्फ मुसलमानों में थी हिन्दुओं में नहीं…

जनवरी की कडकडाती ठंडी में हिन्दू महिलाओं और छोटे छोटे बच्चों को हाथ पकड़कर पुलिस ने मस्जिद के बाहर निकाला, गटर के किनारे रहो लेकिन छत के निचे नहीं l क्योकि… तुम हिन्दू हो….

4000000 हिन्दू भारत में आये थे,ये सोचकर की ये भारत हमारा हैं….ये सब निर्वासित गांधीजी से मिलाने बिरला भवन जाते थे तब गांधीजी माइक पर से कहते थे क्यों आये यहाँ अपने घर जायदाद बेचकर, वहीँ पर अहिंसात्मक प्रतिकार करके क्यों नहीं रहे ??

यही अपराध हुआ तुमसे अभी भी वही वापस जाओ..और ये महात्मा किस आशा पर पाकिस्तान को पचपन करोड़ रुपये देने निकले थे ?

कैसा होगा वो मोहनदास करमचन्द गाजी उर्फ़ गंधासुर … कितना महान … जिसने बिना तलवार उठाये … 35 लाख हिन्दुओं का नरसंहार करवाया

2 करोड़ से ज्यादा हिन्दुओं का इस्लाम में धर्मांतरण हुआऔर उसके बाद यह संख्या 10 करोड़ भी पहुंची l

10 लाख से ज्यादा हिन्दू नारियों को खरीदा बेचा गया l

20 लाख से ज्यादा हिन्दू नारियों को जबरन मुस्लिम बना कर अपने घरों में रखा गया, तरह तरह की शारीरिक और मानसिक यातनाओं के बाद

ऐसे बहुत से प्रश्न, वास्तविकताएं और सत्य तथा तथ्य हैं जो की 1947 के समकालीन लोगों ने अपनी आने वाली पीढ़ियों से छुपाये, हिन्दू कहते हैं की जो हो गया उसे भूल जाओ, नए कल की शुरुआत करो …

परन्तु इस्लाम के लिए तो कोई कल नहीं .. कोई आज नहीं …वहां तो दार-उल-हर्ब को दार-उल-इस्लाम में बदलने का ही लक्ष्य है पल.. प्रति पल

विभाजन के बाद एक और विभाजन का षड्यंत्र …

आपने बहुत से देशों में से नए देशों का निर्माण देखा होगा, U S S R टूटने के बाद बहुत से नए देश बने, जैसे ताजिकिस्तान, कजाकिस्तान आदि … परन्तु यह सब देश जो बने वो एक परिभाषित अविभाजित सीमा के अंदर बने l

और जब भारत का विभाजन हुआ .. तो क्या कारण थे की पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान बनाए गए… क्यों नही एक ही पाकिस्तान बनाया गया… या तो पश्चिम में बना लेते या फिर पूर्व में l

परन्तु ऐसा नही हुआ …. यहाँ पर उल्लेखनीय है की मोहनदास करमचन्द ने तो यहाँ तक कहा था की पूरा पंजाब पाकिस्तान में जाना चाहिए, बहुत कम लोगों को ज्ञात है की 1947 के समय में पंजाब की सीमा दिल्ली के नजफगढ़ क्षेत्र तक होती थी … यानी की पाकिस्तान का बोर्डर दिल्ली के साथ होना तय था … मोहनदास करमचन्द गाँधी के अनुसार l

नवम्बर 1968 में पंजाब में से दो नये राज्यों का उदय हुआ .. हिमाचल प्रदेश और हरियाणा l

पाकिस्तान जैसा मुस्लिम राष्ट्र पाने के बाद भी जिन्ना और मुस्लिम लीग चैन से नहीं बैठे …

उन्होंने फिर से मांग की … की हमको पश्चिमी पाकिस्तान से पूर्वी पाकिस्तान जाने में बहुत समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं l

1. पानी के रास्ते बहुत लम्बा सफर हो जाता है क्योंकि श्री लंका के रस्ते से घूम कर जाना पड़ता है l

2. और हवाई जहाज से यात्राएं करने में अभी पाकिस्तान के मुसलमान सक्षम नही हैं l इसलिए …. कुछ मांगें रखी गयीं 1. इसलिए हमको भारत के बीचो बीच एक Corridor बना कर दिया जाए….

2. जो लाहोर से ढाका तक जाता हो … (NH – 1)

3. जो दिल्ली के पास से जाता हो …

4. जिसकी चौड़ाई कम से कम 10 मील की हो … (10 Miles = 16 KM)

5. इस पूरे Corridor में केवल मुस्लिम लोग ही रहेंगे l

30 जनवरी को गांधी वध यदि न होता, तो तत्कालीन परिस्थितियों में बच्चा बच्चा यह जानता था की यदि मोहनदास करमचन्द 3 फरवरी, 1948 को पाकिस्तान पहुँच गया तो इस मांग को भी …मान लिया जायेगा

तात्कालिक परिस्थितियों के अनुसार तो मोहनदास करमचन्द किसी की बात सुनने की स्थिति में था न ही समझने में …और समय भी नहीं था जिसके कारण हुतात्मा नाथूराम गोडसे जी को गांधी वध जैसा अत्यधिक साहसी और शौर्यतापूर्ण निर्णय लेना पडा l

हुतात्मा का अर्थ होता है जिस आत्मा ने अपने प्राणों की आहुति दी हो …. जिसको की वीरगति को प्राप्त होना भी कहा जाता है l

यहाँ यह सार्थक चर्चा का विषय होना चाहिए की हुतात्मा पंडित नाथूराम गोडसे जीने क्या एक बार भी नहीं सोचा होगा की वो क्या करने जा रहे हैं ?

किसके लिए ये सब कुछ कर रहे हैं ?

उनके इस निर्णय से उनके घर, परिवार, सम्बन्धियों, उनकी जाती और उनसे जुड़े संगठनो पर क्या असर पड़ेगा ?

घर परिवार का तो जो हुआ सो हुआ …. जाने कितने जघन्य प्रकारों से समस्त परिवार और सम्बन्धियों को प्रताड़ित किया गया l

परन्तु ….. अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले मोहनदास करमचन्द के कुछ अहिंसक आतंकवादियों ने 30 जनवरी, 1948 की रात को ही पुणे में 6000 ब्राह्मणों को चुन चुन कर घर से निकाल निकाल कर जिन्दा जलाया l

10000 से ज्यादा ब्राह्मणों के घर और दुकानें जलाए गए l

सोचने का विषय यह है की उस समय संचार माध्यम इतने उच्च कोटि के नहीं थे, विकसित नही थे … फिर कैसे 3 घंटे के अंदर अंदर इतना सुनियोजित तरीके से इतना बड़ा नरसंहार कर दिया गया ….

सवाल उठता है की … क्या उन अहिंसक आतंकवादियों को पहले से यह ज्ञात था की गांधी वध होने वाला है ?

जस्टिस खोसला जिन्होंने गांधी वध से सम्बन्धित केस की पूरी सुनवाई की… 35 तारीखें पडीं l

अदालत ने निरीक्षण करवाया और पाया हुतात्मा पनदिर नाथूराम गोडसे जी की मानसिक दशा को तत्कालीन चिकित्सकों ने एक दम सामान्य घोषित किया l पंडित जी ने अपना अपराध स्वीकार किया पहली ही सुनवाई में और अगली 34 सुनवाइयों में कुछ नहीं बोले … सबसे आखिरी सुनवाई में पंडित जी ने अपने शब्द कहे “”

गाँधी वध के समय न्यायमूर्ति खोसला से नाथूराम ने अपना वक्तव्य स्वयं पढ़ कर सुनाने की अनुमति मांगी थी और उसे यह अनुमति मिली थी | नाथूराम गोडसे का यह न्यायालयीन वक्तव्य भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया था |इस प्रतिबन्ध के विरुद्ध नाथूराम गोडसे के भाई तथा गाँधी वध के सह अभियुक्त गोपाल गोडसे ने ६० वर्षों तक वैधानिक लडाई लड़ी और उसके फलस्वरूप सर्वोच्च न्यायलय ने इस प्रतिबन्ध को हटा लिया तथा उस वक्तव्य के प्रकाशन की अनुमति दे दी।

नाथूराम गोडसे ने न्यायलय के समक्ष गाँधी वध के जो १५० कारण बताये थे उनमें से प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं –

1. अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (1919) से समस्त देशवासी आक्रोश में थे तथा चाहते थे कि इस नरसंहार के खलनायक जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाए। गान्धी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से मना कर दिया।

2. भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से सारा देश क्षुब्ध था व गान्धी की ओर देख रहा था कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु से बचाएं, किन्तु गान्धी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस माँग को अस्वीकार कर दिया। क्या आश्चर्य कि आज भी भगत सिंह वे अन्य क्रान्तिकारियों को आतंकवादी कहा जाता है।

3. 6 मई 1946 को समाजवादी कार्यकर्ताओं को अपने सम्बोधन में गान्धी ने मुस्लिम लीग की हिंसा के समक्ष अपनी आहुति देने की प्रेरणा दी।

4.मोहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं के विरोध को अनदेखा करते हुए 1921 में गान्धी ने खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देने की घोषणा की। तो भी केरल के मोपला में मुसलमानों द्वारा वहाँ के हिन्दुओं की मारकाट की जिसमें लगभग 1500 हिन्दु मारे गए व 2000 से अधिक को मुसलमान बना लिया गया। गान्धी ने इस हिंसा का विरोध नहीं किया, वरन् खुदा के बहादुर बन्दों की बहादुरी के रूप में वर्णन किया।

5.1926 में आर्य समाज द्वारा चलाए गए शुद्धि आन्दोलन में लगे स्वामी श्रद्धानन्द जी की हत्या अब्दुल रशीद नामक एक मुस्लिम युवक ने कर दी, इसकी प्रतिक्रियास्वरूप गान्धी ने अब्दुल रशीद को अपना भाई कह कर उसके इस कृत्य को उचित ठहराया व शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल राष्ट्र-विरोधी तथा हिन्दु-मुस्लिम एकता के लिए अहितकारी घोषित किया।

6.गान्धी ने अनेक अवसरों पर छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू गोविन्द सिंह जी को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।

7.गान्धी ने जहाँ एक ओर काश्मीर के हिन्दु राजा हरि सिंह को काश्मीर मुस्लिम बहुल होने से शासन छोड़ने व काशी जाकर प्रायश्चित करने का परामर्श दिया, वहीं दूसरी ओर हैदराबाद के निज़ाम के शासन का हिन्दु बहुल हैदराबाद में समर्थन किया।

8. यह गान्धी ही था जिसने मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे-आज़म की उपाधि दी।

