Thursday, 6 July 2017

धर्म मार्ग मोक्ष पाने ज्ञान वैराग्य और भक्ति मार्ग


धर्म शाश्त्र के सूक्ष्म अध्यनों से पता चलता है की बुद्ध महावीर मीरा कबीर तुलसीदास सूरदास रविदास नानक मेंही दास इत्यादि महपुरुषों ने वैदिक सनातन धर्म को जनमानस के लिए लोकभाषा (प्रचलित बोलने और समझने वाले) भाषा में पडोसा | लोकभाषा ने होने के कारन अनेक पंथ और ग्रन्थ हुए| जो वैदिक सनातन धर्म को बचाने में कामयाब रहे |
वेद पुराण कहता है भगवन ब्रह्मा ने जीवो की आयु और कर्म के लिए नियम बनाये है | नियम को मृत्युभुवन का राजा काल और इंद्र है | नियम को पालन करना ही धर्म है | मृत्यु एक सच्चाई है |
जीव की आत्मा अमर है | आत्मा का एक मात्र आश्रय और एक मात्र अंतिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति या आत्मा का श्री हरि (नारायण) में मिल जाना है | यानी आत्मा का परमात्मा में मिलना ही मोक्ष है | जो जीव मोक्ष प्राप्त करता है उसका पुनः जन्म नहीं होता है |
ज्ञान वैराग्य भक्तिमार्ग तपस्या योग इत्यादि सत्य (श्री हरि सत्यनारायण ) को पाने का रास्ता है |
अतः श्री हरि विष्णु (नारायण) को पाने का अनेक रास्ता है लेकिन भक्ति प्रेम आसान रास्ता है |
वाल्मीकि बुद्ध महावीर शंकराचार्य रामकृष्ण परमहंस विवेकानंद ने ज्ञान और वैराग्य का रास्ता चुना | जो सामान्य जीवों से संभव नहीं है | ये तपस्वी और कर्मयोगी द्वारा संभव है |
मीरा कबीर तुलसीदास सूरदास रविदास नानक मेंही दास इत्यादि महपुरुषों ने भक्तिमार्ग चुना जो आसान और सुगम है |
हे धर्म धुरंधर जागो | श्री राम श्री कृष्ण स्वयं नहानरायण है | जिनका भक्तिमार्ग से केवल नाम लेकर ही मनुष्य के जीवन को सार्थक करे |
हरे राम हरे राम | राम राम हरे हरे ||
हरे कृष्ण हरे कृष्ण | कृष्ण कृष्ण हरे हरे ||
हरि ॐ तत्सत |

Tuesday, 4 July 2017

भारत में मुसलमानो के 800 वर्ष के शासन का झूठ

इतिहास के वास्तविक नायक कौन थे? और उन्होंने किस प्रकार मुगलिया ताकतों को रोके रखा और भारतीय संस्कृति की रक्षा में सफल रहे।  प्रारम्भ करते है मुहम्मद बिन कासिम के समय से-

_*राजा दाहिर :*_

_भारत पर पहला आक्रमण मुहम्मद बिन ने 711 ई में सिंध पर किया। राजा दाहिर पूरी शक्ति से लड़े और मुसलमानों के धोखे के शिकार होकर वीरगति को प्राप्त हुए।_

_*बप्पा रावल:*_

 _दूसरा हमला 735 में राजपुताना पर हुआ जब हज्जात ने सेना भेजकर बप्पा रावल के राज्य पर आक्रमण किया। वीर बप्पा रावल ने मुसलमानों को न केवल खदेड़ा बल्कि अफगानिस्तान तक मुस्लिम राज्यों को रौंदते हुए अरब की सीमा तक पहुँच गए। ईरान अफगानिस्तान के मुस्लिम सुल्तानों ने उन्हें अपनी पुत्रियां भेंट की और उन्होंने 35 मुस्लिम लड़कियों से विवाह करके सनातन धर्म का डंका पुन: बजाया। बप्पा रावल का इतिहास कही नहीं पढ़ाया जाता। यहाँ तक की अधिकतर इतिहासकर उनका नाम भी छुपाते है। गिनती भर हिन्दू होंगे जो उनका नाम जानते हैं!_
*_दूसरे ही युद्ध में भारत से इस्लाम समाप्त हो चुका था। ये था भारत में पहली बार इस्लाम का नाश।_*
_*सोमनाथ के रक्षक राजा जयपाल और आनंदपाल:*_ _अब आगे बढ़ते है गजनवी पर। बप्पा रावल के आक्रमणों से मुसलमान इतने भयक्रांत हुए की अगले 300 सालों तक वे भारत से दूर रहे।_
_इसके बाद महमूद गजनवी ने 1002 से 1017 तक भारत पर कई आक्रमण किये पर हर बार उसे भारत के हिन्दू राजाओ से कड़ा उत्तर मिला। पहले राजा जयपाल और फिर उनका पुत्र आनंदपाल, दोनों ने उसे मार भगाया था।_
_महमूद गजनवी ने सोमनाथ पर भी कई आक्रमण किये पर 17 वे युद्ध में उसे सफलता मिली थी। सोमनाथ के शिवलिंग को उसने तोडा नहीं था बल्कि उसे लूट कर वह काबा ले गया था। जिसका रहस्य आपके समक्ष जल्द ही रखता हु। यहाँ से उसे शिवलिंग तो मिल गया जो चुम्बक का बना हुआ था। पर खजाना नहीं मिला। भारतीय राजाओ के निरंतर आक्रमण से वह वापिस गजनी लौट गया और अगले 100 सालो तक कोई भी मुस्लिम आक्रमणकारी भारत पर आक्रमण न कर सका।_

_*सम्राट पृथ्वीराज चौहान:*_

 _1098 में मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज राज चौहान को 16 युद्द के बाद परास्त किया और अजमेर व दिल्ली पर उसके गुलाम वंश के शासक जैसे कुतुबुद्दीन, इल्तुमिश व बलवन दिल्ली से आगे न बढ़ सके। उन्हें हिन्दू राजाओ के प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। पश्चिमी द्वार खुला रहा जहाँ से बाद में ख़िलजी लोधी तुगलक आदि आये। ख़िलजी भारत के उत्तरी भाग से होते हुए बिहार बंगाल पहुँच गए। कूच बिहार व बंगाल में मुसलमानो का राज्य हो गया पर बिहार व अवध प्रदेश मुसलमानो से अब भी दूर थे। शेष भारत में केवल गुजरात ही मुसलमानो के अधिकार में था। अन्य भाग स्वतन्त्र थे।_
_*राणा सांगा:-*_
 _1526 में राणा सांगा ने इब्राहिम लोधी के विरुद्ध बाबर को बुलाया। बाबर ने लोधियों की सत्ता तो उखाड़ दी पर वो भारत की सम्पन्नता देख यही रुक गया और राणा सांगा को उसने युद्ध में हरा दिया। चित्तोड़ तब भी स्वतंत्र रहा पर अब दिल्ली मुगलो के अधिकार में थी। हुमायूँ दिल्ली पर अधिकार नहीं कर पाया पर उसका बेटा अवश्य दिल्ली से आगरा के भाग पर शासन करने में सफल रहा। तब तक कश्मीर भी मुसलमानो के अधिकार में आ चूका था।_

