हमने बहुत सारे भगवान् तुल्य दलित संतो का अध्ययन किया । जिसमे निम्नलिखित प्रमुख संतो ने भगवन शिव, विष्णु , राम और कृष्ण की ही आराधना की है ।
संत नंदनार: नंदनार ७ वीं - ८ वीं शताब्दी में जन्मे शैव परंपरा के नायनार संत थे । वो अडनूर तमिलनाडु में रहते थे । जिन्हें ३,००० से अधिक ब्राह्मण संत ने थिलाई नटराज मंदिर चिदंरम में प्रणाम और सम्मान दिया था ।
संत चोखामेला : संत चोखामेला १४ वीं शताब्दी के संत थे । चोखामेला वारकरी सम्प्रदाय के थे। पंढरपुर के विठ्ठल, जो विष्णु का ही रूप है जिन्हें कभी कृष्ण तो कभी शिव के स्वरूप में पूजा जाता हैसंत चोखामेला ने कई अभंग लिखे हैं, जिसके कारण उन्हें भारत का पहला दलित-कवि कहा गया है। सामाजिक-परिवर्तन के आन्दोलन में चोखामेला पहले संत थे, जिन्होंने भक्ति-काल के दौर में सामाजिक-गैर बराबरी को लोगों के सामने रखा। इनके समाधी से आज भी विट्ठल विट्ठल की आवाज आती है ।
ज्ञातव्य : संत चोखामेला की समाधी की राजनितिक फायदे के लिए गये आंबेडकर को रोक दिया गया था । जब वो संविधान लिख रहे थे ।
संत हरिचंद ठाकुर : हरिचंद ठाकुर (1811–1839 बंगाल में जन्मे संत जिसने वैष्णव मत रखा । वो ओड़ाकांदि फरीदपुर (बांग्लादेश) में जन्म लिए थे ।
संत रविदास : ये १४ वीं शताब्दी में चंवर वंश के संत थे । जिन्होंने भगवान श्री हरि,श्री राम और श्री कृष्ण की भक्ति की ।
मैं का जांनूं देव मैं का जांनू।
मन माया के हाथि बिकांनूं।। टेक।।
चंचल मनवां चहु दिसि धावै; जिभ्या इंद्री हाथि न आवै।
तुम तौ आहि जगत गुर स्वांमीं, हम कहियत कलिजुग के कांमी।।१।।
लोक बेद मेरे सुकृत बढ़ाई, लोक लीक मोपैं तजी न जाई।
इन मिलि मेरौ मन जु बिगार्यौ, दिन दिन हरि जी सूँ अंतर पार्यौ।।२।।
सनक सनंदन महा मुनि ग्यांनी, सुख नारद ब्यास इहै बखांनीं।
गावत निगम उमांपति स्वांमीं, सेस सहंस मुख कीरति गांमी।।३।।
जहाँ जहाँ जांऊँ तहाँ दुख की रासी, जौ न पतियाइ साध है साखी।
जमदूतनि बहु बिधि करि मार्यौ, तऊ निलज अजहूँ नहीं हार्यौ।।४।।
हरि पद बिमुख आस नहीं छूटै, ताथैं त्रिसनां दिन दिन लूटै।
बहु बिधि करम लीयैं भटकावै, तुमहि दोस हरि कौं न लगावै।।५।।
केवल रांम नांम नहीं लीया। संतुति विषै स्वादि चित दीया।
कहै रैदास कहाँ लग कहिये, बिन जग नाथ सदा सुख सहियै।।६।।
रामा हो जगजीवन मोरा।
तूँ न बिसारि राम मैं जन तोरा॥टेक॥
संकट सोच पोच दिनराती।
करम कठिन मोरि जाति कुजाती॥१॥
हरहु बिपति भावै करहु सो भाव।
चरण न छाड़ौं जाव सो जाव॥२॥
कह रैदास कछु देहु अलंबन।
बेगि मिलौ जनि करो बिलंबन॥३॥
संत नंदनार: नंदनार ७ वीं - ८ वीं शताब्दी में जन्मे शैव परंपरा के नायनार संत थे । वो अडनूर तमिलनाडु में रहते थे । जिन्हें ३,००० से अधिक ब्राह्मण संत ने थिलाई नटराज मंदिर चिदंरम में प्रणाम और सम्मान दिया था ।
संत चोखामेला : संत चोखामेला १४ वीं शताब्दी के संत थे । चोखामेला वारकरी सम्प्रदाय के थे। पंढरपुर के विठ्ठल, जो विष्णु का ही रूप है जिन्हें कभी कृष्ण तो कभी शिव के स्वरूप में पूजा जाता हैसंत चोखामेला ने कई अभंग लिखे हैं, जिसके कारण उन्हें भारत का पहला दलित-कवि कहा गया है। सामाजिक-परिवर्तन के आन्दोलन में चोखामेला पहले संत थे, जिन्होंने भक्ति-काल के दौर में सामाजिक-गैर बराबरी को लोगों के सामने रखा। इनके समाधी से आज भी विट्ठल विट्ठल की आवाज आती है ।
ज्ञातव्य : संत चोखामेला की समाधी की राजनितिक फायदे के लिए गये आंबेडकर को रोक दिया गया था । जब वो संविधान लिख रहे थे ।
संत हरिचंद ठाकुर : हरिचंद ठाकुर (1811–1839 बंगाल में जन्मे संत जिसने वैष्णव मत रखा । वो ओड़ाकांदि फरीदपुर (बांग्लादेश) में जन्म लिए थे ।
संत रविदास : ये १४ वीं शताब्दी में चंवर वंश के संत थे । जिन्होंने भगवान श्री हरि,श्री राम और श्री कृष्ण की भक्ति की ।
मैं का जांनूं देव मैं का जांनू।
मन माया के हाथि बिकांनूं।। टेक।।
चंचल मनवां चहु दिसि धावै; जिभ्या इंद्री हाथि न आवै।
तुम तौ आहि जगत गुर स्वांमीं, हम कहियत कलिजुग के कांमी।।१।।
लोक बेद मेरे सुकृत बढ़ाई, लोक लीक मोपैं तजी न जाई।
इन मिलि मेरौ मन जु बिगार्यौ, दिन दिन हरि जी सूँ अंतर पार्यौ।।२।।
सनक सनंदन महा मुनि ग्यांनी, सुख नारद ब्यास इहै बखांनीं।
गावत निगम उमांपति स्वांमीं, सेस सहंस मुख कीरति गांमी।।३।।
जहाँ जहाँ जांऊँ तहाँ दुख की रासी, जौ न पतियाइ साध है साखी।
जमदूतनि बहु बिधि करि मार्यौ, तऊ निलज अजहूँ नहीं हार्यौ।।४।।
हरि पद बिमुख आस नहीं छूटै, ताथैं त्रिसनां दिन दिन लूटै।
बहु बिधि करम लीयैं भटकावै, तुमहि दोस हरि कौं न लगावै।।५।।
केवल रांम नांम नहीं लीया। संतुति विषै स्वादि चित दीया।
कहै रैदास कहाँ लग कहिये, बिन जग नाथ सदा सुख सहियै।।६।।
रामा हो जगजीवन मोरा।
तूँ न बिसारि राम मैं जन तोरा॥टेक॥
संकट सोच पोच दिनराती।
करम कठिन मोरि जाति कुजाती॥१॥
हरहु बिपति भावै करहु सो भाव।
चरण न छाड़ौं जाव सो जाव॥२॥
कह रैदास कछु देहु अलंबन।
बेगि मिलौ जनि करो बिलंबन॥३॥
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