9. कॉंग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिए बनी समिति (1931) ने सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र पर निर्णय लिया किन्तु गाँधी कि जिद के कारण उसे तिरंगा कर दिया गया।

10. कॉंग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गान्धी पट्टभि सीतारमय्या का समर्थन कर रहा था, अत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के कारण पदत्याग कर दिया।

11. लाहोर कॉंग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव सम्पन्न हुआ किन्तु गान्धी की जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया।

12. 14-15 जून, 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कॉंग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु गान्धी ने वहाँ पहुंच प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा।

13. मोहम्मद अली जिन्ना ने गान्धी से विभाजन के समय हिन्दु मुस्लिम जनसँख्या की सम्पूर्ण अदला बदली का आग्रह किया था जिसे गान्धी ने अस्वीकार कर दिया।

14. जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डल ने सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया, किन्तु गान्धी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।

15. पाकिस्तान से आए विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली तो गान्धी ने उन उजड़े हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया।

16. 22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने काश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व माउँटबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को 55 करोड़ रुपए की राशि देने का परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल ने आक्रमण के दृष्टिगत यह राशि देने को टालने का निर्णय लिया किन्तु गान्धी ने उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन किया- फलस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी।

उपरोक्त परिस्थितियों में नथूराम गोडसे नामक एक देशभक्त सच्चे भारतीय युवक ने गान्धी का वध कर दिया।

न्य़यालय में चले अभियोग के परिणामस्वरूप गोडसे को मृत्युदण्ड मिला किन्तु गोडसे ने न्यायालय में अपने कृत्य का जो स्पष्टीकरण दिया उससे प्रभावित होकर उस अभियोग के न्यायधीश श्री जे. डी. खोसला ने अपनी एक पुस्तक में लिखा-

“नथूराम का अभिभाषण दर्शकों के लिए एक आकर्षक दृश्य था। खचाखच भरा न्यायालय इतना भावाकुल हुआ कि लोगों की आहें और सिसकियाँ सुनने में आती थींऔर उनके गीले नेत्र और गिरने वाले आँसू दृष्टिगोचर होते थे। न्यायालय में उपस्थित उन प्रेक्षकों को यदि न्यायदान का कार्य सौंपा जाता तो मुझे तनिक भी संदेह नहीं कि उन्होंने अधिकाधिक सँख्या में यह घोषित किया होता कि नथूराम निर्दोष है।”

तो भी नथूराम ने भारतीय न्यायव्यवस्था के अनुसार एक व्यक्ति की हत्या के अपराध का दण्ड मृत्युदण्ड के रूप में सहज ही स्वीकार किया। परन्तु भारतमाता के विरुद्ध जो अपराध गान्धी ने किए, उनका दण्ड भारतमाता व उसकी सन्तानों को भुगतना पड़ रहा है। यह स्थिति कब बदलेगी?

प्रश्न यह भी उठता है की पंडित नाथूराम गोडसे जी ने तो गाँधी वध किया उन्हें पैशाचिक कानूनों के द्वारा मृत्यु दंड दिया गया परन्तु नाना जी आप्टे ने तो गोली नहीं मारी थी … उन्हें क्यों मृत्युदंड दिया गया ?

नाथूराम गोडसे को सह अभियुक्त नाना आप्टे के साथ १५ नवम्बर १९४९ को पंजाब के अम्बाला की जेल में मृत्यु दंड दे दिया गया। उन्होंने अपने अंतिम शब्दों में कहा था…

यदि अपने देश के प्रति भक्तिभाव रखना कोई पाप है तो मैंने वो पाप किया है और यदि यह पुण्य , है तो उसके द्वारा अर्जित पुण्य पद पर मैं अपना नम्र अधिकार व्यक्त करता हूँ

– नाथूराम गोडसे

अहिंसा

तुम लेकर अहिंसा का झंडा मेरा खून जालाने आए हो....?

औरंगजेब की क्रूरता ने हिन्दुओ पे सितम ढाये थे....!
जनेऊ तुड्वाकर, तिलक मिटाकर, जप तप बंद कराये थे.....!!

जब चलते यज्ञों की बेदी पर गोमांस बिखेरा जाता था....!
ऋषियों के उर मे डाल तलवारे, हाड़ उखेरा जाता था....!!

ये थी हिंसा की चरम सीमाए, क्या इन्हे मिटाने आए हो....??
तुम लेकर अहिंसा का झण्डा, मेरा खून जलाने आए हो....??

बाबर की अतिबर्बर बर्बरता ने, लाशों के ढेर बिछाये थे....!
मेरे मोहन ओ श्याम के मंदिर पर खून के धब्बे लगाए थे....!!

तोड़ मेरे प्रभु राम का मंदिर, बाबरी के पाप सजाये थे.....!
लाल रक्त के अमिट धब्बो को कीचड़ से मिटाने आए हो......?
तुम लेकर अहिंसा का झण्डा, मेरा खून जलाने आए हो.....?

तथाकथित आजादी का वो पहला सूरज निकला था....!
हु अकबर अकबर चिल्लाता दानवो का एक काफिला था.....!!

बाजारो मे हिन्दू माँए नंगी दौड़ाई जाती थी.....!
वो अबला, मासूम व्यथित हो राम राम चिल्लाती थी.....!!

उन्हे देख अहिंसा रोयी थी, हिंसा ने भी आँसू बहाये थे....!
इतने पर भी उन असुरो ने गुप्तांगों मे भाले घुसाए थे....!!

वो चीख रही थी, तड़प रही थी, बिलख रही थी एक ओर.....!
एक ओर पिब रहा दूध बकरी का, था चरखो का हल्का शोर.....!!

झटपटा रही थी, पड़ी धरा पर, थे ऊपर पर हवसी सवार.....!
एक ओर गीत गा-गा करके बांट रहा था 'वो' दुश्मन को प्यार.......!!

उनके करुण रुन्दन के गुंजन की आवाज दबाने आए हो....??
तुम लेकर अहिंसा का झण्डा, मेरा खून जलाने आए हो....??

मेरे हजारो मंदिर टूटे है, लुटा है लाखो माँ बहनोका शील.....!
करोड़ो भाइयो की रक्त धारा से बनी है नफरत की ये झील......!!

मेरी गोमाता काट काट प्लेटो मे सजाई जाती है.....!
खोलते पानी मे डाल बछड़ो को खाल उतारी जाती है....!!

वो प्रभु राम को गाली देत है, घनश्याम को गाली देते हे.....!
तुम बनके अहिंसा के उपासक इन पापो को छिपाने आए हो....??
तुम लेके अहिंसा का झण्डा, बस खून जलाने आए हो.......??

तुम भूल सको तो भूल जाओ, उन बिखरी लाशों के ढेरो को.......!
लूटे माताओ के शीलों को, दिये जख्मो के घेरो को.......!!

हा भूल जाओ तुम टूटे मंदिरो की उन आह भरती नीवों को.......!
तुम भूल ही जाओ तो अच्छा, गोमाता की अव्यक्तित चीखो को.......!!

राम बोलने वाले गो पुजकों को तुम साम्र्प्दयिक बताते हो.....!
बारूद बिछाने वालो को भाई कह अहिंसा का ढोंग दिखाते हो.....!!

तुम झूठी अहिंसा के खून से धर्म पर कलंक लगाने आए हो....??
तुम लेकर अहिंसा का झण्डा मेरा खून जलाने आए हो....??

सौजन्य :  अज्ञात कवि 

Thursday, 18 August 2016

ढोल गवाँर शूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी

नया सवेरा : श्री राम भक्त तुलसीदास की दोहा को गलत अर्थ बताने वाले को आयाना दिखाना चाहता है ।

सत्य : ताड़ना एक (अवधी - संस्कृत) शब्द है । जिसका हिंदी में अर्थ होता है । अनुशासन, शिष्टाचार, मर्यादा  (Discipline) या शिक्षा 

संस्कृत का एक श्लोक पढ़े :
लालयेत् पंच वर्षाणि दश वर्षाणि ताडयेत्
प्राप्ते षोडशे वर्षे पुत्रे मित्रवदाचरेत्॥

अर्थ- पाँच वर्ष की अवस्था तक पुत्र को लाड़ करना चाहिए, दस वर्ष की अवस्था तक (उसी की भलाई के लिए) उसे ताड़ना (अनुशासन , Discipline ,  मर्यादा , शिक्षा ) देना चाहिए और उसके सोलह वर्ष की अवस्था प्राप्त कर लेने पर उससे मित्रवत व्यहार करना चाहिए.

Till the son is five years old one should pamper him. When he crosses five till he becomes 10 he should be spanked. (Tadayet means to spank) in reality those are the years when one needs to discipline him. Line -2 However, when he turns 16, he should be treated like a friend. ( Means he should feel that he is grown up and his opinion matters, which can happen when he is treated like a friend.)

ताड़ना =  DISCIPLINE =  मर्यादा = अनुशासन = शिक्षा 
अब आप श्री राम चरितमानस के पूरी दोहा को पढ़े आपके सामने सत्य खुद ही समझ में आएगा । 
दोहा ।
प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्हीं। मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्हीं॥
ढोल गवाँर शूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी॥
अर्थ : समुद्र प्रार्थना करते है की आपने हमें शिक्षा (अनुशासन) देकर अच्छा किया । ये आपने  मर्यादा (कर्तव्य ) को फिर से स्थापित किया  है । 
ढोल गंवार शुद्र पशु और नारी सारे ताड़ना (ताडयेत् , मर्यादा, अनुशासन , Discipline,  शिक्षा  ) के अधिकारी है ।
English : 
Shree Ram you have done well to discipline me | This is guidelines which you have defined again.
A Drum, an Illiterate, Poor people (I would not interpret it as Dalit’s), Animals and Women all have the rights to be disciplined.