*_महाराणा प्रताप:-_*

_अकबर पुरे जीवन महाराणा प्रताप से युद्ध में व्यस्त रहा। जो बाप्पा रावल के ही वंशज थे और उदय सिंह के पुत्र थे जिनके पूर्वजो ने 700 सालो तक मुस्लिम आक्रमणकारियों का सफलतापूर्वक सामना किया। जहाँगीर व शाहजहाँ भी राजपूतों से युद्धों में व्यस्त रहे व भारत के बाकी भाग पर राज्य न कर पाये।_
_दक्षिण में बीजापुर में तब तक इस्लाम शासन स्थापित हो चुका था।_

*_छत्रपति शिवाजी महाराज:_*

 _औरंगजेब के समय में मराठा शक्ति का उदय हुआ और शिवाजी महाराज से लेकर पेशवाओ ने मुगलो की जड़े खोद डाली। शिवाजी महाराज द्वारा स्थापित हिंदवी स्वराज्य का विस्तार उनके बाद आने वाले मराठा वीरों ने किया। बाजीराव पेशवा इन्होने मराठा सम्राज्य को भारत में हिमाचल बंगाल और पुरे दक्षिण में फैलाया। दिल्ली में उन्होंने आक्रमण से पहले गौरी शंकर भगवान से मन्नत मांगी थी कि यदि वे सफल रहे तो चांदनी चौक में वे भव्य मंदिर बनाएंगे। जहाँ कभी पीपल के पेड़ के नीचे 5 शिवलिंग रखे थे। बाजीराव ने दिल्ली पर अधिकार किया और गौरी शंकर मंदिर का निर्माण किया। जिसका प्रमाण मंदिर के बाहर उनके नाम का लगा हुआ शिलालेख है। बाजीराव पेशवा ने एक शक्तिशाली हिन्दुराष्ट्र की स्थापना की जो 1830 तक अंग्रेजो के आने तक स्थापित रहा।_

_*अंग्रेजों और मुगलों की मिलीभगत:*_

_मुगल सुल्तान मराठाओ को चौथ व कर देते रहे थे और केवल लालकिले तक सिमित रह गए थे। और वे तब तक शक्तिहीन रहे। जब तक अंग्रेज भारत में नहीं आ गए। 1760 के बाद भारत में मुस्लिम जनसँख्या में जबरदस्त गिरावट हुई जो 1800 तक मात्र 7 प्रतिशत तक पहुँच गयी थी। अंग्रेजो के आने के बाद मुसल्मानो को संजीवनी मिली और पुन इस्लाम को खड़ा किया गया, ताकि भारत में सनातन धर्म को नष्ट किया जा सके। इसलिए अंग्रेजो ने 50 साल से अधिक समय से पहले ही मुसलमानो के सहारे भारत विभाजन का षड्यंत्र रच लिया था। मुसलमानो के हिन्दु विरोधी रवैये व उनके धार्मिक जूनून को अंग्रेजो ने सही से प्रयोग किया तो यह झूठा इतिहास क्यों पढ़ाया गया?:

सनातन धर्म और बुद्ध

धर्म क्या है ?
एस धम्मो सनंतनो अर्थात यही है सनातन धर्म। बु‍द्ध का मार्ग ही सच्चे अर्थों में धर्म का मार्ग है। दोनों तरह की अतियों से अलग एकदम स्पष्ट और साफ। जिन्होंने इसे नहीं जाना उन्होंने कुछ नहीं जाना।
धर्मराज (भगवान काल) द्वारा जीवो के लिए बनाये गए नियम पालन ही धर्म है | 
धर्म शाश्त्र के सूक्ष्म अध्यनों से पता चलता है की बुद्ध महावीर मीरा कबीर तुलसीदास सूरदास रविदास नानक मेंही दास इत्यादि महपुरुषों ने वैदिक सनातन धर्म को जनमानस के लिए लोकभाषा (प्रचलित बोलने और समझने वाले) भाषा में पडोसा | लोकभाषा में होने के कारन अनेक पंथ और ग्रन्थ हुए| जो वैदिक सनातन धर्म को बचाने में कामयाब रहे |
वेद पुराण कहता है भगवन ब्रह्मा ने जीवो की आयु और कर्म के लिए नियम बनाये है | नियम को मृत्युभुवन का राजा काल और इंद्र है | नियम को पालन करना ही धर्म है | मृत्यु एक सच्चाई है |
जीव की आत्मा अमर है | आत्मा का एक मात्र आश्रय और एक मात्र अंतिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति या आत्मा का श्री हरि (नारायण) में मिल जाना है | यानी आत्मा का परमात्मा में मिलना ही मोक्ष है | जो जीव मोक्ष प्राप्त करता है उसका पुनः जन्म नहीं होता है |

