क्या माँ सीता का अग्नि परीक्षा ली थी और राम ने धोबी के कहने पर त्याग किया था ?
उत्तर : नहीं
माँ सीता का अग्निपरीक्षा एक झूठ मात्र है | जो वाल्मीकि रामायण में ,महाभारत और मनुस्मृति में छेड़खानी के कारन हुई थी |
माँ सीता स्वयं महामाया है | महामाया सीता के सामने विष्णु महेश नतमस्तक रहते है | भगवान शिव ने माँ सती का त्याग महामाया सीता के रूप ग्रहण करने के कारन ही किया था | श्री राम स्वयं महानारायण है | जिन्होंने अनेको ब्रह्मा विष्णु और महेश उत्पन्न किये | अतः आप माँ महामाया सीता की अग्निपरीक्षा सोच भी नहीं सकते |
जो हर (शिव ) को वश में करे हरि और जो हरि ( नारायण ) को वश में रखे हरे (महामाया सीता राधा ) और जो हरे को वश में करे महानारायण ( श्रीराम श्री कृष्ण ) है |
यही सब मंत्रो का सार है |
हरे राम हरे राम | राम राम हरे हरे |
हरे कृष्णा हरे कृष्णा | कृष्णा कृष्णा हरे हरे | |
माँ सीता के स्मरण मात्र से अग्नि शीतल हो जाती है | वीर हनुमान माँ सीता के आशीर्वाद से लंका दहन किये और अग्नि को माँ सीता ने ही अग्नि को हनुमान के लिए शीतल हो जाने को कहा था |
माँ सीता के आशीर्वाद से ही हनुमान जी अजर अमर गुणनिधान हो गए |
सुन्दर कांड दोहा
अजर अमर गुणनिधि सूत होहु | करहुँ बहुत रघुनायक छोहू | हनुमान
हनुमान चालीसा
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता | अस बर दीन जानकी माता |
क्यों माँ सीता ने लक्ष्मण रेखा लांघी , माँ सीता का रावण ने अपहरण कैसे कर लिया और माँ सीता ने रावण को दंड क्यों नहीं दिया ?
सत्य :सम्पूर्ण रामायण पढ़ने के बाद भी सीता कौन है ? पता नहीं
वासुदेव हिंदी और उत्तर-पुराण
वासुदेव हिंदी और उत्तर-पुराण, रामायण का जैन रूपांतरण कहता है कि सीता, रावण और मंदोदरी की संतान है, और जब उनके बारे में भविष्यवाणी हुई कि वह रावण और उनके परिवार के अंत का कारण होगी तब उन्हें छोड़ दिया गया।
उत्तर : नहीं
माँ सीता का अग्निपरीक्षा एक झूठ मात्र है | जो वाल्मीकि रामायण में ,महाभारत और मनुस्मृति में छेड़खानी के कारन हुई थी |
माँ सीता स्वयं महामाया है | महामाया सीता के सामने विष्णु महेश नतमस्तक रहते है | भगवान शिव ने माँ सती का त्याग महामाया सीता के रूप ग्रहण करने के कारन ही किया था | श्री राम स्वयं महानारायण है | जिन्होंने अनेको ब्रह्मा विष्णु और महेश उत्पन्न किये | अतः आप माँ महामाया सीता की अग्निपरीक्षा सोच भी नहीं सकते |
जो हर (शिव ) को वश में करे हरि और जो हरि ( नारायण ) को वश में रखे हरे (महामाया सीता राधा ) और जो हरे को वश में करे महानारायण ( श्रीराम श्री कृष्ण ) है |
यही सब मंत्रो का सार है |
हरे राम हरे राम | राम राम हरे हरे |
हरे कृष्णा हरे कृष्णा | कृष्णा कृष्णा हरे हरे | |
माँ सीता के स्मरण मात्र से अग्नि शीतल हो जाती है | वीर हनुमान माँ सीता के आशीर्वाद से लंका दहन किये और अग्नि को माँ सीता ने ही अग्नि को हनुमान के लिए शीतल हो जाने को कहा था |
माँ सीता के आशीर्वाद से ही हनुमान जी अजर अमर गुणनिधान हो गए |
सुन्दर कांड दोहा
अजर अमर गुणनिधि सूत होहु | करहुँ बहुत रघुनायक छोहू | हनुमान
हनुमान चालीसा
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता | अस बर दीन जानकी माता |
क्यों माँ सीता ने लक्ष्मण रेखा लांघी , माँ सीता का रावण ने अपहरण कैसे कर लिया और माँ सीता ने रावण को दंड क्यों नहीं दिया ?
