Wednesday, 28 June 2017

शिवलिंगम

लिंग का अर्थ संस्कृत में चिन्ह ,प्रतीक होता है
जबकी जनर्नेद्रीय को संस्कृत मे शिशिन कहा जाता है
शिवलिंग
शिवलिंग का अर्थ हुआ शिव का प्रतीक
पुरुषलिंग का अर्थ हुआ पुरुष का प्रतीक
इसी प्रकार स्त्रीलिंग का अर्थ हुआ स्त्री का प्रतीक
और नपुंसकलिंग का अर्थ हुआ ..नपुंसक का प्रतीकअब यदि जो लोग पुरुष लिंग को मनुष्य के जनेन्द्रिय समझ कर आलोचना करते है..तो वे बताये ”स्त्री लिंग ”’के अर्थ के अनुसार स्त्री का लिंग होना चाहिए
और वो खुद अपनी औरतो के लिंग को बताये फिर आलोचना करे

"शिवलिंग”’क्या है
शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है। स्कन्दपुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है।शिवलिंग वातावरण सहित घूमती धरती तथा सारे अनन्त ब्रह्माण्ड ( क्योंकि, ब्रह्माण्ड गतिमान है ) का अक्स/धुरी (axis) ही लिंग है।
शिव लिंग का अर्थ अनन्त भी होता है अर्थात जिसका कोई अन्त नहीं है नाही शुरुवात |

शिवलिंग का अर्थ लिंग या योनी नहीं होता ..दरअसल ये गलतफहमी भाषा के रूपांतरण और मलेच्छों द्वारा हमारे पुरातन धर्म ग्रंथों को नष्ट कर दिए जाने तथा अंग्रेजों द्वारा इसकी व्याख्या से उत्पन्न हुआ हो सकता है
खैर जैसा कि हम सभी जानते है कि एक ही शब्द के विभिन्न भाषाओँ में अलग-अलग अर्थ निकलते हैं
उदाहरण के लिए

यदि हम हिंदी के एक शब्द “सूत्र” को ही ले लें तो…….
सूत्र मतलब डोरी/धागा गणितीय सूत्र कोई भाष्य अथवा लेखन भी हो सकता है| जैसे कि नासदीय सूत्र ब्रह्म सूत्र इत्यादि |
उसी प्रकार “अर्थ” शब्द का भावार्थ : सम्पति भी हो सकता है और मतलब (मीनिंग) भी |
ठीक बिल्कुल उसी प्रकार शिवलिंग के सन्दर्भ में लिंग शब्द से अभिप्राय चिह्न, निशानी, गुण, व्यवहार या प्रतीक है।धरती उसका पीठ या आधार है और सब अनन्त शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा है तथा कई अन्य नामो से भी संबोधित किया गया है जैसे : प्रकाश स्तंभ/लिंग, अग्नि स्तंभ/लिंग, उर्जा स्तंभ/लिंग, ब्रह्माण्डीय स्तंभ/लिंग (cosmic pillar/lingam)


ब्रह्माण्ड में दो ही चीजे है : ऊर्जा और प्रदार्थ | हमारा शरीर प्रदार्थ से निर्मित है और आत्मा ऊर्जा है
इसी प्रकार शिव पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का प्रतीक बन कर शिवलिंग कहलाते है |
ब्रह्मांड में उपस्थित समस्त ठोस तथा उर्जा शिवलिंग में निहित है. वास्तव में शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड की आकृति है. (The universe is a sign of Shiva Lingam.)

शिवलिंग भगवान शिव और देवी शक्ति (पार्वती) का आदि-आनादी एकल रूप है तथा पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतिक भी अर्थात इस संसार में न केवल पुरुष का और न केवल प्रकृति (स्त्री) का वर्चस्व है अर्थात दोनों सामान है