ज्ञान वैराग्य भक्तिमार्ग तपस्या योग इत्यादि सत्य (श्री हरि सत्यनारायण ) को पाने का रास्ता है | अतः श्री हरि विष्णु (नारायण) को पाने का अनेक रास्ता है लेकिन भक्ति प्रेम आसान रास्ता है |
वाल्मीकि बुद्ध महावीर शंकराचार्य रामकृष्ण परमहंस विवेकानंद ने ज्ञान और वैराग्य का रास्ता चुना | जो सामान्य जीवों से संभव नहीं है | ये तपस्वी और कर्मयोगी द्वारा संभव है |
मीरा कबीर तुलसीदास सूरदास रविदास नानक मेंही दास इत्यादि महपुरुषों ने भक्तिमार्ग चुना जो आसान और सुगम है |
हे धर्म धुरंधर जागो | श्री राम श्री कृष्ण स्वयं नहानरायण है | जिनका भक्तिमार्ग से केवल नाम लेकर ही मनुष्य के जीवन को सार्थक करे |
हरे राम हरे राम | राम राम हरे हरे ||
हरे कृष्ण हरे कृष्ण | कृष्ण कृष्ण हरे हरे ||
हरि ॐ तत्सत |
बुद्ध की शिक्षा-दिक्षा : वैसे तो राजपुत्र सिद्धार्थ ने कई विद्वानों को अपना गुरु बनाया किंतु गुरु विश्वामित्र के पास उन्होंने वेद और उपनिषद् पढ़े, साथ ही राजकाज और युद्ध-विद्या की भी शिक्षा ली।
सिद्धार्थ ने गुरु विश्वामित्र के पास वेद और उपनिषद्‌ तो पढ़े ही, राजकाज और युद्ध-विद्या की भी शिक्षा ली। कुश्ती, घुड़दौड़, तीर-कमान, रथ हाँकने में कोई उसकी बराबरी नहीं कर पाता। सोलह वर्ष की उम्र में सिद्धार्थ का कोली कन्या यशोधरा के साथ विवाह हुआ। पिता द्वारा ऋतुओं के अनुरूप बनाए गए वैभवशाली और समस्त भोगों से युक्त महल में वे यशोधरा के साथ रहने लगे जहाँ उनके पुत्र राहुल का जन्म हुआ। लेकिन विवाहके बाद उनका मन वैराग्यमें चला और सम्यक सुख-शांतिके लिए उन्होंने आपने परिवार का त्याग कर दिया
काल धर्मराज का ज्ञान कैसे हुआ ?
राजा शुद्धोधन ने सिद्धार्थ के लिए भोग-विलास का भरपूर प्रबंध कर दिया। तीन ऋतुओं के लायक तीन सुंदर महल बनवा दिए। वहाँ पर नाच-गान और मनोरंजन की सारी सामग्री जुटा दी गई। दास-दासी उसकी सेवा में रख दिए गए। पर ये सब चीजें सिद्धार्थ को संसार में बाँधकर नहीं रख सकीं।
वसंत ऋतु में एक दिन सिद्धार्थ बगीचे की सैर पर निकले। उन्हें सड़क पर एक बूढ़ा आदमी दिखाई दिया। उसके दाँत टूट गए थे, बाल पक गए थे, शरीर टेढ़ा हो गया था। हाथ में लाठी पकड़े धीरे-धीरे काँपता हुआ वह सड़क पर चल रहा था। दूसरी बार कुमार जब बगीचे की सैर को निकला, तो उसकी आँखों के आगे एक रोगी आ गया। उसकी साँस तेजी से चल रही थी। कंधे ढीले पड़ गए थे। बाँहें सूख गई थीं। पेट फूल गया था। चेहरा पीला पड़ गया था। दूसरे के सहारे वह बड़ी मुश्किल से चल पा रहा था।
तीसरी बार सिद्धार्थ को एक अर्थी मिली। चार आदमी उसे उठाकर लिए जा रहे थे। पीछे-पीछे बहुत से लोग थे। कोई रो रहा था, कोई छाती पीट रहा था, कोई अपने बाल नोच रहा था। 
इस तरह उन्हें धर्मराज का राजा होने का ज्ञान हुआ |
इन दृश्यों ने सिद्धार्थ को बहुत विचलित किया। उन्होंने सोचा कि ‘धिक्कार है जवानी को, जो जीवन को सोख लेती है। धिक्कार है स्वास्थ्य को, जो शरीर को नष्ट कर देता है। धिक्कार है जीवन को, जो इतनी जल्दी अपना अध्याय पूरा कर देता है। क्या बुढ़ापा, बीमारी और मौत सदा इसी तरह होती रहेगी सौम्य? चौथी बार कुमार बगीचे की सैर को निकला, तो उसे एक संन्यासी दिखाई पड़ा। संसार की सारी भावनाओं और कामनाओं से मुक्त प्रसन्नचित्त संन्यासी ने सिद्धार्थ को आकृष्ट किया।
राजा कितने है?
देवराज इंद्र :पूण्य के लिए स्वर्ग
धर्मराज काल :पापी के लिए नरक

बोधीवृक्ष : उसी रात को ध्यान लगाते समय सिद्धार्थ को सच्चा बोध हुआ। वहीं उन्हें बुद्धत्व उपलब्ध हुआ। भारत के बिहार में बोधगया में आज भी वह वटवृक्ष विद्यमान है जिसे अब बोधीवृक्ष कहा जाता है।
यहीं सत्य ( हरि ॐ तत्सत ) का ज्ञान हुआ |
राजपुत्र सिद्धार्थ ने राजपाट त्याग कर सच्चा ज्ञान प्राप्त किया बुद्ध बने और सत्य( हरि ॐ तत्सत ) की शरणगति ली |
धर्म शरणम : धर्मराज मृत्यु के देवता का शरणगत होना |
संघम शरणम : सत्संग धर्मात्मा का शरणगति होना |
सत्यम शरणम : सत्य (हरि ॐ तत्सत या राम नाम सत्य है) की शरण गति होना |

अतः बुद्ध ने सत्संगत सद्मार्ग मृत्यु लोक के राजा धर्मराज और सत्यनारायण श्री राम की शरणगति होना ही जीव का लक्ष्य है |
अब भगवन कल्कि कलियुग के अंतिम चरण में आएंगे |
जय श्री राम | हरी ॐ तत्सत |