सत्य :सम्पूर्ण रामायण पढ़ने के बाद भी सीता कौन है ? पता नहीं
उत्तर : माँ सीता को जन्म देने वाली माँ मंदोदरी और पिता रावण है |
देवी भागवत पुराण
देवी भागवत पुराण के अनुसार, जब रावण ने मंदोदरी से विवाह करने की इच्छा को व्यक्त किया तब उसे चेतावनी दी गयी थी कि उसकी पहली संतान उसे मार देगी। इसके बावजूद, रावण ने मंदोदरी से विवाह किया और जब उसकी पत्नी ने उसके लिये लड़की को जन्म दिया, तब उसने नवजात को पिटारे में छुपा दिया और पिटारे को मिथिला भेज दिया था। और इस तरह जनक को सीता प्राप्त हुयी थी।वासुदेव हिंदी और उत्तर-पुराण
वासुदेव हिंदी और उत्तर-पुराण, रामायण का जैन रूपांतरण कहता है कि सीता, रावण और मंदोदरी की संतान है, और जब उनके बारे में भविष्यवाणी हुई कि वह रावण और उनके परिवार के अंत का कारण होगी तब उन्हें छोड़ दिया गया।
अद्भुत रामायण
थाईलैंड के रामायण ‘रामाकिएन’
थाईलैंड के रामायण ‘रामाकिएन’ के अनुसार सीता, रावण की बेटी थी। तत्कालीन ऋषि-मुनियों ने बताया कि उनके कुल का नाश सीता की वजह से होगा। इस कारण रावण ने सीता को समुद्र में प्रवाहित कर दिया, जो बाद में जनक को तपस्या करते हुए समुद्र किनारे मिली थी।
माँ सीता माँ मंदोदरी के बेटी है | जब माँ सीता का जन्म हुआ तो आकाशवाणी हुई की हे मंदोदरी तेरी पुत्री तेरे पति रावण का मौत कारन बनेगी | इसलिए रावण ने माँ सीता को राक्षसों द्वारा राजा जनक के राज्य में धरती में घड़े में रख कर गाड़ दिया था | जब राजा जनक ने हल चलायी तो घड़े में माँ सीता मिली थी |राजा जनक माँ सीता के धर्म पिता थे और रावण पिता थे |
इसलिए अपने पिता को अपने सामने पाकर और भीख मांगते देख लक्ष्मण रेखा लांघी थी | अपने पिता को मना नहीं किया और न ही युद्ध किया | इसलिए बारम्बार भगवान् राम ने सीता को लौटाने के लिए अनुरोध किये |
रावण को पता था जिस दिन उसकी पुत्री सीता लंका में कदम रखेगी | लंका में राक्षस का नाश होगा | इसलिए रावण ने अपनी बेटी सीता को लंका ले आया था | जिससे राक्षस का अंत और भगवान् श्री राम के हाथो मुक्ति मिले | जिसका माँ मंदोदरी, सीता के नाना(मंदोदरी के पिता मालयवन्त ), चाचा कुम्भकर्ण और चाचा विभीषण ने विरोध किया था |
माँ सीता ने रावण के बहुत अनुरोध और नाराजगी के बावजूद नगर जाने से मना किया और नगर के बाहर अशोक वाटिका में रही | श्री राम के भाई धर्म राज भरत और माँ सीता ने श्रीराम के वनवास के समय नगर जाने से इंकार किया था | भरत ने भी नगर के बाहर कुटिया बना कर और खड़ाऊं राज सिंहासन पर रखा था |
राज्य श्री शत्रुघन ही देखते थे | अतः माता सीता ने खुद ही इक्षानुसार अशोकवाटिका में निवास किया | मेघनाद उनके सहोदर भ्राता थे | अपने माता और पिता के घर रहने के कारन सीता की पवित्रता पर सवाल करना ही गलत और अधर्म ही है |
माँ सीता राजा अपने पिता जनक , महर्षि वसिष्ठ, तीनो महारानी कौसल्या सुमित्रा, कैकयी के आशीर्वाद और खुद की इक्षानुसार और भगवान् श्रीराम की अनुमति से गयी थी | महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में गयी थी |
उस समय आश्रम प्रथा थी | बच्चे के देखभाल और अच्छे संस्कार के लिए गयी थी | बच्चे गर्भावस्था में सिख जाते है | अभिमन्यु ने गर्भ में ही चक्रव्यूह तोडना अर्जुन से सीखा था |
धोबी कांड एक झूठ का पुलिंदा
वेद और शास्त्र के अनुसार हमलोग अभी कलियुग में जी रहे हैं जिसके 5018 वर्ष बीत चुके हैं। द्वापरयुग का काल 864000 वर्ष (आठ लाख चौसठ हज़ार) का हैं। अर्थात त्रेतायुग और कलियुग के बीच द्वापरयुग का 864000 वर्ष समाप्त हो चूके हैं। अगर कलियुग और द्वापर के समय को जोड़ा जाय तो 869018 तो आठ लाख उनहत्तर हज़ार अठारह बर्ष होते है | अतः भगवान श्री राम कम से कम 9 लाख बर्ष पहले आये है | नासा के वैज्ञानिक के अनुसार श्री राम सेतु लगभग 9 लाख बर्ष पुराना है | धोबी नाम की कोई शब्द नहीं था | त्रेता युग में जाती प्रथा नहीं थी | जाती प्रथा कलियुग में आया | जाती प्रथा मुग़ल ने और वर्ण व्ययस्था राजा भोज ने बनाया था | जो परिवर्तनीय थी | अतः यह भ्रामक और झूठ है |
मनु स्मृति ,वालमीकि रामायण में उत्तरकाण्ड और महाभारत में छेड़खानी हुई है
महर्षि वाल्मीकि का संक्षिप्त परिचय
महर्षि वाल्मीकि ने रामायण मे स्वयं कहा है कि :प्रेचेतसोंह दशमाः पुत्रों रघवनंदन। मनसा कर्मणा वाचा, भूतपूर्व न किल्विषम्।।हे राम मै प्रचेता मुनि का दसवा पुत्र हू और राम मैंने अपने जीवन में कभी भी पापाचार कार्य नहीं किया है।
ब्रह्मा जी: तपस्या छोड़ो अब वर मांगों. रावण ने ब्रह्मा जी से कहा, ‘ मैं किसी से कभी न मरूं, मुझे अमर होने का वरदान दीजिए.’ ब्रह्माजी ने कहा यह असंभव है. जो पैदा हुआ है मरेगा. कुछ और मांगो.