ज्ञातव्य : जड़ ( समुद्र और  ढोल ) और  चेतन (गंवार शुद्र पशु , नारी ) सभी को अपनी मर्यादा का पालन करना चाहिए ।  भगवान् श्री राम मर्यादा पुरषोत्तम सभी जड़ और चेतन के मालिक है  ।

मर्यादा पुरषोतम श्री राम जड़ - समुद्र और चेतन के स्वामी के बारे में श्री तुलसी दास का ये कथन उचित है ।
जब तक ढोल को सही तरीके से कसा नही जाये सुर ख़राब होता है । गंवार, शुद्र, पशु और नारी को मर्यादा अनुशासन में रहने की आवश्यकता है । समुद्र भगवान् श्री राम का दास है और उन्हें भगवान का आदेश मानने में देर नही करना चाहिए था ।

ये वही पाखंडी है जिसने तुलसीदास के श्री राम चरित्र मानस को मान्यता देने से इंकार किया था । उसके बाद ताड़ना (डिसिप्लिन मर्यादा शिष्टाचार अनुशासन ) शब्द का गलत अर्थ निकल दिया था । ऐसे शब्द का अर्थ प्रताड़ना बता दिया । पर + ताड़ना (दूसरे द्वारा अनुशासित ) दण्डित करना बता दिया था । जिससे संत  तुलसीदास को बदनाम और अपना महत्व बढ़ाया जा सके ।

एक लोकप्रिय भजन पढ़े इसमें ताड़ना का मतलब मोक्ष या उद्धार होता है ।

ताड़ा  है सारा ज़माना श्याम हम को भी ताड़ो ।
हम को भी ताड़ो श्याम हम को भी ताड़ो ॥

हम ने सुना है श्याम मीरा को ताड़ा,
वीणा का कर के बहाना, श्याम हम भी ताड़ो ।

हमने सुना है श्याम द्रोपदी को ताड़ा,
साडी का कर के बहाना, श्याम हम को भी ताड़ो ।

हमने सुना है श्याम कुब्जा को ताड़ा,
चन्दन का कर के बहाना, श्याम हम को भी ताड़ो ।

हमने सुना है श्याम गणिका को ताड़ा,
तोते का कर के बहाना, श्याम हम को भी ताड़ो ।

हमने सुना है श्याम अर्जुन को ताड़ा,
गीता का कर के बहाना, श्याम हम को भी ताड़ो ।

हमने सुना है श्याम प्रहलाद को ताड़ा,
खम्बे का कर के बहाना, श्याम हम को भी ताड़ो ।

हमने सुना है श्याम केवट को ताड़ा,
नौका का कर के बहाना, श्याम हम को भी ताड़ो ।

प्रेरणा : बिना सत्य जाने झूठ और अफवाह के आधार पर भगवान् वाल्मीकि को डाकू बोलना । द्रोणाचार्य के बारे में एकलव्य का अंगूठा काटने की कहानी जोड़ना और संत तुलसीदास को शुद्र और नारी के बारे में गलत कहना उचित नही है । संत हमेसा आदर और सम्मान के पात्र है ।

Tuesday, 16 August 2016

दलित - मुस्लिम एकता लंबा काला इतिहास

दलित - मुस्लिम कड़वा इतिहास

मनुस्मृति 
जब सृष्टि आरम्भ हुई थी तो ब्रह्मा ने विधान बनाया था जिसे उनके मानस पुत्र स्वायंभुव मनु ने लिखा था | ये संसार का पहला ग्रन्थ था । जिसमे कलियुग ने प्रपंच की तहत धर्म की हानि के लिए छेड़ छेड़ करवाया है|
मूल मनुस्मृति वैदिक संस्कृत में लिखी १०,००० वर्ष से अधिक पुराना ग्रन्थ है जिसमे ६३० श्लोक है | विकृत मनुस्मृति २८०० वर्ष पुराना और लगभग २४०० श्लोक है |इस नकली मनुस्मृति में ब्राह्मणों को उच्च, शुद्रो और स्त्री को नीच कहा गया था |विकृत मनुस्मृति मनुवाद (ब्राह्मणवाद) का जन्म का कारन बना जिसे भगवन बुध ने २५०० वर्ष पहले अंत किया | कालांतर में सिख ईसाई जैन इत्यादि धर्म आया ।

भगवान् महर्षि वाल्मीकि को डाकू कहा गया । जिसे पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने गलत कहा है ।  

रामायण और महाभारत के मूल प्रति में मिलावट कर मनघड़न्त कहानी मिलाया गया जो पूर्णतः असत्य है ।
रामायण और महाभारत की कुछ और मनघडंत कल्पनाएँ जो कोई अस्तित्व तो नहीं रखती पर हिन्दू धर्म की पवित्र संस्कृति को अपमानित जरूर करवाती हैं, देखें –
रामायण:
१. सीता का निर्वासन (सम्पूर्ण उत्तर रामायण ही बाद की कपोल-कल्पना है, जिसका कोई सम्बन्ध वाल्मीकि रामायण से नहीं है।)
२. राम द्वारा शूद्र शम्बूक का वध (उत्तर रामायण से लिया गया एक झूठा प्रसंग है।)
३. हनुमान,बालि,सुग्रीव आदि को बन्दर या वानर मानना। (वे सभी मनुष्य ही थे, हनुमान श्रेष्ठ विद्वान्, अति बुद्धिमान और आकर्षक व्यक्तित्व वाले है।)
४. राम, लक्ष्मण, सीता को शराबी और मांस- भोजी मानना। (जिसका कोई सन्दर्भ मूल रामायण में कहीं नहीं मिलता।)
महाभारत:
१. पांचाल नरेश की कन्या होने से – द्रौपदी पांचाली थी, पांच पतियों की पत्नी होने से नहीं। (यदि कोई इस से उलटा कहे तो वह संस्कृत और इतिहास दोनों से ही अनभिज्ञ है।)
२. श्री कृष्ण की सोलह हजार से भी अधिक रानियाँ मानना। (यह भी भारत वर्ष के अंध काल की एक और मनघडंत कल्पना है।)
3. गुरु द्रोणाचार्य पर एकलव्य का अंगूठा काटना मनघडंत कहानी है । जिसे महाभारत में घालमेल किया है । महर्षि वाल्मीकि की तरह गुरु द्रोणाचार्य को बदनाम किया जा रहा है ।
सैकड़ों शताब्दियों से वेदों के बाद सबसे प्रमुख ग्रन्थ होने के कारण इन ग्रंथों में घालमेल किया गया क्योंकि इन में बिगाड कर के हिन्दुओं को अपने धर्म से डिगाया जा सकता है। हिन्दुओं को धर्मच्युत करने के लिए ही मानव संविधान के प्रथम ग्रन्थ मनुस्मृति में भी घालमेल किया गया।

इसके बाद धर्म और देश का विघटन आरम्भ हो गया । 

हिन्दू  के ग्रंथो में छेड़ छाड़ कर तीन वर्ण को पूजा से वंचित रखा गया था । अब पूजा से वंचित वर्ग में असंतोष था । वो किसी भी हाल में ब्राह्मणों को सबक सिखाना चाहते थे । जिसने उन्हें ब्राह्मण मानने से इनकार किया था । अब ये समस्या गहरी हो गयी थी की एक दूसरे की शादी भी नही होती थी । यानि ब्राह्मण वर्ण और क्षत्रिय वर्ण की आपस में लड़ाई हो रही थी । एक दूसरे का अहम् महत्वपूर्ण था । इस आपसी वैमनस्य के कारन उन ब्राह्मण  क्षत्रिय समाज से वंचित वर्ग ने मुसलमानो का साथ दिया ।  बाद में  यही गलती पतन का कारण बना । हमेसा इन असन्तुष्ट वर्ग तत्कालीन राजा, पुरोहित, मंत्री और राज्य के खिलाफ हमेशा संघर्ष कर रहे थे । ये लड़ाई सत्ता हासिल करने के लिए ही थी । इसलिए उस समय के असंतुष्ट वर्ग ने  तैमूर लंग के साथ दिया । मुसलमान के साथ मिलकर ने ईरान बनाया । जिसके बाद सारे हिन्दू  मारे गए या इस्लाम काबुल किया । 

ज्ञातव्य : ये असंतुष्ट वर्ग पहले शाषक  थे ।  यही ब्राह्मण वर्ण  और क्षत्रिय वर्ण के थे ।  ( कालांतर गौतम बुद्धा २५०० बर्ष के बाद ) सिर्फ राजनितिक मोहरा ही बना इनके हाथ में कभी सत्ता आया ही नही । ये हमेसा धर्म, सत्ता और देश के विरूद्ध खड़े रहे । इनके हाथ हमेसा खाली ही रहा है।  ये असंतुष्ट वर्ग अब तक सत्ता और आन की लड़ाई  के लिए धर्म और देश को हमेसा दाव  पर लगाया है । इसके बारे में कुछ इतिहास संक्षेप में आपके सामने रख रहा हूँ । 

1378 मेँ भारत से एक हिस्सा अलग हुआ, इस्लामिक राष्ट्र बना - नाम है इरान।

तैमूर का जन्म सन्‌ 1336 में ट्रांस-आक्सियाना (Transoxiana), ट्रांस आमू और सर नदियों के बीच का प्रदेश, मावराउन्नहर, में केश या शहर-ए-सब्ज नामक स्थान में हुआ था। उसके पिता ने इस्लाम कबूल कर लिया था। अत: तैमूर भी इस्लाम का कट्टर अनुयायी हुआ। वह बहुत ही प्रतिभावान्‌ और महत्वाकांक्षी व्यक्ति था। महान्‌ मंगोल विजेता चंगेज खाँ की तरह वह भी समस्त संसार को अपनी शक्ति से रौंद डालना चाहता था और सिकंदर की तरह विश्वविजय की कामना रखता था। सन्‌ 1369 में समरकंद के मंगोल शासक के मर जाने पर उसने समरकंद की गद्दी पर कब्जा कर लिया और इसके बाद उसने पूरी शक्ति के साथ दिग्विजय का कार्य प्रारंभ कर दिया। चंगेज खाँ की पद्धति पर ही उसने अपनी सैनिक व्यवस्था कायम की और चंगेज की तरह ही उसने क्रूरता और निष्ठुरता के साथ दूर-दूर के देशों पर आक्रमण कर उन्हें तहस नहस किया। 1380 और 1387 के बीच उसने खुरासान, सीस्तान, अफगानिस्तान, फारस, अजरबैजान और कुर्दीस्तान आदि पर आक्रमण कर उन्हें अधीन किया। 1393 में उसने बगदाद को लेकर मेसोपोटामिया पर आधिपत्य स्थापित किया। इन विजयों से उत्साहित होकर अब उसने भारत पर आक्रमण करने का निश्चय किया। उसके अमीर और सरदार प्रारंभ में भारत जैसे दूरस्थ देश पर आक्रमण के लिये तैयार नहीं थे, लेकिन जब उसने इस्लाम धर्म के प्रचार के हेतु भारत में प्रचलित मूर्तिपूजा का विध्वंस करना अपना पवित्र ध्येय घोषित किया, तो उसके अमीर और सरदार भारत पर आक्रमण के लिये राजी हो गए।