Sunday, 2 July 2017

हिन्दुस्थान

'हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्। तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थान प्रचक्षते॥- (बृहस्पति आगम)
अर्थात : हिमालय से प्रारंभ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक यह देव निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है।   इसका मतलब हिन्दुस्थान चंद्रगुप्त मौर्य के काल में था लेकिन आज जिसे हिन्दुस्थान कहते हैं वह क्या है?
राजा प्रियव्रत ने अपनी पुत्री के 10 पुत्रों में से 7 को संपूर्ण धरती के 7 महाद्वीपों का राजा बनाया दिया था और अग्नीन्ध्र को जम्बू द्वीप का राजा बना दिया था।
 इस प्रकार राजा भरत ने जो क्षेत्र अपने पुत्र सुमति को दिया वह भारतवर्ष कहलाया। भारतवर्ष अर्थात भरत राजा का क्षे‍त्र।
 सप्तद्वीपपरिक्रान्तं जम्बूदीपं निबोधत।
अग्नीध्रं ज्येष्ठदायादं कन्यापुत्रं महाबलम।।
प्रियव्रतोअभ्यषिञ्चतं जम्बूद्वीपेश्वरं नृपम्।।  
तस्य पुत्रा बभूवुर्हि प्रजापतिसमौजस:।
ज्येष्ठो नाभिरिति ख्यातस्तस्य किम्पुरूषोअनुज:।।
नाभेर्हि सर्गं वक्ष्यामि हिमाह्व तन्निबोधत। (वायु 31-37, 38)  
इनमें जम्बू द्वीप आज के यूरेशिया के लिए प्रयुक्त किया गया है। इस जम्बू द्वीप में भारत खण्ड अर्थात भरत का क्षेत्र अर्थात ‘भारतवर्ष’ स्थित है, जो कि आर्यावर्त कहलाता है।
जम्बू द्वीप का विस्तार
* जम्बू दीप : सम्पूर्ण एशिया  
जब भी मुंडन, विवाह आदि मंगल कार्यों में मंत्र पड़े जाते हैं, तो उसमें संकल्प की शुरुआत में इसका जिक्र आता है:  
।।जम्बू द्वीपे भारतखंडे आर्याव्रत देशांतर्गते….अमुक...।
* इनमें जम्बू द्वीप आज के यूरेशिया के लिए प्रयुक्त किया गया है। इस जम्बू द्वीप में भारत खण्ड अर्थात भरत का क्षेत्र अर्थात ‘भारतवर्ष’ स्थित है, जो कि आर्यावर्त कहलाता है।    
।।हिमालयं दक्षिणं वर्षं भरताय न्यवेदयत्। तस्मात्तद्भारतं वर्ष तस्य नाम्ना बिदुर्बुधा:.....।।  
* हिमालय पर्वत से दक्षिण का वर्ष अर्थात क्षेत्र भारतवर्ष है।  
* भारतवर्ष : पारस (ईरान), अफगानिस्तान, पाकिस्तान, हिन्दुस्थान, नेपाल, तिब्बत, भूटान, म्यांमार, श्रीलंका, मालद्वीप, थाईलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया, कम्बोडिया, वियतनाम, लाओस तक भारतवर्ष।
आर्यावर्त : बहुत से लोग भारतवर्ष को ही आर्यावर्त मानते हैं जबकि यह भारत का एक हिस्सा मात्र था। वेदों में उत्तरी भारत को आर्यावर्त कहा गया है।  आर्यावर्त का अर्थ आर्यों का निवास स्थान। आर्यभूमि का विस्तार काबुल की कुंभा नदी से भारत की गंगा नदी तक था।
  ऋग्वेद में आर्यों के निवास स्थान को 'सप्तसिंधु' प्रदेश कहा गया है।  ऋग्वेद के नदीसूक्त (10/75) में आर्यनिवास में प्रवाहित होने वाली नदियों का वर्णन मिलता है, जो मुख्‍य हैं:-   कुभा (काबुल नदी), क्रुगु (कुर्रम), गोमती (गोमल), सिंधु, परुष्णी (रावी), शुतुद्री (सतलज), वितस्ता (झेलम), सरस्वती, यमुना तथा गंगा। उक्त संपूर्ण नदियों के आसपास और इसके विस्तार क्षेत्र तक आर्य रहते थे।
जम्बू द्वीप से छोटा है भारतवर्ष। भारतवर्ष में ही आर्यावर्त स्थित था। आज न जम्बू द्वीप है न भारतवर्ष और न आर्यावर्त। आज सिर्फ हिन्दुस्थान है और सच कहें तो यह भी नहीं। क्या कारण हैं कि वेदों को मानने
भारतवर्ष में ही आर्यावर्त स्थित था। आज न जम्बू द्वीप है न भारतवर्ष और न आर्यावर्त। आज सिर्फ हिन्दुस्थान है और सच कहें तो यह भी नहीं। क्या कारण कि वेदों को मानने वाले लोग अब अपनेही देश मेंदर-बदर हैं? वह लोग जिनके कारण ही दुनियाभर के धर्मों और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई, वह लोग जिनके कारण दुनिया को ज्ञान, विज्ञान, योग, ध्यान और तत्व ज्ञान मिला।
''सुदर्शनं प्रवक्ष्यामि द्वीपं तु कुरुनन्दन। परिमण्डलो महाराज द्वीपोऽसौ चक्रसंस्थितः॥
यथा हि पुरुषः पश्येदादर्शे मुखमात्मनः। एवं सुदर्शनद्वीपो दृश्यते चन्द्रमण्डले॥ 

द्विरंशे पिप्पलस्तत्र द्विरंशे च शशो महान्।। -वेदव्यास, भीष्म पर्व, महाभारत
हिन्दी अर्थ : हे कुरुनन्दन! सुदर्शन नामक यह द्वीप चक्र की भांति गोलाकार स्थित है, जैसे पुरुष दर्पण में अपना मुख देखता है, उसी प्रकार यह द्वीप चन्द्रमण्डल में दिखाई देता है। इसके दो अंशों में पिप्पल और दो अंशों में महान शश (खरगोश) दिखाई देता है।
अर्थात : दो अंशों में पिप्पल का अर्थ पीपल के दो पत्तों और दो अंशों में शश अर्थात खरगोश की आकृति के समान दिखाई देता है। आप कागज पर पीपल के दो पत्तों और दो खरगोश की आकृति बनाइए और फिर उसे उल्टा करके देखिए, आपको धरती का मानचित्र दिखाई देखा। यह श्लोक 5 हजार वर्ष पूर्व लिखा गया था। इसका मतलब लोगों ने चंद्रमा पर जाकर इस धरती को देखा होगा तभी वह बताने में सक्षम हुआ होगा कि ऊपर से समुद्र को छोड़कर धरती कहां-कहां नजर आती है और किस तरह की।पहले संपूर्ण हिन्दू जाति जम्बू द्वीप पर शासन करती थी। फिर उसका शासन घटकर भारतवर्ष तक सीमित हो गया। फिर कुरुओं और पुरुओं की लड़ाई के बाद आर्यावर्त नामक एक नए क्षेत्र का जन्म हुआ जिसमें आज के हिन्दुस्थान के कुछ हिस्से, संपूर्ण पाकिस्तान और संपूर्ण अफगानिस्तान का क्षेत्र था। लेकिन लगातार आक्रमण, धर्मांतरण और युद्ध के चलते अब घटते-घटते सिर्फ हिन्दुस्तान बचा है।>यह कहना सही नहीं होगा कि पहले हिन्दुस्थान का नाम भारतवर्ष था और उसके भी पूर्व जम्बू द्वीप था। कहना यह चाहिए कि आज जिसका नाम हिन्दुस्तान है वह भारतवर्ष का एक टुकड़ा मात्र है। जिसे आर्यावर्त कहते हैं वह भी भारतवर्ष का एक हिस्साभर है और जिसे भारतवर्ष कहते हैं वह तो जम्बू द्वीप का एक हिस्सा है मात्र है। जम्बू द्वीप में पहले देव-असुर और फिर बहुत बाद में कुरुवंश और पुरुवंश की लड़ाई और विचारधाराओं के टकराव के चलते यह जम्बू द्वीप कई भागों में बंटता चला गया।

धरती के सात द्वीप : पुराणों और वेदों के अनुसार धरती के सात द्वीप थे- जम्बू, प्लक्ष, शाल्मली, कुश, क्रौंच, शाक एवं पुष्कर। इसमें से जम्बू द्वीप सभी के बीचोबीच स्थित है।
'जम्बूद्वीप: समस्तानामेतेषां मध्य संस्थित:,
भारतं प्रथमं वर्षं तत: किंपुरुषं स्मृतम्‌,
हरिवर्षं तथैवान्यन्‌मेरोर्दक्षिणतो द्विज।
रम्यकं चोत्तरं वर्षं तस्यैवानुहिरण्यम्‌,
उत्तरा: कुरवश्चैव यथा वै भारतं तथा।
नव साहस्त्रमेकैकमेतेषां द्विजसत्तम्‌,
इलावृतं च तन्मध्ये सौवर्णो मेरुरुच्छित:।
भद्राश्चं पूर्वतो मेरो: केतुमालं च पश्चिमे।
एकादश शतायामा: पादपागिरिकेतव: जंबूद्वीपस्य सांजबूर्नाम हेतुर्महामुने।- (विष्णु पुराण)