अब बात करते है योनि शब्द पर
मनुष्ययोनि ”पशुयोनी”पेड़-पौधों की योनि”’पत्थरयोनि”
योनि का संस्कृत में प्रादुर्भाव ,प्रकटीकरण अर्थ होता है..जीव अपने कर्म के अनुसार विभिन्न योनियों में जन्म लेता है..कुछ धर्म में पुर्जन्म की मान्यता नहीं है ..इसीलिए योनि शब्द के संस्कृत अर्थ को नहीं जानते है जबकी हिंदू धर्म मे 84 लाख योनी यानी 84 लाख प्रकार के जन्म है अब तो वैज्ञानिको ने भी मान लिया है कि धरती मे 84 लाख प्रकार के जीव (पेड, कीट,जानवर,मनुष्य आदि) है…
मनुष्य योनी पुरुष और स्त्री दोनों को मिलाकर मनुष्य योनि होता है..अकेले स्त्री या अकेले पुरुष के लिए मनुष्य योनि शब्द का प्रयोग संस्कृत में नहीं होता है…
तो कुल मिलकर अर्थ ये है
लिंग का तात्पर्य प्रतीक से है, शिवलिंग का मतलब है पवित्रता का प्रतीक | दीपक की प्रतिमा बनाये जाने से इस की शुरुआत हुई, बहुत से हठ योगी दीपशिखा पर ध्यान लगाते हैं | हवा में दीपक की ज्योति टिमटिमा जाती है और स्थिर ध्यान लगाने की प्रक्रिया में अवरोध उत्पन्न करती है इसलिए दीपक की प्रतिमा स्वरूप शिवलिंग का निर्माण किया गया ताकि निर्विघ्न एकाग्र होकर ध्यान लग सके | लेकिन कुछ विकृत मुग़ल काल से कुछ दिमागों ने इस में जननागों की कल्पना कर ली और झूठी कुत्सित कहानियां बना ली और इस पीछे के रहस्य की जानकारी न होने के कारण अनभिज्ञ भोले हिन्दुओं को भ्रमित किया गया

छोटे छोटे बच्चो को बताते है कि हिन्दू लोग लिंग और योनी की पूजा करते है..मूर्खों को संस्कृत का ज्ञान नहीं होता है..और छोटे छोटे बच्चो को हिन्दुओ के प्रति नफ़रत पैदा करके उनको आतंकी बना देते है…अब मै इसका अर्थ बता रहा हूँ
क्या यहां कोई आर्य समाजी या मुस्लिम टपकेगा जो शिव लिंग को अश्लील बोलता हो
वे कहते हैं शिवपुराण में शिवलिंग के बारे में अश्लीलता है
आइये पूरी तरह से जानिए
शिवपुराण के अनुसार
शिवलिंग, ब्रह्म क्या है

नन्दिकेश्वर कहते हैं - कि वे दोनों (ब्रह्मा और विष्णु ) भगवान शंकर को प्रणाम करके उनके दाएं-बाएं भाग में चुपचाप खड़े हो गए।
और बहुत सी पूजा करने योग्य वस्तुओं से उनकी पूजा अर्चना की ।
महेश्वर बोले - आज का दिन बहुत महान है। इसमें तुम्हारे द्वारा जो मेरी पूजा हुई है उससे मैं तुम लोगों पर बहुत प्रसन्न हूँ। आज का दिन परम् पवित्र औऱ महान होगा। आज की तिथि 'शिवरात्रि' के नाम से विख्यात होगी।
इस समय में जो मेरे लिंग (निष्कल -यानि अंग आकृति से रहित निराकार स्वरूप के प्रतीक)
और मूर्ति (साकार स्वरूप के प्रतीक की पूजा करेगा, वह जगत का पालन आदि कार्य कर सकता है।
जहाँ पर श्री ब्रह्मा , श्री विष्णु वहां पर शंकर ज्योतिर्मय स्तम्भ रुप (लिंग रुप) में प्रकट होकर बहुत बड़ा हो गया था। अतः उस लिंग के कारण यह भूतल 'लिंगस्थान' के नाम् से प्रसिद्ध हुआ। जगत के लोग इसका पूजन एवं दर्शन कर सके, इसके लिए यह अनादि एवं अनन्त ज्योतिर्मय स्तम्भ ( लिंग ) अत्यंत छोटा हो गया।
यह लिंग मोक्ष का एकमात्र साधन है। अग्नि के पहाड़ जैसा जो शिवलिंग यहाँ प्रकट हुआ,इस कारण यह स्थान अरुणाचल नाम से प्रसिद्ध होगा।

मेरे दो रुप हैं सकल और निष्कल।
दूसरे किसी देवता के ऐसे रूप नहीं है। पहले मैं स्तम्भ रूप में प्रकट हुआ,फिर अपने साक्षात रूप में।
ब्रह्मभाव मेरा निष्कल रूप (लिंग रूप) है एवम महेश्वर भाव मेरा सकल रूप।
ये दोनों मेरे ही सिद्धरूप हैं।
ब्रह्मरूप होने के कारण मैं ईश्वर हूँ। मैं ही जगत की वृद्धि करने वाला ब्रह्म हूँ।
मेरी ब्रह्म रूपता का बोध कराने के लिए ही निष्कल (बिना किसी अंग के ) लिंग रुप प्रकट हुआ।
फिर अज्ञात ईश्वर का बोध कराने के लिए मैं सकल रुप में अवतरित हुआ।



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