मूर्तिपूजा का विध्वंस तो आक्रमण का बहाना मात्र था। वस्तुत: वह भारत के स्वर्ण से आकृष्ट हुआ। भारत की महान्‌ समृद्धि और वैभव के बारे में उसने बहुत कुछ बातें सुन रखी थीं। अत: भारत की दौलत लूटने के लिये ही उसने आक्रमण की योजना बनाई थी। उसे आक्रमण का बहाना ढूँढ़ने की अवश्यकता भी नहीं महसूस हुई। उस समय दिल्ली की तुगलुक सल्तनत फिरोजशाह के निर्बल उत्तराधिकारियों के कारण शोचनीय अवस्था में थी। भारत की इस राजनीतिक दुर्बलता ने तैमूर को भारत पर आक्रमण करने का स्वयं सुअवसर प्रदान दिया।

1761 मेँ भारत से एक हिस्सा अलग हुआ, इस्लामिक राष्ट्र बना - नाम है अफगानिस्तान
ईसापूर्व २३० में मौर्य शासन के तहत अफ़ग़ानिस्तान का संपूर्ण इलाका आ चुका था पर मौर्यों का शासन अधिक दिनों तक नहीं रहा। इसके बाद पार्थियन और फ़िर सासानी शासकों ने फ़ारस में केन्द्रित अपने साम्राज्यों का हिस्सा इसे बना लिया। सासनी वंशइस्लाम के आगमन से पूर्व का आखिरी ईरानी वंश था। अरबों ने ख़ुरासान पर सन् ७०७ में अधिकार कर लिया। सामानी वंश, जो फ़ारसी मूल के पर सुन्नी थे, ने ९८७ इस्वी में अपना शासन गजनवियों को खो दिया जिसके फलस्वरूप लगभग संपूर्ण अफ़ग़ानिस्तान ग़ज़नवियों के हाथों आ गया। ग़ोर के शासकों ने गज़नी पर ११८३ में अधिकार कर लिया
 1500 मेँ एक हिन्दू राष्ट्र इस्लामिक राष्ट्र बना - नाम है   इंडोनेशिया 
मजापहित साम्राज्य इंडोनेशिया में १२९३-१५०० तक चला। इस हिन्दू साम्राज्य में देश बहुत महान बना और इसे स्वर्ण युग माना जाता है।
हयाम वुरुक इसका सबसे शक्तिशाली और सफल सम्राट था।

1947 मेँ भारत से एक हिस्सा अलग हुआ, इस्लामिक राष्ट्र बना - नाम है पाकिस्तान

भारत से अंग्रेज जब जाने को तैयार हुए तो दावेदार सामने आये नेहरू और जिन्ना दोनों में अहम् की लड़ाई थी । दो कानून मंत्री के दावेदार आये आंबेडकर और जोगेन्दर । जब कांग्रेस ने जोगेन्दर मंडल को  मंत्रालय देने से इंकार किया तो दलित मुसलमान एकता का नारा  और मूलनिवासी जिंदाबाद का नारा दिया ।  क्योंकि अंग्रेज ने अमेरिका में मूलनिवासी का नारा देकर आदिवासी को  बर्बरता से  मरवाया था ।  जिसे मूलनिवासी दिन ( कोलंबस डे ) के नाम से मानते है । अंग्रेज भारत में भी मूलनिवासी का प्रोपेगेंडा फैला दिया था ।  जोगेन्दर नाथ मंडल  ने  जिन्ना का साथ दिया । जिन्ना का साथ देकर पाकिस्तान बनाया और कानून मंत्री बना । 

दलित नेता : भीम राव आंबेडकर बनाम जोगेंद्र नाथ मंडल

Monday, 15 August 2016

दलित - मुस्लिम एकता की सच्चाई

दलित - मुस्लिम एकता की सच्चाई ।

हमने आपको पहले ही बता दिया हूँ । हिन्दू वैदिक धर्म में कही कोई अछूत नही है । लगभग जितने भी आज दलित है इनका वर्ण ब्राह्मण या क्षत्रिय था । पहले वर्ण का निर्धारण स्वाभाव , गुण  और कर्म  के अनुसार होता था । भारत में   कोई अछूत नही था । मुग़ल ने ही अछूत का जिक्र किया । उसके बाद उनके अत्याचार और धोखा का अंत दिखयी दे  नही रहा है ।

भारत ने अपना संविधान सब कुछ लगा दिया दलित को उद्धार के लिए हिंदुस्तान ने भीम राव आंबेडकर को कहा की ऐसा संविधान बनाया जाय जिससे दलित का भला हो । अमबेडकर को भारत ने सम्मान दिया ।

वही एक और दलित नेता जोगेंद्र नाथ मंडल था । जिसने पाकिस्तान का सहयोग किया मंत्री भी बना । खुद तो इस्तीफा देकर भारत भाग आया और करोड़ों दलित को मुसलमानों के हाथो मरवाने का कारन बना । भारत बंटवारा और दलित नेता जोगेंद्र नाथ मंडल का सच जाने ।

जोगेंद्र नाथ मंडल ने जिन्ना का साथ दिया और मुसलमान को गले लगाया दलित- मुसलिम भाई भाई का नारा दिया था । मूलनिवासी जिंदाबाद कहा ।  जिन्ना के इसारे पर जोगेंद्र नाथ मंडल ने मुस्लिम - दलित साथ मिलकर  भारत के खिलाफ जंग छेड़ दी ।  बंगाल, असम  में सवर्णो की खून की होली खेली । कलकत्ता की धरती खून से लाल हो गयी ।  जिन्ना ने कहा हम  बर्बाद भारत या अलग भारत चाहिए । जो आंदोलन का अंत बिहार में हुआ । बिहार में बखूबी इस खून की होली का बदला लिया गया ।  इस मुस्लिम - दलित आंदोलन के कारन भारत का  विभाजन पूर्वी पाकिस्तान के नाम से हुआ जिसका आज नाम बांग्लादेश है ।  
जब पाकिस्तान बना तो लाखो हिन्दू पाकिस्तान चले गये इनमे से अधिकतर हमारे दलित भाईओं के परिवार थे जिन्हें विश्वास था मुसलमान उनका साथ देंगे, उन्हें अपनाएंगे | लेकिन उनके साथ क्या हुआ, इसे जानना जरूरी है | दिल दहला देने वाली इस सच्चाई को वहां के कानून मंत्री ने ही लिखा था | दलित मुस्लिम भाईचारे के पैरोकार मंडल को मुसलमानो ने दिया था धोखा ।

जोगेंद्र नाथ मंडल का जन्म बंगाल के बरीसल जिले के मइसकड़ी में हुआ था | वो एक पिछड़ी जाति से आते थे | इनकी माता का नाम संध्या और पिताजी का नाम रामदयाल मंडल था | जोगेन्द्रनाथ मंडल 6 भाई-बहन थे जिनमे ये सबसे छोटे थे | जोगेंद्र ने सन 1924 में इंटर और सन 1929 में बी. ए. पास कर पोस्ट-ग्रेजुएशन की पढ़ाई पहले ढाका और बाद में कलकत्ता विश्व-विद्यालय से पूरी की थी | सन 1937 में उन्हें जिला काउन्सिल के लिए मनोनीत किया गया | इसी वर्ष उन्हें बंगाल लेजिस्लेटिव काउन्सिल का सदस्य चुना गया | सन 1939-40 तक वे कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के करीब आये मगर, जल्दी ही उन्हें एहसास हो गया कि कांग्रेस के एजेंडे में उसके अपने समाज के लिए ज्यादा कुछ करने की इच्छा नहीं है | इसके बाद वो मुस्लिम लीग से जुड़ गये | जोगेंद्र नाथ मंडल मुस्लिम लीग के खास सदस्यों में से एक थे|

1946 में चुनाव के ब्रिटिशराज में अंतिम सरकार बनी तो कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों ने अपने प्रतिनिधियों को चुना जो कि मंत्री के तौर पर सरकार में काम करेंगे | मुस्लिम लीग ने जोगेंद्र नाथ मंडल का नाम भेजा | पाकिस्तान निर्माण के बाद मंडल को कानून और श्रम मंत्री बनाया गया | जिन्ना को जोगेंद्र नाथ मंडल पर भरोसा था | वो मुहम्मद अली जिन्ना के काफी करीबी थे| दरअसल जोगेंद्र ने ही अपनी ताकत से असम के सयलहेट को पाकिस्तान में मिला दिया था | 3 जून 1947 की घोषणा के बाद असम के सयलहेट को जनमत संग्रह से यह तय करना था कि वो पाकिस्तान का हिस्सा बनेगा या भारत का | उस इलाकें में हिंदू-मुस्लिम की संख्या बराबर थी | जिन्ना ने इलाके में मंडल को भेजा, मंडल ने वहां दलितों का मत पाकिस्तान के पक्ष में झुका दिया जिसके बाद सयलहेट पाकिस्तान का हिस्सा बना | आज वो बांग्लादेश में हैं |
पाकिस्तान निर्माण के कुछ वक्त बाद गैर मुस्लिमो को निशाना बनाया जाने लगा | हिन्दुओ के साथ लूटमार, बलात्कार की घटनाएँ सामने आने लगी | मंडल ने इस विषय पर सरकार को कई खत लिखे लेकिन सरकार ने उनकी एक न सुनी | जोगेंद्र नाथ मंडल को बाहर करने के लिये उनकी देशभक्ति पर संदेह किया जाने लगा| मंडल को इस बात का एहसास हुआ जिस पाकिस्तान को उन्होंने अपना घर समझा था वो उनके रहने लायक नहीं है | मंडल बहुत आहात हुए, उन्हें विश्वास था पाकिस्तान में दलितों के साथ अन्याय नहीं होगा | करीबन दो सालों में ही दलित-मुस्लिम एकता का मंडल का ख्बाब टूट गया | जिन्ना की मौत के बाद मंडल 8 अक्टूबर, 1950 को लियाकत अलीखां के मंत्री-मंडल से त्याग पत्र देकर भारत आ गये |

जोगेंद्र नाथ मंडल ने अपने खत में मुस्लिम लीग से जुड़ने और अपने इस्तीफे की वजह को स्पष्ट किया, जिसके कुछ अंश यहाँ है | मंडल ने अपने खत में लिखा, 'बंगाल में मुस्लिम और दलितों की एक जैसी हालात थी | दोनों ही पिछड़े, मछुआरे, अशिक्षित थे | मुझे आश्वस्त किया गया था लीग के साथ मेरे सहयोग से ऐसे कदम उठाये जायेंगे जिससे बंगाल की बड़ी आबादी का भला होगा | हम मिलकर ऐसी आधारशिला रखेंगे जिससे साम्प्रदायिक शांति और सौहादर्य बढ़ेगा | इन्ही कारणों से मैंने मुस्लिम लीग का साथ दिया | 1946 में पाकिस्तान के निर्माण के लिये मुस्लिम लीग ने 'डायरेक्ट एक्शन डे' मनाया | जिसके बाद बंगाल में भीषण दंगे हुए | कलकत्ता के नोआखली नरसंहार में पिछड़ी जाति समेत कई हिन्दुओ की हत्याएं हुई, सैकड़ों ने इस्लाम कबूल लिया | हिंदू महिलाओं का बलात्कार, अपहरण किया गया | इसके बाद मैंने दंगा प्रभावित इलाकों का दौरा किया | मैने हिन्दुओ के भयानक दुःख देखे जिनसे अभिभूत हूँ लेकिन फिर भी मैंने मुस्लिम लीग के साथ सहयोग की नीति को जारी रखा |
14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान बनने के बाद मुझे मंत्रीमंडल में शामिल किया गया | मैंने ख्वाजा नजीममुद्दीन से बात कर ईस्ट बंगाल की कैबिनेट में दो पिछड़ी जाति के लोगो को शामिल करने का अनुरोध किया | उन्होंने मुझसे ऐसा करने का वादा किया | लेकिन इसे टाल दिया गया जिससे मै बहुत हताश हुआ|