ब्रह्मा जी को वर देने में असहाय देख रावण ने कहा, यह वर नहीं दे सकते तो ऐसा वर दीजिए कि मुझे सुर, असुर, पिशाच, नाग, किन्नर या अप्सरा कोई भी न मार सके. मानव तो मुझे क्या मार सकेगा पर जब मैं अपनी कन्या को अपनी रानी बनाने पर आऊं तब मेरी मृत्यु हो. ब्रह्मा जी ने ठीक है कहा और ब्रह्मलोक चले गए.
http://www.vaidikbharat.in/2017/03/Weiredfacts-Ramayan.html थाईलैंड के रामायण ‘रामाकिएन’
थाईलैंड के रामायण ‘रामाकिएन’ के अनुसार सीता, रावण की बेटी थी। तत्कालीन ऋषि-मुनियों ने बताया कि उनके कुल का नाश सीता की वजह से होगा। इस कारण रावण ने सीता को समुद्र में प्रवाहित कर दिया, जो बाद में जनक को तपस्या करते हुए समुद्र किनारे मिली थी।
माँ सीता माँ मंदोदरी के बेटी है | जब माँ सीता का जन्म हुआ तो आकाशवाणी हुई की हे मंदोदरी तेरी पुत्री तेरे पति रावण का मौत कारन बनेगी | इसलिए रावण ने माँ सीता को राक्षसों द्वारा राजा जनक के राज्य में धरती में घड़े में रख कर गाड़ दिया था | जब राजा जनक ने हल चलायी तो घड़े में माँ सीता मिली थी |राजा जनक माँ सीता के धर्म पिता थे और रावण पिता थे |
इसलिए अपने पिता को अपने सामने पाकर और भीख मांगते देख लक्ष्मण रेखा लांघी थी | अपने पिता को मना नहीं किया और न ही युद्ध किया | इसलिए बारम्बार भगवान् राम ने सीता को लौटाने के लिए अनुरोध किये |
रावण को पता था जिस दिन उसकी पुत्री सीता लंका में कदम रखेगी | लंका में राक्षस का नाश होगा | इसलिए रावण ने अपनी बेटी सीता को लंका ले आया था | जिससे राक्षस का अंत और भगवान् श्री राम के हाथो मुक्ति मिले | जिसका माँ मंदोदरी, सीता के नाना(मंदोदरी के पिता मालयवन्त ), चाचा कुम्भकर्ण और चाचा विभीषण ने विरोध किया था |
माँ सीता ने रावण के बहुत अनुरोध और नाराजगी के बावजूद नगर जाने से मना किया और नगर के बाहर अशोक वाटिका में रही | श्री राम के भाई धर्म राज भरत और माँ सीता ने श्रीराम के वनवास के समय नगर जाने से इंकार किया था | भरत ने भी नगर के बाहर कुटिया बना कर और खड़ाऊं राज सिंहासन पर रखा था |
राज्य श्री शत्रुघन ही देखते थे | अतः माता सीता ने खुद ही इक्षानुसार अशोकवाटिका में निवास किया | मेघनाद उनके सहोदर भ्राता थे | अपने माता और पिता के घर रहने के कारन सीता की पवित्रता पर सवाल करना ही गलत और अधर्म ही है |
माँ सीता राजा अपने पिता जनक , महर्षि वसिष्ठ, तीनो महारानी कौसल्या सुमित्रा, कैकयी के आशीर्वाद और खुद की इक्षानुसार और भगवान् श्रीराम की अनुमति से गयी थी | महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में गयी थी |
उस समय आश्रम प्रथा थी | बच्चे के देखभाल और अच्छे संस्कार के लिए गयी थी | बच्चे गर्भावस्था में सिख जाते है | अभिमन्यु ने गर्भ में ही चक्रव्यूह तोडना अर्जुन से सीखा था |
धोबी कांड एक झूठ का पुलिंदा
वेद और शास्त्र के अनुसार हमलोग अभी कलियुग में जी रहे हैं जिसके 5018 वर्ष बीत चुके हैं। द्वापरयुग का काल 864000 वर्ष (आठ लाख चौसठ हज़ार) का हैं। अर्थात त्रेतायुग और कलियुग के बीच द्वापरयुग का 864000 वर्ष समाप्त हो चूके हैं। अगर कलियुग और द्वापर के समय को जोड़ा जाय तो 869018 तो आठ लाख उनहत्तर हज़ार अठारह बर्ष होते है | अतः भगवान श्री राम कम से कम 9 लाख बर्ष पहले आये है | नासा के वैज्ञानिक के अनुसार श्री राम सेतु लगभग 9 लाख बर्ष पुराना है | धोबी नाम की कोई शब्द नहीं था | त्रेता युग में जाती प्रथा नहीं थी | जाती प्रथा कलियुग में आया | जाती प्रथा मुग़ल ने और वर्ण व्ययस्था राजा भोज ने बनाया था | जो परिवर्तनीय थी | अतः यह भ्रामक और झूठ है |
मनु स्मृति ,वालमीकि रामायण में उत्तरकाण्ड और महाभारत में छेड़खानी हुई है
महर्षि वाल्मीकि ने रामायण मे स्वयं कहा है कि :प्रेचेतसोंह दशमाः पुत्रों रघवनंदन। मनसा कर्मणा वाचा, भूतपूर्व न किल्विषम्।।हे राम मै प्रचेता मुनि का दसवा पुत्र हू और राम मैंने अपने जीवन में कभी भी पापाचार कार्य नहीं किया है।