जम्बू द्वीप का वर्णन : जम्बू द्वीप को बाहर से लाख योजन वाले खारे पानी के वलयाकार समुद्र ने चारों ओर से घेरा हुआ है। जम्बू द्वीप का विस्तार एक लाख योजन है। इस द्वीप परजम्बू (जामुन) नामक वृक्ष की इस द्वीप पर अधिकता के कारण इस द्वीप का नाम जम्बू द्वीप रखा गया था।
जम्बू द्वीप के 9 खंड थे : इलावृत, भद्राश्व, किंपुरुष, भारत, हरि, केतुमाल, रम्यक, कुरु और हिरण्यमय। इनमें भारतवर्ष ही मृत्युलोक है, शेष देवलोक हैं। इसके चतुर्दिक लवण सागर है। इस संपूर्ण नौ खंड में इसराइल से चीन और रूस से भारतवर्ष का क्षेत्र आता है। जम्बू द्वीप में प्रमुख रूप से 6 पर्वत थे : हिमवान, हेमकूट, निषध, नील, श्वेत और श्रृंगवान।
भारतवर्ष का वर्णन : समुद्र के उत्तर तथा हिमालय के दक्षिण में भारतवर्ष स्थित है। इसका विस्तार 9 हजार योजन है। यह स्वर्ग अपवर्ग प्राप्त कराने वाली कर्मभूमि है।
इसमें 7 कुल पर्वत हैं : महेन्द्र, मलय, सह्य, शुक्तिमान, ऋक्ष, विंध्य और पारियात्र।
भारतवर्ष के 9 खंड : इन्द्रद्वीप, कसेरु, ताम्रपर्ण, गभस्तिमान, नागद्वीप, सौम्य, गन्धर्व और वारुण तथा यह समुद्र से घिरा हुआ द्वीप उनमें नौवां है।
मुख्य नदियां : शतद्रू, चंद्रभागा, वेद, स्मृति, नर्मदा, सुरसा, तापी, पयोष्णी, निर्विन्ध्या, गोदावरी, भीमरथी, कृष्णवेणी, कृतमाला, ताम्रपर्णी, त्रिसामा, आर्यकुल्या, ऋषिकुल्या, कुमारी आदि नदियां जिनकी सहस्रों शाखाएं और उपनदियां हैं। तट के निवासी : इन नदियों के तटों पर कुरु, पांचाल, पुण्ड्र, कलिंग, मगध, दक्षिणात्य, अपरान्तदेशवासी, सौराष्ट्रगण, तहा शूर, आभीर एवं अर्बुदगण, कारूष, मालव, पारियात्र, सौवीर, सन्धव, हूण, शाल्व, कोशल, मद्र, आराम, अम्बष्ठ और पारसी गण रहते हैं। इसके पूर्वी भाग में किरात और पश्चिमी भाग में यवन बसे हुए हैं।
किसने बसाया भारतवर्ष : त्रेतायुग में अर्थात भगवान राम के काल के हजारों वर्ष पूर्व प्रथम मनु स्वायंभुव मनु के पौत्र और प्रियव्रत के पुत्र ने इस भारतवर्ष को बसाया था, तब इसका नाम कुछ और था।  

 