मंडल ने अपने खत में पाकिस्तान में दलितों पर हुए अत्याचार की कई घटनाओं जिक्र किया उन्होंने लिखा, 'गोपालगंज के पास दीघरकुल (Digharkul ) में मुस्लिम की झूटी शिकायत पर स्थानीय नमोशूद्राय लोगो के साथ क्रूर अत्याचार किया गया | पुलिस के साथ मिलकर मुसलमानों ने मिलकर नमोशूद्राय समाज के लोगो को पीटा, घरों में छापे मारे | एक गर्भवती महिला की इतनी बेरहमी से पिटाई की गयी कि उसका मौके पर ही गर्भपात हो गया | निर्दोष हिन्दुओ विशेष रूप से पिछड़े समुदाय के लोगो पर सेना और पुलिस ने भी हिंसा को बढ़ावा दिया | सयलहेट जिले के हबीबगढ़ में निर्दोष पुरुषो और महिलाओं को पीटा गया | सेना ने न केबल लोगो को पीटा बल्कि हिंदू पुरुषो को उनकी महिलाओं सैन्य शिविरों में भेजने के मजबूर किया ताकि वो सेना की कामुक इच्छाओं को पूरा कर सके | मैं इस मामले को आपके संज्ञान में लाया था, मुझे इस मामले में रिपोर्ट के लिये आश्वस्त किया गया लेकिन रिपोर्ट नहीं आई |

खुलना (Khulna) जिले कलशैरा (Kalshira) में सशस्त्र पुलिस, सेना और स्थानीय लोगो ने निर्दयता से पुरे गाँव पर हमला किया | कई महिलाओं का पुलिस, सेना और स्थानीय लोगो द्वारा बलात्कार किया गया | मैने 28 फरवरी 1950 को कलशैरा और आसपास के गांवों का दौरा किया | जब मैं कलशैरा में आया तो देखा यहाँ जगह उजाड़ और खंडहर में बदल गयी | यहाँ करीबन 350 घरों को ध्वस्त कर दिया गया | मैंने तथ्यों के साथ आपको सूचना दी |
ढाका में नौ दिनों के प्रवास के दौरान में दंगा प्रभावित इलाकों का दौरा किया | ढाका-नारायणगंज और ढाका-चंटगाँव के बीच ट्रेनों और पटरियों पर निर्दोष हिन्दुओ की हत्याओं ने मुझे गहरा झटका दिया | मैंने ईस्ट बंगाल के मुख्यमंत्री से मुलाकर कर दंगा प्रसार को रोकने के लिये जरूरी कदमों को उठाने का आग्रह किया| 20 फरवरी 1950 को मैं बरिसाल (Barisal) पहुंचा | यहाँ की घटनाओं के बारे में जानकार में चकित था | यहाँ बड़ी संख्या में हिन्दुओ को जला दिया गया | उनकी बड़ी संख्या को खत्म कर दिया गया | मैंने जिले में लगभग सभी दंगा प्रभावित इलाकों का दौरा किया | मधापाशा (Madhabpasha) में जमींदार के घर में 200 लोगो की मौत हुई और 40 घायल थे | एक जगह है मुलादी (Muladi ), प्रत्यक्षदर्शी ने यहाँ भयानक नरक देखा | यहाँ 300 लोगो का कत्लेआम हुआ | वहां गाँव में शवो के कंकाल भी देखे | नदी किनारे गिद्द और कुत्ते लाशो को खा रहे थे | यहाँ सभी पुरुषो की हत्याओं के बाद लड़कियों को आपस में बाँट लिया गया | राजापुर में 60 लोग मारे गये | बाबूगंज (Babuganj) में हिन्दुओ की सभी दुकानों को लूट आग लगा दी गयी | ईस्ट बंगाल के दंगे में अनुमान के मुताबिक 10000 लोगो की हत्याएं हुई | अपने आसपास महिलाओं और बच्चो को विलाप करते हुए मेरा दिल पिघल गया | मैंने अपने आप से पूछा, 'क्या मै इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान आया था |''

मंडल ने अपने खत में आगे लिखा, 'ईस्ट बंगाल में आज क्या हालात हैं? विभाजन के बाद 5 लाख हिन्दुओ ने देश छोड़ दिया है | मुसलमानों द्वारा हिंदू वकीलों, हिंदू डॉक्टरों, हिंदू व्यापारियों, हिंदू दुकानदारों के बहिष्कार के बाद उन्हें आजीविका के लिये पलायन करने के लिये मजबूर होना पड़ा | मुझे मुसलमानों द्वारा पिछड़ी जाति की लडकियों के साथ बलात्कार की जानकारी मिली है | हिन्दुओ द्वारा बेचे गये सामान की मुसलमान खरीददार पूरी कीमत नहीं दे रहे हैं | तथ्य की बात यह है पाकिस्तान में न कोई न्याय है, न कानून का राज इसीलिए हिंदू चिंतित हैं |

पूर्वी पाकिस्तान के अलावा पश्चिमी पाकिस्तान में भी ऐसे ही हालात हैं | विभाजन के बाद पश्चिमी पंजाब में 1 लाख पिछड़ी जाति के लोग थे उनमे से बड़ी संख्या को बलपूर्वक इस्लाम में परिवर्तित किया गया है | मुझे एक लिस्ट मिली है जिसमे 363 मंदिरों और गुरूद्वारे मुस्लिमों के कब्जे में हैं | इनमे से कुछ को मोची की दुकान, कसाईखाना और होटलों में तब्दील कर दिया है | मुझे जानकारी मिली है सिंध में रहने वाली पिछड़ी जाति की बड़ी संख्या को जबरन मुसलमान बनाया गया है | इन सबका कारण एक है | हिंदू धर्म को मानने के अलावा इनकी कोई गलती नहीं है |

जोगेंद्र नाथ मंडल ने अंत में लिखा, 'पाकिस्तान की पूर्ण तस्वीर तथा उस निर्दयी एवं कठोर अन्याय को एक तरफ रखते हुए, मेरा अपना तजुर्बा भी कुछ कम दुखदायी, पीड़ादायक नहीं है | आपने अपने प्रधानमंत्री और संसदीय पार्टी के पद का उपयोग करते हुए मुझसे एक वक्तव्य जारी करवाया था, जो मैंने 8 सितम्बर को दिया था | आप जानतें हैं मेरी ऐसी मंशा नहीं थी कि मै ऐसे असत्य और असत्य से भी बुरे अर्धसत्य भरा वक्तव्य जारी करूं | जब तक मै मंत्री के रूप में आपके साथ और आपके नेतृत्व में काम कर रहा था मेरे लिये आपके आग्रह को ठुकरा देना मुमकिन नहीं था पर अब मै इससे ज्यादा झूठे दिखाबे तथा असत्य के बोझ को अपनी अंतरात्मा पर नहीं लाद सकता | मै यह निश्चय किया कि मै आपके मंत्री के तौर पर अपना इस्तीफे का प्रस्ताव आपको दूँ, जो कि मै आपके हाथों में थमा रहा हूँ | मुझे उम्मीद है आप बिना किसी देरी के इसे स्वीकार करेंगे | आप बेशक इस्लामिक स्टेट के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए इस पद को किसी को देने के लिये स्वतंत्र हैं |'
पाकिस्तान में मंत्रिमंडल से इस्तीफे के बाद जोगेंद्र नाथ मंडल भारत आ गये | कुछ वर्ष गुमनामी की जिन्दगी जीने के बाद 5 अक्टूबर, 1968 को पश्चिम बंगाल में उन्होंने अंतिम सांस ली |
wiki pedia : Jogendra_Nath_Mandal
भारत में दलित गद्दार नेता की कमी नहीं है । जिसने आजादी के समय पाकिस्तान का साथ दिया था ।


दलित - मुस्लिम एकता की सच्चाई

दलित - मुस्लिम एकता की सच्चाई ।

हमने आपको पहले ही बता दिया हूँ । हिन्दू वैदिक धर्म में कही कोई अछूत नही है । लगभग जितने भी आज दलित है इनका वर्ण ब्राह्मण या क्षत्रिय था । पहले वर्ण का निर्धारण स्वाभाव , गुण  और कर्म  के अनुसार होता था । भारत में   कोई अछूत नही था । मुग़ल ने ही अछूत का जिक्र किया । उसके बाद उनके अत्याचार और धोखा का अंत दिखयी दे  नही रहा है ।


भारत ने अपना संविधान सब कुछ लगा दिया दलित को उद्धार के लिए हिंदुस्तान ने भीम राव आंबेडकर को कहा की ऐसा संविधान बनाया जाय जिससे दलित का भला हो । अमबेडकर को भारत ने सम्मान दिया ।

वही एक और दलित नेता जोगेंद्र नाथ मंडल था । जिसने पाकिस्तान का सहयोग किया मंत्री भी बना । खुद तो इस्तीफा देकर भारत भाग आया और करोड़ों दलित को मुसलमानों के हाथो मरवाने का कारन बना । भारत बंटवारा और दलित नेता जोगेंद्र नाथ मंडल का सच जाने ।
जोगेंद्र नाथ मंडल ने जिन्ना का साथ दिया और मुसलमान को गले लगाया दलित- मुसलिम भाई भाई का नारा दिया था । मूलनिवासी जिंदाबाद कहा ।  जिन्ना के इसारे पर जोगेंद्र नाथ मंडल ने मुस्लिम - दलित साथ मिलकर  भारत के खिलाफ जंग छेड़ दी ।  बंगाल, असम  में सवर्णो की खून की होली खेली । कलकत्ता की धरती खून से लाल हो गयी ।  जिन्ना ने कहा हम  बर्बाद भारत या अलग भारत चाहिए । जो आंदोलन का अंत बिहार में हुआ । बिहार में बखूबी इस खून की होली का बदला लिया गया ।  इस मुस्लिम - दलित आंदोलन के कारन भारत का  विभाजन पूर्वी पाकिस्तान के नाम से हुआ जिसका आज नाम बांग्लादेश है ।  
रिपोर्ट देखे विडियो
जब पाकिस्तान बना तो लाखो हिन्दू पाकिस्तान चले गये इनमे से अधिकतर हमारे दलित भाईओं के परिवार थे जिन्हें विश्वास था मुसलमान उनका साथ देंगे, उन्हें अपनाएंगे | लेकिन उनके साथ क्या हुआ, इसे जानना जरूरी है | दिल दहला देने वाली इस सच्चाई को वहां के कानून मंत्री ने ही लिखा था | दलित मुस्लिम भाईचारे के पैरोकार मंडल को मुसलमानो ने दिया था धोखा ।