महर्षि कश्यप और अदिति के नवम पुत्र वरुण (आदित्य) से इनका जन्म हुआ। इनकी माता चर्षणी और भाई भृगु थे। वरुण का एक नाम प्रचेत भी है, इसलिए इन्हें प्राचेतस् नाम से उल्लेखित किया जाता है। उपनिषद के विवरण के अनुसार यह भी अपने भाई भृगु की भांति परम ज्ञानी थे। एक बार ध्यान में बैठे हुए वरुण-पुत्र के शरीर को दीमकों ने अपना घर बनाकर ढंक लिया था। साधना पूरी करके जब यह दीमकों के घर, जिसे वाल्मीकि कहते हैं, से बाहर निकले तो लोग इन्हें वाल्मीकि कहने लगे।
पंजाब हरियाणा उच्च न्यालय का निर्णय
जिससे कि रत्नाकर की कहानी मिथ्या ही प्रतीत होती है क्योकि ऐसा ऋषि जिसके पिता स्वयं एक मुनि हो तो भला वह डाकू कैसे बन सकता है और वह स्वयं राम के सामने सीता जी की पवित्रता के बारे मे रामायण जैसी रचना मे अपना परिचय देता है तो वह गलत प्रतीत नहीं होता।
संपूर्ण रामायण का अवलोकन करने के बाद इस में कोई संदेह नहीं रहता कि राम एक अत्युत्तम आदर्श थे। जिन थोड़े लोगों ने मुझे प्रेरित किया है – उन में श्री कृष्ण और हनुमान के आलावा मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम चंद्र प्रमुख हैं। राम धर्म के मूर्तिमंत स्वरुप हैं। इसलिए ऐसे प्रसंग राम के चरित्र से कोई मेल नहीं रखते और यह प्रसंग रामायण की स्वाभाविक कथा और उस में वर्णित अन्य सिद्धांतों के विपरीत भी है।
किसी स्त्री के सतीत्व के परीक्षण की ऐसी अवधारणा वेदों और मनुस्मृति के बिलकुल ख़िलाफ़ है।
यह तथ्य है कि रामायण एक ऐतिहासिक ग्रन्थ है, अल्लादीन के जादुई चिराग की कहानी नहीं है। और न ही सिर्फ हिन्दू परम्पराओं से ही जुडा हुआ कोई ग्रन्थ है। राम किसी धर्म विशेष के ही नहीं परंतु सम्पूर्ण मानव जाति के आदर्श पुरुष हैं।
जिससे कि रत्नाकर की कहानी मिथ्या ही प्रतीत होती है क्योकि ऐसा ऋषि जिसके पिता स्वयं एक मुनि हो तो भला वह डाकू कैसे बन सकता है और वह स्वयं राम के सामने सीता जी की पवित्रता के बारे मे रामायण जैसी रचना मे अपना परिचय देता है तो वह गलत प्रतीत नहीं होता।
अब वाल्मीकि रामायण में छेडखाणी की समीक्षा करे |
सीता के अग्नि परीक्षण की यदि बात की जाये तो मैं इस में कई कमियां देखता हूँ। रामायण काल स्त्रियों को उनके सम्पूर्ण गौरव और अधिकार प्रदान करने वाला काल रहा है।संपूर्ण रामायण का अवलोकन करने के बाद इस में कोई संदेह नहीं रहता कि राम एक अत्युत्तम आदर्श थे। जिन थोड़े लोगों ने मुझे प्रेरित किया है – उन में श्री कृष्ण और हनुमान के आलावा मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम चंद्र प्रमुख हैं। राम धर्म के मूर्तिमंत स्वरुप हैं। इसलिए ऐसे प्रसंग राम के चरित्र से कोई मेल नहीं रखते और यह प्रसंग रामायण की स्वाभाविक कथा और उस में वर्णित अन्य सिद्धांतों के विपरीत भी है।
किसी स्त्री के सतीत्व के परीक्षण की ऐसी अवधारणा वेदों और मनुस्मृति के बिलकुल ख़िलाफ़ है।
यह तथ्य है कि रामायण एक ऐतिहासिक ग्रन्थ है, अल्लादीन के जादुई चिराग की कहानी नहीं है। और न ही सिर्फ हिन्दू परम्पराओं से ही जुडा हुआ कोई ग्रन्थ है। राम किसी धर्म विशेष के ही नहीं परंतु सम्पूर्ण मानव जाति के आदर्श पुरुष हैं।
आइये सच्चाई जानें:
वेदों की तरह, रामायण कोई ईश्वरीय ग्रन्थ नहीं है, बल्कि एक महाकाव्य है। वेद तो अपनी अनूठी रक्षण विधियों से जन्मकाल से ही सम्पूर्ण सुरक्षित हैं, उन में लेशमात्र भी परिवर्तन संभव नहीं है। लेकिन, अन्य ग्रंथों में रक्षण की ऐसी कोई कारगर प्रणाली उपलब्ध नहीं है। यही कारण है कि बाद के काल में रामायण और महाभारत, बड़ी मात्रा में मिलावट के शिकार हुए। मनुस्मृति का भी यही हाल है।
छपाई के अविष्कार से पहले, युगों तक ग्रन्थ हाथों से लिखे जाते रहे और उन्हें कंठस्थ करके याद रखा गया। अतः उन में मिलावट करना बहुत ही आसान था। इसलिए इन ग्रंथों के विशुद्ध संस्करण मिलना कठिन है। अब सभी प्रक्षेपण इतनी आसानी से तो