मंदोदरी की बिटिया का रहस्य

अद्भुत रामायण:मंदोदरी की बिटिया का रहस्य

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तीनों लोक कब्जाने की चाहत लिये रावण की कठिन तपस्या सफल रही. महाबली रावण के तप से जो तेज उपजा उससे सारा संसार जलने लगा. सभी देवता घबराये हुये ब्रह्मा जी के पास पहुंचे. देवताओं ने मिलकर ब्रह्मा जी से कहा कि इस स्थिति से जल्द निबटना होगा वरना हम सब भस्म हो जायेंगे.
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ब्रह्मा जी, तुरंत रावण के पास पहुंचे और पूछा कि इतनी कठोर तपस्या क्यों कर रहे हो ? तपस्या छोड़ो अब वर मांगों. रावण ने ब्रह्मा जी से कहा, ‘ मैं किसी से कभी न मरूं, मुझे अमर होने का वरदान दीजिए.’ ब्रह्माजी ने कहा यह असंभव है. जो पैदा हुआ है मरेगा. कुछ और मांगो.
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ब्रह्मा जी को वर देने में असहाय देख रावण ने कहा, यह वर नहीं दे सकते तो ऐसा वर दीजिए कि मुझे सुर, असुर, पिशाच, नाग, किन्नर या अप्सरा कोई भी न मार सके. मानव तो मुझे क्या मार सकेगा पर जब मैं अपनी कन्या को अपनी रानी बनाने पर आऊं तब मेरी मृत्यु हो. ब्रह्मा जी ने ठीक है कहा और ब्रह्मलोक चले गए.
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वरदान पाकर मदमाता रावण तप खत्म कर विजय अभियान पर निकला. उन दिनों दंडकारण्य में बहुत से ऋषि-मुनि रहते थे. रावण सैनिकों के साथ वहां से गुजरा तो उसने उनको जीतने के लिये उन्हें जान से मारने की बजाये उनको दंड देना, डराना और इसके लिये उनका खून निकालना ही बहुत समझा.
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रावण के सैनिकों ने ऋषियों के शरीर में गहराई तक बाण चुभोकर खून निकाला. अब इस खून को रखें कहां तो पास ही गत्समद ऋषि की कुटिया थी जिसके भीतर एक सुंदर सा घड़ा रखा था, गुत्समद हवन के लिये लकड़ियां लेने गये थे. सैनिक वह घड़ा उठा लाए और कई ऋषि मुनियों का रक्त उसमें इकट्ठा कर लिया.
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‘गत्समद ऋषि’ सौ पुत्रों के पिता थे, वे चाहते थे कि उनको एक बेटी हो और वह भी लक्ष्मी का अवतार सो उन्होंने माता लक्ष्मी से विनती की कि माता लक्ष्मी उनके घर पुत्री रूप में जन्म लें. इसके लिये वे हर रोज मंत्र पढ एक कुश की नोक से उस घड़े में दूध की एक बूंद डालते थे.
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इसी दूध वाले घड़े में ऋषि मुनियों का खून इकट्ठा कर सैनिकों ने रावण को सौंप दिया. रावण वह घड़ा लेकर लंका पहुंचा और घड़े को अपनी पत्नी मंदोदरी को देकर कहा कि इस कमंडल को संभाल कर रखना.
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मंदोदरी ने पूछा इसमें है क्या ? रावण के लिये ऋषि मुनि जो लोगों को धर्म और सदाचार की राह दिखाते थे उनकी रगों में बहने वाला रक्त जहर बराबर ही था. अत: रावण ने कहा, इसमें दुनिया का सबसे विषैला जहर है. यह कह कर रावण विश्व विजय को चला गया और फिर कई बरस नहीं लौटा.
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रावण ने दुनिया जीत ली. ताकत के घमंड में चूर उसने दानवों, यक्षों, गंधर्वों की सुंदरतम कन्याओं को अपने साथ ले जाकर मंदराचल, हिमवान और मेरू जैसे पर्वतों और जंगलों में मौज मनाने में मशगूल हो गया. मंदोदरी रावण का इंतज़ार करती रही. पति की इस उपेक्षा ने उसे बहुत दुःखी कर दिया था.
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दूसरी स्त्रियों के चक्कर में अपनी प्रिय पत्नी की बरसों खोज खबर न लेने के चलते उदास मंदोदरी ने आत्महत्या का रास्ता चुना. मंदोदरी को रावण द्वारा दिए गए विषैले घड़े की याद आई. उसमें जो भी काला काला सा तरल था उसे विष समझ कर मंदोदरी एक झटके में पी गयी.
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उसे पीने के बाद मंदोदरी मरी नहीं, ऋषि गत्समद द्वारा घड़े में मंत्र पढ कर डाले गये दूध की दो चार बूंदे और माता लक्ष्मी का प्रभाव खून पर हावी रहा और उसके असर से मंदोदरी को गर्भ ठहर गया. 
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कुछ दिनों बाद यह राज जब मंदोदरी पर उजागर हुआ तो वह घबरा गयी, ऐसे में जब उसके पति रावण भी यहां पिछले कई वर्षों से नहीं हैं तब ऐसा होने के बाद महल की अन्य स्त्रियां क्या कहेंगी, यह सब सोच कर मंदोदरी ने तीर्थ यात्रा के लिये विशेष विमान बुलवाया और तीर्थ करने के बहाने विमान से कुरुक्षेत्र आ गईं.
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यहां आ कर मंदोदरी ने गर्भपात करवाया और उस अजन्मे बच्चे को एक सुंदर से कलश में रख जमीन में गाड दिया. इतना सब करने के बाद मंदोदरी लंका लौट गयी. कुछ समय बीत जाने के बाद राजा जनक की मिथिला में भयानक अकाल पड़ा.
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राजा जनक का लगभग समूची धरती पर ही राज था, ज्योतिषियों ने हिसाब किताब कर के बताया कि कहां हल चलाने से वर्षा होगी और समूचे देश में अन्न उपजेगा. उन्हीं के कहने पर वे कुरुक्षेत्र गए और बतायी गयी जगह पर ही सोने के हल से खेत को जोता. हल ने जब जमीन को फाड़ा तो एक कलश निकल आया.
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कलश खोल कर देखा गया तो उसमें एक नवजात कन्या थी जिसके कलश से निकलते ही आसमान से फूलों की बारिश होने लगी और इस पुष्पवर्षा के बीच एक आकाशवाणी हुई, ‘राजा जनक ! इस कन्या का लालन पालन अब तुम्हारी जिम्मेदारी है. हल की रेखा (सीत) से निकलने के कारण इस कन्या का नाम सीता होगा.
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क्या सीता जी वास्तव में रावण की बेटी थीं और यह बात रावण को पता थी ? राम कथा के कई प्रसंग इस तरफ इशारा करते हैं. रावण ने ब्रह्मा जी से वरदान मांगते कहा भी था कि ‘जब मैं अपनी ही कन्या की इच्छा करूं तब मेरी मृत्यु हो.”
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सीता माता असल में किस की पुत्री हैं इन सब सवालों का जवाब देने में हम कहां सक्षम हैं, यह तो प्रभु ही जाने, हम तो बस जो कुछ विद्वानों ने उनकी लीला को धर्म ग्रंथों और पुराणों में बखाना है उसको जस का तस रख सकने भर का ही काम कर सकते हैं. बाकी निर्णय आपका.
स्रोत : अद्भुत रामायण 

Saturday, 1 July 2017

ISIS ने मोसुल में एक महिला को खिलाया उसके ही बेटे का मांस

मोसुल. इराक और सीरिया के कई इलाकों में कब्जा कर चुके आतंकी संगठन आईएसआईएस ने क्रूरता की सारी हदें पार कर दी हैं। खबरों के मुताबिक, आतंकियों ने एक महिला को उसके ही बेटे का मांस खिला दिया। आतंकियों ने उसके बेटे को बंधक बना रखा था। महिला आतंकियों के ठिकाने पर उसकी रिहाई की मांग करने गई थी। आईएसआईएस के खिलाफ युद्ध में हिस्सा लेने इराक गए एक ब्रिटिश लड़ाके यासिर अब्दुल्ला ने आतंकियों के इस कारनामे का खुलासा किया है।
यासिर ने 'द सन' को बताया कि आतंकी एक कुर्द युवक को अगवा कर मोसुल ले गए थे। बाद में अपहृत युवक की बूढ़ी मां आतंकियों के हेडक्वॉर्टर पहुंची और अपने बेटे की रिहाई की मिन्नतें की। तब आतंकियों ने धोखे से महिला को उसके ही बेटे का पकाया हुआ मांस खिला दिया।

यासिर ने न्यूजपेपर को बताया, "वो अपने बेटे को लेकर चिंतित थी और उसे ढूंढते हुए आतंकियों के हेडक्वॉर्टर पहुंच गई। आतंकियों ने उसे आराम से बैठने को कहा, क्योंकि वह बहुत दूर से सफर करके वहां पहुंची थी। आतंकियों ने महिला से कहा कि वो बहुत थकी हुई है और अपने बेटे से मुलाकात करने से पहले कुछ खा ले।"
यासिर ने बताया, "आतंकियों ने उसे चाय, पका हुआ मांस, चावल और सूप दिया। महिला को ज़रा भी अंदाजा नहीं था कि वह अपने ही बेटे का मांस खा रही है। उसने आतंकियों को दयालु समझा।"
उसने बताया, "खाना खाने के बाद महिला ने अपने बेटे से मिलने की इच्छा जाहिर की। तब आतंकी ठहाके मारकर हंसने लगे और कहा - तुम कुछ देर पहले ही अपने बेटे को खा चुकी हो।" यासिर ने बताया कि आतंकियों की क्रूरता की इंतेहा हो चुकी है। वे बंधकों को 'ह्यूमन बोनफायर' में जिंदा डाल देते हैं और उन्हें नृशंस मौत देते हैं।
कौन है यासिर अब्दुल्ला
वेस्ट यॉर्कशायर के कीग्ले निवासी यासिर अब्दुल्ला आईएसआईएस के खिलाफ लड़ने के लिए इराक गया था। उसे जब पता चला कि आतंकी उसके कुर्दिस्तान स्थित पैतृक गांव पर कब्जा करने वाले हैं, वह जंग के लिए इराक चला गया। यासिर 2000 में अपना गांव छोड़ चुका था।
बताया जा रहा है कि 36 वर्षीय यासिर ने इराक जाने से पहले 100 पाउंड में लड़ाकों जैसी वर्दी भी ऑनलाइन खरीदी थी। इराक पहुंचकर यासिर इस्लामिक स्टेट के खिलाफ लड़ रहे कुर्दिश पशमेर्गा की सेना में शामिल हो गया। पिछले हफ्ते ब्रिटेन लौटकर यासिर ने 'द सन' को आतंकियों की क्रूरता की दास्तां सुनाई। अपने परिवार के पास यॉर्कशायर लौटने के बाद यासिर दुबारा कुर्दिस्तान जाना चाहता है और आईएसआईएस का खात्मा करना चाहता है।