जोगेंद्र नाथ मंडल का जन्म बंगाल के बरीसल जिले के मइसकड़ी में हुआ था | वो एक पिछड़ी जाति से आते थे | इनकी माता का नाम संध्या और पिताजी का नाम रामदयाल मंडल था | जोगेन्द्रनाथ मंडल 6 भाई-बहन थे जिनमे ये सबसे छोटे थे | जोगेंद्र ने सन 1924 में इंटर और सन 1929 में बी. ए. पास कर पोस्ट-ग्रेजुएशन की पढ़ाई पहले ढाका और बाद में कलकत्ता विश्व-विद्यालय से पूरी की थी | सन 1937 में उन्हें जिला काउन्सिल के लिए मनोनीत किया गया | इसी वर्ष उन्हें बंगाल लेजिस्लेटिव काउन्सिल का सदस्य चुना गया | सन 1939-40 तक वे कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के करीब आये मगर, जल्दी ही उन्हें एहसास हो गया कि कांग्रेस के एजेंडे में उसके अपने समाज के लिए ज्यादा कुछ करने की इच्छा नहीं है | इसके बाद वो मुस्लिम लीग से जुड़ गये | जोगेंद्र नाथ मंडल मुस्लिम लीग के खास सदस्यों में से एक थे|

1946 में चुनाव के ब्रिटिशराज में अंतिम सरकार बनी तो कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों ने अपने प्रतिनिधियों को चुना जो कि मंत्री के तौर पर सरकार में काम करेंगे | मुस्लिम लीग ने जोगेंद्र नाथ मंडल का नाम भेजा | पाकिस्तान निर्माण के बाद मंडल को कानून और श्रम मंत्री बनाया गया | जिन्ना को जोगेंद्र नाथ मंडल पर भरोसा था | वो मुहम्मद अली जिन्ना के काफी करीबी थे| दरअसल जोगेंद्र ने ही अपनी ताकत से असम के सयलहेट को पाकिस्तान में मिला दिया था | 3 जून 1947 की घोषणा के बाद असम के सयलहेट को जनमत संग्रह से यह तय करना था कि वो पाकिस्तान का हिस्सा बनेगा या भारत का | उस इलाकें में हिंदू-मुस्लिम की संख्या बराबर थी | जिन्ना ने इलाके में मंडल को भेजा, मंडल ने वहां दलितों का मत पाकिस्तान के पक्ष में झुका दिया जिसके बाद सयलहेट पाकिस्तान का हिस्सा बना | आज वो बांग्लादेश में हैं |
पाकिस्तान निर्माण के कुछ वक्त बाद गैर मुस्लिमो को निशाना बनाया जाने लगा | हिन्दुओ के साथ लूटमार, बलात्कार की घटनाएँ सामने आने लगी | मंडल ने इस विषय पर सरकार को कई खत लिखे लेकिन सरकार ने उनकी एक न सुनी | जोगेंद्र नाथ मंडल को बाहर करने के लिये उनकी देशभक्ति पर संदेह किया जाने लगा| मंडल को इस बात का एहसास हुआ जिस पाकिस्तान को उन्होंने अपना घर समझा था वो उनके रहने लायक नहीं है | मंडल बहुत आहात हुए, उन्हें विश्वास था पाकिस्तान में दलितों के साथ अन्याय नहीं होगा | करीबन दो सालों में ही दलित-मुस्लिम एकता का मंडल का ख्बाब टूट गया | जिन्ना की मौत के बाद मंडल 8 अक्टूबर, 1950 को लियाकत अलीखां के मंत्री-मंडल से त्याग पत्र देकर भारत आ गये |

जोगेंद्र नाथ मंडल ने अपने खत में मुस्लिम लीग से जुड़ने और अपने इस्तीफे की वजह को स्पष्ट किया, जिसके कुछ अंश यहाँ है | मंडल ने अपने खत में लिखा, 'बंगाल में मुस्लिम और दलितों की एक जैसी हालात थी | दोनों ही पिछड़े, मछुआरे, अशिक्षित थे | मुझे आश्वस्त किया गया था लीग के साथ मेरे सहयोग से ऐसे कदम उठाये जायेंगे जिससे बंगाल की बड़ी आबादी का भला होगा | हम मिलकर ऐसी आधारशिला रखेंगे जिससे साम्प्रदायिक शांति और सौहादर्य बढ़ेगा | इन्ही कारणों से मैंने मुस्लिम लीग का साथ दिया | 1946 में पाकिस्तान के निर्माण के लिये मुस्लिम लीग ने 'डायरेक्ट एक्शन डे' मनाया | जिसके बाद बंगाल में भीषण दंगे हुए | कलकत्ता के नोआखली नरसंहार में पिछड़ी जाति समेत कई हिन्दुओ की हत्याएं हुई, सैकड़ों ने इस्लाम कबूल लिया | हिंदू महिलाओं का बलात्कार, अपहरण किया गया | इसके बाद मैंने दंगा प्रभावित इलाकों का दौरा किया | मैने हिन्दुओ के भयानक दुःख देखे जिनसे अभिभूत हूँ लेकिन फिर भी मैंने मुस्लिम लीग के साथ सहयोग की नीति को जारी रखा |
14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान बनने के बाद मुझे मंत्रीमंडल में शामिल किया गया | मैंने ख्वाजा नजीममुद्दीन से बात कर ईस्ट बंगाल की कैबिनेट में दो पिछड़ी जाति के लोगो को शामिल करने का अनुरोध किया | उन्होंने मुझसे ऐसा करने का वादा किया | लेकिन इसे टाल दिया गया जिससे मै बहुत हताश हुआ|

मंडल ने अपने खत में पाकिस्तान में दलितों पर हुए अत्याचार की कई घटनाओं जिक्र किया उन्होंने लिखा, 'गोपालगंज के पास दीघरकुल (Digharkul ) में मुस्लिम की झूटी शिकायत पर स्थानीय नमोशूद्राय लोगो के साथ क्रूर अत्याचार किया गया | पुलिस के साथ मिलकर मुसलमानों ने मिलकर नमोशूद्राय समाज के लोगो को पीटा, घरों में छापे मारे | एक गर्भवती महिला की इतनी बेरहमी से पिटाई की गयी कि उसका मौके पर ही गर्भपात हो गया | निर्दोष हिन्दुओ विशेष रूप से पिछड़े समुदाय के लोगो पर सेना और पुलिस ने भी हिंसा को बढ़ावा दिया | सयलहेट जिले के हबीबगढ़ में निर्दोष पुरुषो और महिलाओं को पीटा गया | सेना ने न केबल लोगो को पीटा बल्कि हिंदू पुरुषो को उनकी महिलाओं सैन्य शिविरों में भेजने के मजबूर किया ताकि वो सेना की कामुक इच्छाओं को पूरा कर सके | मैं इस मामले को आपके संज्ञान में लाया था, मुझे इस मामले में रिपोर्ट के लिये आश्वस्त किया गया लेकिन रिपोर्ट नहीं आई |

खुलना (Khulna) जिले कलशैरा (Kalshira) में सशस्त्र पुलिस, सेना और स्थानीय लोगो ने निर्दयता से पुरे गाँव पर हमला किया | कई महिलाओं का पुलिस, सेना और स्थानीय लोगो द्वारा बलात्कार किया गया | मैने 28 फरवरी 1950 को कलशैरा और आसपास के गांवों का दौरा किया | जब मैं कलशैरा में आया तो देखा यहाँ जगह उजाड़ और खंडहर में बदल गयी | यहाँ करीबन 350 घरों को ध्वस्त कर दिया गया | मैंने तथ्यों के साथ आपको सूचना दी |
ढाका में नौ दिनों के प्रवास के दौरान में दंगा प्रभावित इलाकों का दौरा किया | ढाका-नारायणगंज और ढाका-चंटगाँव के बीच ट्रेनों और पटरियों पर निर्दोष हिन्दुओ की हत्याओं ने मुझे गहरा झटका दिया | मैंने ईस्ट बंगाल के मुख्यमंत्री से मुलाकर कर दंगा प्रसार को रोकने के लिये जरूरी कदमों को उठाने का आग्रह किया| 20 फरवरी 1950 को मैं बरिसाल (Barisal) पहुंचा | यहाँ की घटनाओं के बारे में जानकार में चकित था | यहाँ बड़ी संख्या में हिन्दुओ को जला दिया गया | उनकी बड़ी संख्या को खत्म कर दिया गया | मैंने जिले में लगभग सभी दंगा प्रभावित इलाकों का दौरा किया | मधापाशा (Madhabpasha) में जमींदार के घर में 200 लोगो की मौत हुई और 40 घायल थे | एक जगह है मुलादी (Muladi ), प्रत्यक्षदर्शी ने यहाँ भयानक नरक देखा | यहाँ 300 लोगो का कत्लेआम हुआ | वहां गाँव में शवो के कंकाल भी देखे | नदी किनारे गिद्द और कुत्ते लाशो को खा रहे थे | यहाँ सभी पुरुषो की हत्याओं के बाद लड़कियों को आपस में बाँट लिया गया | राजापुर में 60 लोग मारे गये | बाबूगंज (Babuganj) में हिन्दुओ की सभी दुकानों को लूट आग लगा दी गयी | ईस्ट बंगाल के दंगे में अनुमान के मुताबिक 10000 लोगो की हत्याएं हुई | अपने आसपास महिलाओं और बच्चो को विलाप करते हुए मेरा दिल पिघल गया | मैंने अपने आप से पूछा, 'क्या मै इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान आया था |''