पकड़ में नहीं आते, परन्तु विश्लेषण करने पर जो स्पष्टत*:* मिलावट है उसे पहचाना जा सकता है। जैसे – भाषा में बदल हो, लिखने की शैली अलग हो, कथा के प्रवाह से मेल न खाए, असंगत हो, सन्दर्भ के विरुद्ध हो, पूर्वापर सम्बन्ध न हो, ऐसा लगे कि अचानक बीच में कोई ‘चमत्कार’ हुआ है और कथा फिर से अपनी गति से चलने लगे, ग्रन्थ के मूल विषय से विपरीत हो, इत्यादी।
हम पहले देख चुके हैं कि मनुस्मृति में मिलावट किये गए श्लोकों की संख्या पचास प्रतिशत से भी अधिक है।
यदि रामायण में भी सीता की अग्निपरीक्षा वाले श्लोकों का विश्लेषण किया जाये तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आते हैं।
युद्ध कांड के सर्ग तक कथा का प्रवाह सामान्य है। यहाँ हनुमान सीता को राम की विजय का समाचार देने जाते हैं।
सर्ग ११४ श्लोक २७ में राम कहते हैं कि स्त्रियों का सम्मान उन्हें राष्ट्र से मिलने वाले आदर और उनके अपने सदाचार से होता है। सम्मान की रक्षा में उन पर किसी भी तरह का कोई बंधन या घर, कपड़ों या चारदिवारी का प्रतिबन्ध लगाना मूर्खता है। यह श्लोक स्त्रियों के प्रति हिन्दू अवधारणा को दर्शाता है। अंतिम श्लोक को छोड़कर इस सर्ग ११४ के अन्य श्लोक प्रक्षिप्त दिखाई देते हैं – जो कथा को किंचित भी आगे नहीं बढ़ाते।
सर्ग ११५ के प्रथम छः श्लोकों में राम शत्रु संहार का भावपूर्ण वर्णन करते हैं। इससे अगले चार श्लोक हनुमान, सुग्रीव और विभीषण के अथक प्रयासों को बताने वाले हैं। श्लोक ११ और १२ स्पष्टत*:* मिलावट ही हैं और वे कथानक को भटकाने के लिए डाले गए लगते हैं। सर्ग ११५ के श्लोक १३ और १४ सीता को वापस पाकर राम की संतुष्टि का बखान करने वाले हैं।
लेकिन इस स्थिति से परिवर्तित होकर १५ वां श्लोक अचानक राम से कहलवाता है कि उन्होंने यह सब सीता को प्राप्त करने के लिए नहीं किया। सम्पूर्ण रामायण में राम सीता के वियोग से अत्यंत व्याकुल हैं, यहाँ तक कि वे दुःख में आंसू बहाते भी नजर आते हैं। लेकिन, इस श्लोक से कथा पूरी तरह दूसरी दिशा में परिवर्तित हो जाती है। और यह पहले के सन्दर्भों से विपरीत भी है। यदि राम सीता की अग्निपरीक्षा ही लेना चाहते थे तो वे सीधे तौर पर कह सकते थे, उन्हें इस तरह झूठ बोलने की कोई आवश्यकता नहीं थी। सम्पूर्ण रामायण में राम एक सत्यवादी और सत्यशोधक के रूप में चित्रित हैं पर यह श्लोक उनके स्वभाव और उनके चरित्र की इस विशेषता को दूषित करने वाला है, जो साफ़ तौर पर मिलावट किया गया है।
सर्ग ११५ के इस से आगे के सभी श्लोक स्पष्ट रूप से मिलावट ही लगते हैं, उदाहरण *:* श्लोक २२ और २३ – जिसमें राम सीता से भरत, लक्ष्मण, सुग्रीव, शत्रुघ्न या विभीषण के पास रहने के लिए कहते हैं।
सर्ग ११६ भी पूरी तरह से ऐसे जाली श्लोकों से भरा हुआ है – जिन में सीता राम के लगाये हुए आरोपों का उत्तर देती है, लक्ष्मण से अपने लिए चिता बनवाती है और अग्नि में प्रवेश करती है। तब अचानक ही सभी ऋषि, गन्धर्व और देवता प्रकट हो जाते हैं – जो अभी तक कहीं नहीं थे।
सर्ग ११७ में सभी प्रमुख देवता राम से वार्ता करने पहुँचते हैं, यही एक मात्र स्थल है रामायण में जहाँ अचानक देवत्व कथा पर हावी हो जाता है, यहीं पहली बार राम को ‘परब्रह्म’ कहा गया है।यदि राम ही परब्रह्म थे तो अन्य छोटे देवताओं को उन्हें समझाने की क्या आवश्यकता थी? और राम ने उन सब को बुलाया भी क्यों? इस का कोई उत्तर यहाँ नहीं मिलता। इस सर्ग के श्लोक ३२ तक राम के दैवीय होने की प्रशंसा की गयी है।
सर्ग ११८ में अग्निदेव सीता को गोद में लिए बाहर आते हैं और उन्हें राम को सौंपते हैं। तब राम यह कहते हैं कि वे यह सारा प्रपंच – सब को सीता की पवित्रता का विश्वास दिलाने के लिए कर रहे थे। और अंत में श्लोक २२ कहता है कि ” ऐसा कह कर राम सीता से अत्यंत प्रसन्नता से मिले।”
यदि सर्ग ११५ के श्लोक १५ से लेकर सर्ग ११८ के श्लोक २१ तक के बीच वाले सभी श्लोक हटा दिए जाएँ तो कथा सुगम हो जाती है और अपने सामान्य प्रवाह से चलती है। और यह बीच वाला जो प्रपंच है, जिस में यह सब वार्ता आती है उसकी कोई प्रासंगिकता रहती नहीं।