https://www.bhaskar.com/news/INT-MES-isis-chopped-and-fed-a-woman-her-son-abducted-in-mosul-4920848-NOR.html https://www.bhaskar.com/news/INT-MES-isis-chopped-and-fed-a-woman-her-son-abducted-in-mosul-4920848-NOR.html

ब्रह्माकुमारी संस्था

*क्या है ब्रह्माकुमारी संस्था?*

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'ओम् शान्ति', 'ब्रह्माकुमारी'... हम लोगों ने छोटे-बड़े शहरों में आते-जाते एक साइन बोर्ड लिखा हुआ देखा होगा *'प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय'* तथा मकान के ऊपर एक लाल-पीले रंग का झंडा लगा हुआ भी देखा होगा, जिसमें अंडाकार प्रकाश निकलता हुआ चित्र अंकित होता है। इस केन्द्र में व आसपास ईसाई ननों की तरह सफेद साड़ियों में नवयुवतियाँ दिखती हैं। वे सीने पर *'ओम् शान्ति'* लिखा अंडाकार चित्र युक्त बिल्ला लगाये हुए मंडराती मिलेंगी। आप *विश्वविद्यालय* नाम से यह नहीं समझना कि वहाँ कोई छात्र-छात्राओं का विश्वविद्यालय अथवा शिक्षा केन्द्र है, अपितु *यह सनातन धर्म के विरुद्ध सुसंगठित ढ़ंग से विश्वस्तर पर चलाया जाने वाला अड्डा है।*
*स्थापना*: इस संस्था का संस्थापक *लेखराज खूबचंद कृपलानी* था। इसने अपने जन्म-स्थान *सिन्ध* (पाकिस्तान) में दुष्चरित्रता व अनैतिकता का घोर ताण्डव किया, जिससे जनता में इसके प्रति काफी आक्रोश फैला। तब यह सिन्ध छोड़कर सन *1938 में* कराची भाग गया। इसने वहाँ भी अपना कुकृत्य चालू रखा, जिससे जनता का आक्रोश आसमान पर चढ़ गया। इस दुश्चरित्रता व धूर्तता का बादशाह लेखराज *अप्रैल सन् 1950 में* कराची से 150 सुंदर नवयुवतियों को साथ लाकर *माउण्ट आबू* (राजस्थान) की पहाड़ी पर रहने लगा और यहीं अपने व्यभिचार व पापाचार को धर्म का जामा पहनाता रहा।
सिन्ध में लेखराज की चलने वाली *ओम मंडली* की जगह माउण्ट आबू में *'प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय'* नामक संस्था चालू की गयी। इस संस्था का यहाँ तथाकथित मुख्यालय बनाया गया है, जो 28 एकड़ जमीन में बसा है। आबू पर्वत से नीचे उतरने पर आबू रोड में ही इस संस्था से जुड़े लोगों के रहने, खाने व आने वालों आदि के लिये भवन, हॉल इत्यादि हैं, जो कि 70 एकड़ के क्षेत्रफल में फैला है।

*संचालन :* लेखराज की मृत्यु के बाद सन् 1970 में ब्रह्माकुमारी संस्था का एक विशेष कार्यालय *लंदन* (इंग्लैंड) में खोला गया और पश्चिमी देशों में जोर-शोर से इसका प्रचार किया जाने लगा। सन् 1980 में ब्रह्माकुमारी संस्था को *'संयुक्त राष्ट्र संघ' का एन.जी.ओ.* बनाया गया। ब्रह्माकुमारी संस्था का स्थाई कार्यालय अमेरिका के *न्युयार्क* शहर में बनाया गया है, जहाँ से इसका संचालन किया जाता है। इसकी भारत सहित 100 देशों में 8,500 से अधिक शाखाएँ हैं। इस संस्था को 'संयुक्त राष्ट्र संघ' द्वारा फंड, कार्य योजना व पुरस्कार दिया जाता है।
*कार्य व उद्देश्य :* *ब्रह्माकुमारी संस्था का उद्देश्य सदियों से वैदिक मार्ग पर चलने वाले हिन्दूओं को भटकाना है, हिन्दू-धर्म में भ्रम पैदा कराना है, ताकि हिन्दू अपने ही धर्म से घृणा करने लग जाय।* ब्रह्माकुमारी संस्था के माध्यम से धर्मांतरण की भूमिका तैयार की जाती है। यह संस्था सनातन धर्म के शास्त्रों के सिद्धांतों को विकृत ढंग से पेश करनेे वाली पुस्तकें, प्रदर्शनियाँ, सम्मेलन, सार्वजनिक कार्यक्रम आदि द्वारा लोगों का नैतिक, सामाजिक, धार्मिक विकृतीकरण व पतन करने का कार्य करती है। लोगों के विरोध से बचने व अपनी काली करतूतों को छुपाने के लिये दवाईयों का वितरण व नशा-मुक्ति कार्यक्रम आदि किया जाता है। लोगों को आकर्षित करने के लिए इनकी अनेक संस्थाओं में से निम्न दो संस्थाओं का प्रचार-प्रसार तेजी से किया जा रहा है। (1) राजयोग शिक्षा एवं शोध प्रतिष्ठान (2) वर्ल्ड रिन्युवल स्प्रीच्युअल
*प्रचार-प्रसार :* इनके कार्यक्रम हमेशा चलते रहते हैं, परन्तु सुबह व शाम को इनके अड्डों पर भाषण *(मुरली)* हुआ करते हैं। ब्रह्माकुमारियां अड्डे के आसपास रहने वाली स्त्रियों को प्रभावित कर अपनी शिष्या बनाती हैं, सनातन शास्त्रों के विरुद्ध भाषण सुनाने उनके घरों पर भी जाती हैं। कहने को तो इनके सम्प्रदाय में पुरुष भी भर्ती होते हैं जिन्हें *'ब्रह्माकुमार'* कहा जाता है, परन्तुु ज्यादातर ये औरतों व नवयुवतियों को ही अपनी संस्था में रखते हैं जिन्हें *'ब्रह्माकुमारी'* कहते हैं ।
*ईसाईयत का नया रुप- ब्रह्माकुमारी:*
आजादी से पूर्व ईसाईयों की एक बड़ी टीम, जिसमें मैक्समूलर (सन् 1823-1900), अर्थर एेंथोनी मैक्डोनल (सन् 1854-1930), मौनियर विलियम्स, जोन्स, वारेन हेस्टिंग्ज, वैब, विल्सन, विंटर्निट्स, मैकाले, मिल, फ्लीट बुहलर आदि शामिल थे, इन लोगों ने भारत के इतिहास से छेड़छाड़, सनातन धर्म के शास्त्रों का विकृतीकरण, हिन्दू-धर्म के प्रति अनास्था पैदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। इसी परंपरा को ब्रह्माकुमारी संस्था आगे बढ़ा रही है।
ब्रह्माकुमारी संस्था के साहित्य विभाग की पूरी टीम द्वारा सनातन धर्म को विकृत करने वाले 100 से अधिक साहित्य, जैसे गीता का सत्य-सार, ज्ञान-माला, ज्ञान-निधि, भारत के त्यौहार आदि बनाये व छापे गये। ब्रह्माकुमारी संस्था को ईसाईयत का नया रुप दिया गया है, जो पश्चिम से बिल्कुल भिन्न है, लेकिन मूल रूप में वही है। यह संस्था भारत के खिलाफ बहुत-बड़े गुप्त मिशन पर काम कर रही है। 25 अगस्त 1856 को मैक्समूलर द्वारा बुनसन को लिखे पत्र से ईसाईयत के नये रूप की स्वयंसिद्धि हो जाती है:
''भारत में जो कुछ भी विचार जन्म लेता है शीघ्र ही वह सारे एशिया में फैल जाता है और कहीं भी दूसरी जगह ईसाईयत की महान शक्ति अधिक शान से नहीं समझी जा सकती, जितनी कि दुनिया इसे (ईसाईयत को) दुबारा उसी भूमी पर पनपती देखे, पर पश्चिम से बिल्कुल भिन्न प्रकार से, लेकिन फिर भी मूल रूप वही हो।''