मंडल ने अपने खत में आगे लिखा, 'ईस्ट बंगाल में आज क्या हालात हैं? विभाजन के बाद 5 लाख हिन्दुओ ने देश छोड़ दिया है | मुसलमानों द्वारा हिंदू वकीलों, हिंदू डॉक्टरों, हिंदू व्यापारियों, हिंदू दुकानदारों के बहिष्कार के बाद उन्हें आजीविका के लिये पलायन करने के लिये मजबूर होना पड़ा | मुझे मुसलमानों द्वारा पिछड़ी जाति की लडकियों के साथ बलात्कार की जानकारी मिली है | हिन्दुओ द्वारा बेचे गये सामान की मुसलमान खरीददार पूरी कीमत नहीं दे रहे हैं | तथ्य की बात यह है पाकिस्तान में न कोई न्याय है, न कानून का राज इसीलिए हिंदू चिंतित हैं |

पूर्वी पाकिस्तान के अलावा पश्चिमी पाकिस्तान में भी ऐसे ही हालात हैं | विभाजन के बाद पश्चिमी पंजाब में 1 लाख पिछड़ी जाति के लोग थे उनमे से बड़ी संख्या को बलपूर्वक इस्लाम में परिवर्तित किया गया है | मुझे एक लिस्ट मिली है जिसमे 363 मंदिरों और गुरूद्वारे मुस्लिमों के कब्जे में हैं | इनमे से कुछ को मोची की दुकान, कसाईखाना और होटलों में तब्दील कर दिया है | मुझे जानकारी मिली है सिंध में रहने वाली पिछड़ी जाति की बड़ी संख्या को जबरन मुसलमान बनाया गया है | इन सबका कारण एक है | हिंदू धर्म को मानने के अलावा इनकी कोई गलती नहीं है |

जोगेंद्र नाथ मंडल ने अंत में लिखा, 'पाकिस्तान की पूर्ण तस्वीर तथा उस निर्दयी एवं कठोर अन्याय को एक तरफ रखते हुए, मेरा अपना तजुर्बा भी कुछ कम दुखदायी, पीड़ादायक नहीं है | आपने अपने प्रधानमंत्री और संसदीय पार्टी के पद का उपयोग करते हुए मुझसे एक वक्तव्य जारी करवाया था, जो मैंने 8 सितम्बर को दिया था | आप जानतें हैं मेरी ऐसी मंशा नहीं थी कि मै ऐसे असत्य और असत्य से भी बुरे अर्धसत्य भरा वक्तव्य जारी करूं | जब तक मै मंत्री के रूप में आपके साथ और आपके नेतृत्व में काम कर रहा था मेरे लिये आपके आग्रह को ठुकरा देना मुमकिन नहीं था पर अब मै इससे ज्यादा झूठे दिखाबे तथा असत्य के बोझ को अपनी अंतरात्मा पर नहीं लाद सकता | मै यह निश्चय किया कि मै आपके मंत्री के तौर पर अपना इस्तीफे का प्रस्ताव आपको दूँ, जो कि मै आपके हाथों में थमा रहा हूँ | मुझे उम्मीद है आप बिना किसी देरी के इसे स्वीकार करेंगे | आप बेशक इस्लामिक स्टेट के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए इस पद को किसी को देने के लिये स्वतंत्र हैं |'
पाकिस्तान में मंत्रिमंडल से इस्तीफे के बाद जोगेंद्र नाथ मंडल भारत आ गये | कुछ वर्ष गुमनामी की जिन्दगी जीने के बाद 5 अक्टूबर, 1968 को पश्चिम बंगाल में उन्होंने अंतिम सांस ली |
wiki pedia : Jogendra_Nath_Mandal
भारत में दलित गद्दार नेता की कमी नहीं है । मुलायम, ममता, केजरीवाल, मायावती, लालू, नितीश सब दलित नेता जोगेंद्र नाथ मंडल की राह पर है । जिसने आजादी के समय पाकिस्तान का साथ दिया था ।


Sunday, 14 August 2016

धर्मान्तरण के बाद भी जाति से मुक्ति नही

भारत में भले ही आप जाति छोड़ दें लेकिन जाति आपको नहीं छोड़ती. 

आप चाहे मुस्लिम सिख ईसाई बौद्ध कुछ भी बन जाओ पर जातिगत भेदभाव आपका साथ नही छोड़ती । धर्मान्तरण विकल्प नही । अपने धर्म रहकर संघर्ष करो । जल्द सफल हो जाओगे ।  

'दलित मुसलमानों के घर न जाते हैं, न खाते हैं'

  • 10 मई 2016

अंबेडकरImage copyrightDEEKSHABHOOMI

भारत के सबसे बड़े नेताओं में से एक और दलितों के सबसे बड़े नेता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने कहा था "छुआछूत गुलामी से भी बदतर है".
भारत में दलित (जिन्हें पहले अछूत कहा जाता था) सबसे ख़राब स्थितियों में जीते हैं क्योंकि हिंदुओं की जाति व्यवस्था उन्हें समाज में सबसे निचले स्थान पर रखती है.
हालांकि हिंदुओं में छुआछूत के बहुत सारे प्रमाण हैं और इस पर बहुत चर्चा भी हुई है लेकिन भारत के मुसलमानों के बीच छुआछूत पर बमुश्किल ही बात की गई है.
इसकी एक वजह तो यह है कि इस्लाम में जाति नहीं है और यह समानता और समतावाद को बढ़ावा देता है.
भारत के 14 करोड़ मुसलमानों में से ज़्यादातर स्थानीय हैं जिन्होंने धर्मपरिवर्तन किया है. अधिकतर ने हिंदू उच्च-जातियों के उत्पीड़न से बचने के लिए इस्लाम ग्रहण किया.
सामाजिक रूप से पिछड़े मुसलमानों के एक संगठन के प्रतिनिधि एजाज़ अली के अनुसार वर्तमान भारतीय मुसलमान की 75 फ़ीसदी दलित आबादी इन्हीं की है जिन्हें दलित मुसलमान कहा जाता है.

भारतीय मुसलमानImage copyrightAFP

इस विषय पर काम करने वाले राजनीति विज्ञानी डॉक्टर आफ़ताब आलम कहते हैं, "भारत और दक्षिण एशिया में रहने वाले मुसलमानों के लिए जाति और छुआ-छूत जीवन की एक सच्चाई है."
अध्ययनों से पता चलता है कि "छुआछूत इस समुदाय का सबसे ज़्यादा छुपाया गया रहस्य है. शुद्धता और अशुद्धता का विचार; साफ़ और गंदी जातियां" मुसलमानों के बीच मौजूद हैं.
अली अलवर की एक किताब के अनुसार हिंदुओं में दलितों को अस्पृश्य कहा जाता है तो मुसलमान उन्हें अर्ज़ाल (ओछा) कहते हैं.
डॉक्टर आलम के साल 2009 में किए एक अध्ययन के अनुसार किसी भी प्रमुख मुस्लिम संगठन में एक भी 'दलित मुसलमान' नहीं था और इन सब पर 'उच्च जाति' के मुसलमानों ही प्रभावी थे.
अब कुछ शोधकर्ताओं के समूह के किए अपनी तरह के पहले बड़े अध्ययन से पता चला है कि भारतीय मुसलमानों के बीच भी छुआछूत का अभिशाप मौजूद है.
प्रशांत के त्रिवेदी, श्रीनिवास गोली, फ़ाहिमुद्दीन और सुरेंद्र कुमार ने अक्टूबर 2014 से अप्रैल 2015 के बीच उत्तर प्रदेश के 14 ज़िलों के 7,000 से ज़्यादा घरों का सर्वेक्षण किया.

भारतीय मुसलमानImage copyrightAP

उनके अध्ययन के कुछ निष्कर्ष इस प्रकार हैः
• 'दलित मुसलमानों' के एक बड़े हिस्से का कहना है कि उन्हें गैर-दलितों की ओर से शादियों की दावत में निमंत्रण नहीं मिलता. यह संभवतः उनके सामाजिक रूप से अलग-थलग रखे जाने के इतिहास की वजह से है.
• 'दलित मुसलमानों' के एक समूह ने कहा कि उन्हें गैर-दलितों की दावतो में अलग बैठाया जाता है. इसी संख्या के एक और समूह ने कहा कि वह लोग उच्च-जाति के लोगों के खा लेने के बाद ही खाते हैं. बहुत से लोगों ने यह भी कहा कि उन्हें अलग थाली में खाना दिया जाता है.
• करीब 8 फ़ीसदी 'दलित मुसलमानों' ने कहा कि उनके बच्चों को कक्षा में और खाने के दौरान अलग पंक्तियों में बैठाया जाता है.
• कम से कम एक तिहाई ने कहा कि उन्हें उच्च जाति के कब्रिस्तानों में अपने मुर्दे नहीं दफ़नाने दिए जाते. वह या तो उन्हें अलग जगह दफ़नाते हैं या फिर मुख्य कब्रिस्तान के एक कोने में.
• ज़्यादातर मुसलमान एक ही मस्जिद में नमाज़ पढ़ते हैं लेकिन कुछ जगहों पर 'दलित मुसलमानों' को महसूस होता है कि मुख्य मस्जिद में उनसे भेदभाव होता है.

मुसलमान भारतImage copyrightREUTERS

• 'दलित मुसलमानों' के एक उल्लेखनीय तबके ने कहा कि उन्हें ऐसा महसूस होता है कि उनके समुदाय को छोटे काम करने वाला समझा जाता है.
• 'दलित मुसलमानों' से जब उच्च जाति के हिंदू और मुसलमानों के घरों के अंदर अपने अनुभव साझा करने को कहा गया तो करीब 13 फ़ीसदी ने कहा कि उन्हें उच्च जाति के मुसलमानों के घरों में अलग बर्तनों में खाना/पानी दिया गया. उच्च जाति के हिंदू घरों की तुलना में यह अनुपात करीब 46 फ़ीसदी है.
• इसी तरह करीब 20 फ़ीसदी प्रतिभागियों को लगा कि उच्च जाति के मुसलमान उनसे दूरी बनाकर रखते हैं और 25 फ़ीसदी 'दलित मुसलमानों' के साथ को उच्च जाति के हिंदुओं ने ऐसा बर्ताव किया.
• जिन गैर-दलित मुसलमानों से बात की गई उनमें से करीब 27 फ़ीसदी की आबादी में कोई 'दलित मुसलमान' परिवार नहीं रहता था.
• 20 फ़ीसदी ने दलित मुसलमानों के साथ किसी तरह की सामाजिक संबंध होने से इनकार किया. और जो लोग 'दलित मुसलमानों' के घर जाते भी हैं उनमें से 20 फ़ीसदी उनके घरों में बैठते नहीं और 27 फ़ीसदी उनकी दी खाने की कोई चीज़ ग्रहण नहीं करते.