सर्ग ११५ का श्लोक १४, याद करिये जिस में राम ने अपने महान प्रयासों से सीता को पुनः प्राप्त करने का वर्णन अत्यंत भाव प्रवण होकर समझाया था। और उसके बाद सर्ग ११८ के इस श्लोक २२ को रखिये जो कहता है कि ” ऐसा
कह कर राम सीता से अत्यंत प्रसन्नता से मिले।” इन दोनों टूटी कड़ियों को जोड़ देने से और बीच वाली नाटकीय घटनाओं को हटा देने से कथा में निरंतरता आती है और असली कथा उभरती है।
अगले सर्ग ११९ और १२० भी पूरे मिलावटी हैं। इन में देवताओं से राम की और भी प्रशंसा करवाई गयी है, फिर महाराज दशरथ भी इन्द्र देव के साथ आ गए हैं, उनके बीच लम्बी वार्ता का वर्णन है। इंद्र देव अपने चमत्कार से मरे हुए सैनिकों को पुनः जीवित कर देते हैं, इत्यादि। सर्ग १२१ कहता है कि ” राम उस रात शांतिपूर्वक सोये और प्रातः विभीषण से उनकी बात हुई।” छुट-पुट मिलावटों के साथ कथा अपनी स्वाभाविक गति से आगे बढ़ते हुए सीता के साथ राम की अयोध्या वापसी का वर्णन करती है। इस के बाद अंत तक कोई चमत्कारी प्रसंग नहीं आता।
यदि कोई इस प्रसंग को सिर्फ ऊपरी तौर पर ही देख ले तब भी पता लग जायेगा कि यह बाद में की गयी मिलावट है। जिस ने राम को तो कलंकित किया ही है, साथ ही भारत वर्ष में जहर घोलने का काम भी किया है – कई तरह के संगठन, हिन्दू विरोधी
मानसिकता, स्त्री विरोधी मानसिकता, धर्म परिवर्तन इत्यादि कई जटिल समस्याओं को जन्म दिया है। जबकि इन सब का कोई आधार नहीं है, यह सब संदिग्ध है।
निम्नलिखित सभी श्लोक स्पष्टत*:* मिलावट हैं –
सर्ग ११४ *:* श्लोक २८ से आगे वाले सभी, सिर्फ अंतिम श्लोक को छोड़कर।
सर्ग ११५ *:* श्लोक १५ से आगे वाले सभी।
सर्ग ११६ और सर्ग ११७ सम्पूर्ण।
सर्ग ११८ *:* अंतिम श्लोक को छोड़कर सभी।
सर्ग ११९ और सर्ग १२० सम्पूर्ण।
अगर इन्हें हटा दें तो कहानी तार्किकता से, सरलता से और अबाध गति से आगे बढती है।
भगवान् काल (यमराज) ने राज्यभार सँभालते समय त्रिदेवों से दो अस्वासन मांगे थे | पहला की मृत्यभुवन पर विधि के विधान में कोई भी हेरफेर बिना काल की अनुमति के बिना न हो | दूसरा भगवान् भी मृत्युभुवन का सम्मान करे अर्थात जीव को काल की कैद से बिना चमत्कार किये अवतार लेकर मुक्त करना और जिस रूप में जन्म ले मर्यादा का पालन करना | ये सारे कर्म, चमत्कार वेद और मर्यादा के विरुद्ध है | अतः २८०० बर्ष पूर्व जो मिलावट किया गया है | यह मनुस्मृति , रामायण और महाभारत के साथ - साथ कुछ और धार्मिक ग्रंथो का मिलावटी तथ्य है |
सत्य को पहचानने की सबसे प्रमुख कसौटी यह है कि वह वेदों के अनुकूल और तर्क संगत हो। अन्यथा उसे मिलावट ही माना जाएगा। यदि छोटी -छोटी बातें तर्क से विरुद्ध हो तो उस में न उलझ कर, मूल विषय का ही अनुसरण करें।
वेद ही एकमात्र सत्य धर्म हैं, जिनकी सुदृढ़ नींव पर हमारी संस्कृति आरूढ़ है। समग्र विश्व के लिए राम एक आदर्श हैं और हमें उनके वंशज होने का गौरव मिला है। चाहे हम राम को भगवान मानें या धर्माचारी महापुरुष यह हमारा निजी विचार है। परन्तु, राम चरित्र अत्यंत पवित्र, उज्जवल और खरा सोना है। और हम अपने आदर्शों के सम्मान में सदैव प्रतिबद्ध हैं।
https://www.bhaskar.com/news/BIH-PAT-sita-is-daughter-of-lanka-king-ravan-4373756-PHO.html
http://www.deepawali.co.in/janaki-jayanti-navami-katha-hindi.html
http://www.mangalmurti.in/2017/01/what-was-relation-between-sita-rawan.html
http://www.gazabpost.com/do-you-know-about-these-relationships-of-hindu-mythology/
http://www.vaidikbharat.in/2017/03/Weiredfacts-Ramayan.html
वेदों की तरह, रामायण कोई ईश्वरीय ग्रन्थ नहीं है, बल्कि एक महाकाव्य है। वेद तो अपनी अनूठी रक्षण विधियों से जन्मकाल से ही सम्पूर्ण सुरक्षित हैं, उन में लेशमात्र भी परिवर्तन संभव नहीं है। लेकिन, अन्य ग्रंथों में रक्षण की ऐसी कोई कारगर प्रणाली उपलब्ध नहीं है। यही कारण है कि बाद के काल में रामायण और महाभारत, बड़ी मात्रा में मिलावट के शिकार हुए। मनुस्मृति का भी यही हाल है।
छपाई के अविष्कार से पहले, युगों तक ग्रन्थ हाथों से लिखे जाते रहे और उन्हें कंठस्थ करके याद रखा गया। अतः उन में मिलावट करना बहुत ही आसान था। इसलिए इन ग्रंथों के विशुद्ध संस्करण मिलना कठिन है। अब सभी प्रक्षेपण इतनी आसानी से तो
पकड़ में नहीं आते, परन्तु विश्लेषण करने पर जो स्पष्टत*:* मिलावट है उसे पहचाना जा सकता है। जैसे – भाषा में बदल हो, लिखने की शैली अलग हो, कथा के प्रवाह से मेल न खाए, असंगत हो, सन्दर्भ के विरुद्ध हो, पूर्वापर सम्बन्ध न हो, ऐसा लगे कि अचानक बीच में कोई ‘चमत्कार’ हुआ है और कथा फिर से अपनी गति से चलने लगे, ग्रन्थ के मूल विषय से विपरीत हो, इत्यादी।
हम पहले देख चुके हैं कि मनुस्मृति में मिलावट किये गए श्लोकों की संख्या पचास प्रतिशत से भी अधिक है।
यदि रामायण में भी सीता की अग्निपरीक्षा वाले श्लोकों का विश्लेषण किया जाये तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आते हैं।
युद्ध कांड के सर्ग तक कथा का प्रवाह सामान्य है। यहाँ हनुमान सीता को राम की विजय का समाचार देने जाते हैं।
सर्ग ११४ श्लोक २७ में राम कहते हैं कि स्त्रियों का सम्मान उन्हें राष्ट्र से मिलने वाले आदर और उनके अपने सदाचार से होता है। सम्मान की रक्षा में उन पर किसी भी तरह का कोई बंधन या घर, कपड़ों या चारदिवारी का प्रतिबन्ध लगाना मूर्खता है। यह श्लोक स्त्रियों के प्रति हिन्दू अवधारणा को दर्शाता है। अंतिम श्लोक को छोड़कर इस सर्ग ११४ के अन्य श्लोक प्रक्षिप्त दिखाई देते हैं – जो कथा को किंचित भी आगे नहीं बढ़ाते।
सर्ग ११५ के प्रथम छः श्लोकों में राम शत्रु संहार का भावपूर्ण वर्णन करते हैं। इससे अगले चार श्लोक हनुमान, सुग्रीव और विभीषण के अथक प्रयासों को बताने वाले हैं। श्लोक ११ और १२ स्पष्टत*:* मिलावट ही हैं और वे कथानक को भटकाने के लिए डाले गए लगते हैं। सर्ग ११५ के श्लोक १३ और १४ सीता को वापस पाकर राम की संतुष्टि का बखान करने वाले हैं।
लेकिन इस स्थिति से परिवर्तित होकर १५ वां श्लोक अचानक राम से कहलवाता है कि उन्होंने यह सब सीता को प्राप्त करने के लिए नहीं किया। सम्पूर्ण रामायण में राम सीता के वियोग से अत्यंत व्याकुल हैं, यहाँ तक कि वे दुःख में आंसू बहाते भी नजर आते हैं। लेकिन, इस श्लोक से कथा पूरी तरह दूसरी दिशा में परिवर्तित हो जाती है। और यह पहले के सन्दर्भों से विपरीत भी है। यदि राम सीता की अग्निपरीक्षा ही लेना चाहते थे तो वे सीधे तौर पर कह सकते थे, उन्हें इस तरह झूठ बोलने की कोई आवश्यकता नहीं थी। सम्पूर्ण रामायण में राम एक सत्यवादी और सत्यशोधक के रूप में चित्रित हैं पर यह श्लोक उनके स्वभाव और उनके चरित्र की इस विशेषता को दूषित करने वाला है, जो साफ़ तौर पर मिलावट किया गया है।
सर्ग ११५ के इस से आगे के सभी श्लोक स्पष्ट रूप से मिलावट ही लगते हैं, उदाहरण *:* श्लोक २२ और २३ – जिसमें राम सीता से भरत, लक्ष्मण, सुग्रीव, शत्रुघ्न या विभीषण के पास रहने के लिए कहते हैं।
सर्ग ११६ भी पूरी तरह से ऐसे जाली श्लोकों से भरा हुआ है – जिन में सीता राम के लगाये हुए आरोपों का उत्तर देती है, लक्ष्मण से अपने लिए चिता बनवाती है और अग्नि में प्रवेश करती है। तब अचानक ही सभी ऋषि, गन्धर्व और देवता प्रकट हो जाते हैं – जो अभी तक कहीं नहीं थे।
सर्ग ११७ में सभी प्रमुख देवता राम से वार्ता करने पहुँचते हैं, यही एक मात्र स्थल है रामायण में जहाँ अचानक देवत्व कथा पर हावी हो जाता है, यहीं पहली बार राम को ‘परब्रह्म’ कहा गया है।यदि राम ही परब्रह्म थे तो अन्य छोटे देवताओं को उन्हें समझाने की क्या आवश्यकता थी? और राम ने उन सब को बुलाया भी क्यों? इस का कोई उत्तर यहाँ नहीं मिलता। इस सर्ग के श्लोक ३२ तक राम के दैवीय होने की प्रशंसा की गयी है।
सर्ग ११८ में अग्निदेव सीता को गोद में लिए बाहर आते हैं और उन्हें राम को सौंपते हैं। तब राम यह कहते हैं कि वे यह सारा प्रपंच – सब को सीता की पवित्रता का विश्वास दिलाने के लिए कर रहे थे। और अंत में श्लोक २२ कहता है कि ” ऐसा कह कर राम सीता से अत्यंत प्रसन्नता से मिले।”