भारतीय मुसलमानImage copyrightAFP

• गैर-दलित मुसलमानों से पूछा गया था कि वह जब कोई दलित मुसलमान उनके घर आता है तो क्या होता है. इस पर 20 फ़ीसदी ने कहा कि कोई 'दलित मुसलमान' उनके घर नहीं आता. और जिनके घऱ 'दलित मुसलमान' आते भी हैं उनमें से कम से कम एक तिहाई ने कहा कि 'दलित मुसलमानों' को उन बर्तनों में खाना नहीं दिया जाता जिन्हें वह आमतौर पर इस्तेमाल करते हैं.
भारत में जाति के आधार पर भेदभाव सभी धार्मिक समुदायों में मौजूद है- सिखों में भी. पारसी ही शायद अपवाद हैं.
प्रशांत के त्रिवेदी कहते हैं, "आमतौर पर माना जाता है कि जाति एक हिंदू अवधारणा है क्योंकि जाति को हिंदुओं के धर्मग्रंथों से ही मान्यता मिलती है. यह औपनिवेशिक काल से सरकारों और विद्वानों की सोच पर प्रभावी रही है."
अन्य शोधार्थियों के साथ उनका मानना है कि दलित मुसलमानों और ईसाइयों को हिंदू दलितों की तरह फ़ायदे मिलने चाहिएं.

भारतीय मुसलमान

हिंदू धार्मिकता का जातिगत आरक्षण ☞ ईसाई किस प्रकार हिंदू व्यवस्था के तहत अधिकारी हैं ?
{भाग 2}

मुसलोईड्स और ईसलोईड्स  - हिंदुत्व के चोर और डाकू 

मित्रों आइये अब बात करते हैं ईसाईयों में फैले घोर जातिवाद और भेदभाव की, जब 52 ईस्वी में ईसाई मिशनरी सेंट थॉमस भारत आया तो उसने मालाबार के लोगों को धर्मांतरित करना शुरू किया।

सेंट थॉमस द्वारा धर्मान्तरित किए गए लोग खुद को नम्बूदरी ब्राह्मण बताते हैं और इसीलिए ये भारत के ईसाईयों में सबसे उच्च होते हैं। इनके ईसाईयत वर्ग को Syrian Christian कहा जाता है, ये अन्य जातियों के ईसाईयों के स्पर्श होने पर Holy Bath लेते हैं, ये शादियां भी सिर्फ खुद की जाति में ही करते हैं।

इसी तरह से केरल में Latin Christian भी खुद को ऊँची जाति का मानते हैं। इसी तरह गोवा में पुर्तगालियों ने जब जबरन धर्मान्तरण किया तो वाहन के ब्राह्मण धर्मान्तरित होकर Bamonns बन गए, वहां के Vaishya Vanis धर्मान्तरित होकर Chardos बन गए उनसे नीचा दर्जा Gauddos को दिया गया। शुद्र अर्थात तथाकथित दलित को जातिविहीन ईसाईयत में धर्मान्तरित करने के बाद Sudir नाम दिया गया और शेष बचे हुए लोग ईसाई धर्मान्तरण के बाद भी चमार और महार ही कहलाए। Pastor के पद पर Gaonkar ईसाई लोगों का ही दबदबा है।तमिलनाडु का तो हाल इससे भी बुरा है वहां के नाडर समुदाय के लोग संख्याबल में तो तमिलनाडु के ईसाईयों का केवल 3 प्रतिशत हैं लेकिन चर्च पर पूरा नियंत्रण उनका ही रहता है। भारत के ईसाईयों में 80% दलित हैं लेकिन 156 कैथोलिक Bishop में केवल 6 बिशप ही दलित हैं।अंतरजातीय विवाह तो दूर की बात है इनमें तो दलितोँ को उच्च जातीय ईसाईयों के कब्रिस्तान में शव भी नहीं दफ़नाने देते। रोमन कैथोलिक चर्च में तो बैठने की सीट से लेकर Chalice(प्याला)भी अलग होता है, बल्कि कुछ जगह तो चर्च ही अलग होते हैं। 

दलित ईसाईयों के हजारों लोग तो वापिस हिन्दू धर्म में आ रहे हैं उनका कहना है कि “इतना भेदभाव तो हिंदुओं में ही नहीं होता और कम से कम वहां आरक्षण तो मिलता है।”  

ईसाईयत में जातिवाद
मेहरबान जेम्स द्वारा लिखा गया एक जबरदस्त सच्चा लेख नीचे शेयर कर रहा हूँ गौर कीजिए –


चर्च में दलित ईसाईयों से गैर-बराबरी का यह आलम है कि दलितों के लिए बैठने का अलग स्थान, पीने के लिए पानी का अलग गिलास दफन करने के लिए कब्रिस्तान भी अलग होता है!

भारत में ईसाई धर्म की शुरूआत ही गैर-बराबरी की नींव पर हुई थी यहां उसे साफ तौर पर दो वर्गों में बंटा हुआ देखा जा सकता है, एक तरफ संपन्न वर्ग हो जो उच्च जाति से आया है जिसने अधिकांश उच्च पदों और संसाधनों पर कब्जा कर रखा है तो दूसरी ओर दलित वर्ग से धर्मांतरण कर ईसाई बने लोगों का तबका है जो इस उम्मीद में ईसाई बने थे कि ऐसा करके उन्हें हिन्दू जाति व्यवस्था के दुर्गुणों से मु्क्ति मिल जाएगी उन्हें उम्मीद थी कि ईसाई बनने के बाद वे सम्मानजनक जीवन जी सकेंगे लेकिन ईसाई बनने के बाद भी वे गैर बराबरी के शिकार बने रहे जाति ने यहां भी उनका पीछा नहीं छोड़ा!

असल में दक्षिण में ईसाईयत में भी जाति व्यवस्था अपने उसी क्रूरतम रूप में है जैसा कि हिन्दू समाज में, चेन्नई से 60 किलोमीटर दूर चेंगलपट्टू जिले के केकेपुड्डुर गांव में ढाई हजार ईसाई रहते हैं इसमें दलित ईसाईयों की तादात 1500 है, इस पूरी कैथोलिक आबादी पर नायडू व रेड्डी जाति से धर्म परिवर्तन करके आये लोगों का कब्जा है वह चर्च से लेकर कब्रिस्तान तक भेदभाव को बनाये रखते हैं और हर ईसाई त्यौहार पर इन दलितों का दोयम दर्जा कायम रहता है इस गैरबराबरी को तोड़ने के लिए सेंट जोजफ के जन्मदिन पर दलित ईसाईयों ने स्वयं कार्यक्रम आयोजित करने का फैसला किया बस इतनी सी बात पर ऊंची जाति के ईसाईयों ने उनके ऊपर हमला बोल दिया इस झगड़े में 84 लोगों को जेल जाना पड़ा और वे लोग छह महीने जेल में बंद रहे!

कर्नाटक में दलित क्रिश्चियन फेडरनेशन के संयोजक मेरी सामा कहते हैं कि हमें गांवों के कुछ क्षेत्रों में प्रवेश नहीं करने दिया जाता, सन 2000 में आंध्र प्रदेश में जब पहला दलित - निम्न जाति आर्कबिशप वेटिकन ने मनोनीत किया तो वहां काफी हंगामा हुआ और हटाये हुए तथाकथित निम्न जातीय आर्कबिशप ने सार्वजनिक बयान दिया कि भारत की जमीनी सच्चाई के बारे में वेटिकन अनभिज्ञ है !

ईसाई धर्म के तीन स्तंभ हैं - प्रीचिंग, टीचिंग और हीलिंग

इसका मतलब है कि खुदा / यीशु की इबादत करो, लोगों को शिक्षित करो और रोगियों की सेवा करो, इन तीन कामों के लिए ईसाईयों ने विश्वभर में अपनी संस्थाएं खोल रखी हैं सालाना इन संस्थाओं के माध्यम से 145 अरब डालर खर्च किये जाते हैं, चर्च संगठनों के अधीन 50 लाख से अधिक पूर्णकालिक कार्यकर्ता हैं जो कि दुनियाभर में शिक्षा के जरिए ईसाईयत के प्रसार का काम कर रहे हैं, भारत में भी लगभग सभी मिशनरियां इसी काम में लगी हुई हैं, देश के अधिकांश प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान ईसाईयों के ही हैं, तीसरा काम हीलिंग का आता है तो ईसाई मिशनरियों के अस्पताल शहरों से लेकर आदिवासी इलाकों तक फैले हुए हैं!

चर्च में दलित ईसाईयों से गैर बराबरी - छुआछूत का यह हाल है कि दलित ईसाईयों के लिए बैठने का अलग स्थान , पीने के लिए पानी का अलग गिलास दफन करने के लिए अलग कब्रिस्तान होता है, दलित बच्चों को इन चर्चों में अल्टर ब्वाय या लेक्टर बनने की इजाजत नहीं होती है यहां ईसाई संस्थाओं और चर्चों में तो दलित जाति से आयी ननों के साथ शारीरिक और यौन शोषण की घटनाओं का किस्सा तो अलग ही है , ऐसा नहीं है कि भारत में ईसाईयों के बीच इस भेदभाव से वेटिकन अवगत नहीं है लेकिन उसका कोई भी प्रयास इस दिशा में अब तक सामने नहीं आया है, चर्च आज भी उसी पुराने रूप में कायम है जिस तरह से पहले संपन्न लोगों के पापमोचन के लिए वह स्वर्ग के दरवाजे खोलने का काम करता था, वेटिकन भारत के दलित ईसाईयों के बारे में कोई बात नहीं करता उल्टे वेटिकन साम्राज्यवादी अमेरिका के साथ खड़ा रहता है इसी का नतीजा है कि लैटिन अमेरिका के ईसाईयों ने लिब्रेशन थियोलाजी के नाम से पोप के खिलाफ आंदोलन चला रखा है.

यहाँ प्रमुख सवाल ही यह है कि भारत में जिस जाति उत्पीड़न से त्रस्त होकर शोषण मुक्ति की चाह में हमने ईसाई धर्म अपनाया था उसका फायदा क्या हुआ? 

न तो हमारा कोई आर्थिक उत्थान हुआ और न ही हमें जातिवाद के कलंक से छुटकारा मिला, अब समय आ गया है कि अपने हितों की रक्षा के लिए हम स्वदेशी चर्च स्थापित करें वेटिकन के साम्राज्यवाद से अपने आप को पूरी तरह मुक्त कर लें!

(मेहरबान जेम्स दलित क्रिश्चियन लिबरेशन मूवमेन्ट के उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष हैं)

मूल लेख हेतु निम्नलिखित लिंक पर क्लिक करें।
http://www.visfot.com/old12/index.php?news=240
इससे सबक यह मिलता है कि भारत में भले ही आप जाति छोड़ दें लेकिन जाति आपको नहीं छोड़ती.