यदि सर्ग ११५ के श्लोक १५ से लेकर सर्ग ११८ के श्लोक २१ तक के बीच वाले सभी श्लोक हटा दिए जाएँ तो कथा सुगम हो जाती है और अपने सामान्य प्रवाह से चलती है। और यह बीच वाला जो प्रपंच है, जिस में यह सब वार्ता आती है उसकी कोई प्रासंगिकता रहती नहीं।
सर्ग ११५ का श्लोक १४, याद करिये जिस में राम ने अपने महान प्रयासों से सीता को पुनः प्राप्त करने का वर्णन अत्यंत भाव प्रवण होकर समझाया था। और उसके बाद सर्ग ११८ के इस श्लोक २२ को रखिये जो कहता है कि ” ऐसा
कह कर राम सीता से अत्यंत प्रसन्नता से मिले।” इन दोनों टूटी कड़ियों को जोड़ देने से और बीच वाली नाटकीय घटनाओं को हटा देने से कथा में निरंतरता आती है और असली कथा उभरती है।
अगले सर्ग ११९ और १२० भी पूरे मिलावटी हैं। इन में देवताओं से राम की और भी प्रशंसा करवाई गयी है, फिर महाराज दशरथ भी इन्द्र देव के साथ आ गए हैं, उनके बीच लम्बी वार्ता का वर्णन है। इंद्र देव अपने चमत्कार से मरे हुए सैनिकों को पुनः जीवित कर देते हैं, इत्यादि। सर्ग १२१ कहता है कि ” राम उस रात शांतिपूर्वक सोये और प्रातः विभीषण से उनकी बात हुई।” छुट-पुट मिलावटों के साथ कथा अपनी स्वाभाविक गति से आगे बढ़ते हुए सीता के साथ राम की अयोध्या वापसी का वर्णन करती है। इस के बाद अंत तक कोई चमत्कारी प्रसंग नहीं आता।
यदि कोई इस प्रसंग को सिर्फ ऊपरी तौर पर ही देख ले तब भी पता लग जायेगा कि यह बाद में की गयी मिलावट है। जिस ने राम को तो कलंकित किया ही है, साथ ही भारत वर्ष में जहर घोलने का काम भी किया है – कई तरह के संगठन, हिन्दू विरोधी
मानसिकता, स्त्री विरोधी मानसिकता, धर्म परिवर्तन इत्यादि कई जटिल समस्याओं को जन्म दिया है। जबकि इन सब का कोई आधार नहीं है, यह सब संदिग्ध है।
निम्नलिखित सभी श्लोक स्पष्टत*:* मिलावट हैं –
सर्ग ११४ *:* श्लोक २८ से आगे वाले सभी, सिर्फ अंतिम श्लोक को छोड़कर।
सर्ग ११५ *:* श्लोक १५ से आगे वाले सभी।
सर्ग ११६ और सर्ग ११७ सम्पूर्ण।
सर्ग ११८ *:* अंतिम श्लोक को छोड़कर सभी।
सर्ग ११९ और सर्ग १२० सम्पूर्ण।
अगर इन्हें हटा दें तो कहानी तार्किकता से, सरलता से और अबाध गति से आगे बढती है।
भगवान् काल (यमराज) ने राज्यभार सँभालते समय त्रिदेवों से दो अस्वासन मांगे थे | पहला की मृत्यभुवन पर विधि के विधान में कोई भी हेरफेर बिना काल की अनुमति के बिना न हो | दूसरा भगवान् भी मृत्युभुवन का सम्मान करे अर्थात जीव को काल की कैद से बिना चमत्कार किये अवतार लेकर मुक्त करना और जिस रूप में जन्म ले मर्यादा का पालन करना | ये सारे कर्म, चमत्कार वेद और मर्यादा के विरुद्ध है | अतः २८०० बर्ष पूर्व जो मिलावट किया गया है | यह मनुस्मृति , रामायण और महाभारत के साथ - साथ कुछ और धार्मिक ग्रंथो का मिलावटी तथ्य है |
सत्य को पहचानने की सबसे प्रमुख कसौटी यह है कि वह वेदों के अनुकूल और तर्क संगत हो। अन्यथा उसे मिलावट ही माना जाएगा। यदि छोटी -छोटी बातें तर्क से विरुद्ध हो तो उस में न उलझ कर, मूल विषय का ही अनुसरण करें।
वेद ही एकमात्र सत्य धर्म हैं, जिनकी सुदृढ़ नींव पर हमारी संस्कृति आरूढ़ है। समग्र विश्व के लिए राम एक आदर्श हैं और हमें उनके वंशज होने का गौरव मिला है। चाहे हम राम को भगवान मानें या धर्माचारी महापुरुष यह हमारा निजी विचार है। परन्तु, राम चरित्र अत्यंत पवित्र, उज्जवल और खरा सोना है। और हम अपने आदर्शों के सम्मान में सदैव प्रतिबद्ध हैं।
https://www.bhaskar.com/news/BIH-PAT-sita-is-daughter-of-lanka-king-ravan-4373756-PHO.html
http://www.deepawali.co.in/janaki-jayanti-navami-katha-hindi.html
http://www.mangalmurti.in/2017/01/what-was-relation-between-sita-rawan.html
http://www.gazabpost.com/do-you-know-about-these-relationships-of-hindu-mythology/
http://www.vaidikbharat.in/2017/03/Weiredfacts-Ramayan.html
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