सालों से देश-विदेश में लोग ईसाईयत को छोड़ रहे हैं, चर्च बिक रहे हेैं। *ब्रह्माकुमारी संस्था के नाम पर हर जगह अपनी नई जमात खड़ी करने व हिन्दुत्व को मिटाने का यह गुप्त मिशन चलाया जा रहा है, जिसके लिए देश-विदेशों से धन लगाया जा रहा है।*
*ब्रह्माकुमारी द्वारा हिन्दुत्व को मिटाने का खुला षड्यंत्र :*
(प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय राजस्थान से प्रकाशित *'भारत के त्यौहार'* भाग -1, भाग-2 में वर्णित)
*शिवरात्रि :* प्रजापिता ब्रह्मा *लेखराज* ने कल्प के अंत मे अवतरित होकर तमोगुण, दुःख अशान्ति को हरा था। उसी की याद में *शिवरात्रि* मनायी जाती है।
*होली :* कलियुग के अन्त में व सतयुग के शुरुआत में परमपिता ब्रह्मा *लेखराज* द्वारा सुख शान्ति के दिन शुरु किये गये थे। उसी की याद में *होली* मनाई जाती है। लकड़ी, गोबर के कंड़े जलाने से क्या होगा? देहातों में रोज जलते हैं। बहुत से शिष्ट लोगों के मन में इस त्यौहार के प्रति घृणा पैदा हो गई है। इनके मतानुसार शास्त्रों में झूठी, मनगढन्त कल्पनाएं हैं।
*रक्षाबंधन :* ब्रह्माकुमारी बहनें *लेखराज* के ज्ञान द्वारा ब्राह्मण पद पर आसीन होकर भाई को राखी बांधती है तथा बहन पवित्रत्रा के संकल्प की रक्षा करती है। रक्षाबंधन वास्तव में नारी के द्वारा नर की रक्षा का प्रतीक है, न कि नर द्वारा नारी की रक्षा का। इनके मतानुसार हिन्दू शास्त्रों में रक्षा बंधन विषयक उलटी, गड़बड़ कल्पनायें जड़कर रखी है।
*दीपावली :* कलयुग के अन्त में परमपिता ब्रह्मा *लेखराज* ने पूर्व की भांति दुबारा इस धरा पर आकर सर्व आत्माओं की ज्योत जगाने के लिए अवतरित हुए हैं। लोग अपनी ज्योत जलाने की याद में दीपावली मनाते हैं। इनके मतानुसार शास्त्रकारों ने झूठी कल्पनाएं फैला रखी है। इसी कारण लोग मिट्टी का दीप जला कर खेल खेलते हैं।
*नवरात्रि :* लेखराज ने ब्रह्माकुमारियों को ज्ञान देकर दिव्य गुण रुपी शक्ति से सुसज्जित किया है। अन्तर्मुखता, सहनशीलता, आदि दिव्य शक्तियाँ ही इनकी अष्ट भुजायें हैं। इन्हीं शक्तियों के कारण ये आदि शक्ति अथवा शिव शक्ति बन गई हैं। ब्रह्माकुमारियां दुर्गा आदि शक्ति बनकर भारत के नर-नारियों को जगा रही हैं। इसी के याद में *नवरात्रि* मनाई जाती है। लोगों को ज्ञान देने की याद्गार में कलश स्थापना, जगाये जाने की स्मृति में *जागरण* करते है। लोग इन कन्याओं के महान कर्तव्य के कारण कन्या-पूजन करते हैं।
*दशहरा :* द्वापर युग (1250 वर्ष पूर्व) में आत्मा-रुपी सीता कंचन-मृग के आकर्षण में पड़कर माया रुपी रावण के चंगुल में फंसती है। उस समय से लेकर अब तक सारी सृष्टि *शोक-वाटिका* बन जाती है। ऐसे समय में *परमात्मा लेखराज* आकर ज्ञान के शस्त्र से माया रुपी रावण पर विजय दिलाते हैं तब सतयुगी राज्य की पुनर्स्थापना होती है। 5000 साल पहले भी *परमात्मा लेखराज* ने ऐसा किया था, अभी भी कर रहे हैं। मनुष्य रुपी राम ने भी इसी दिन दस विकार रुपी रावण पर विजय पायी थी तभी से दशहरा मनाते है। शास्त्रों में वर्णन काल्पनिक है। राम, रावण, बंदरो की सेना इत्यादि सब गप-शप व उपन्यास है।
*ब्रह्माकुमारी संस्था की धूर्तता व पाखण्ड:*
माउण्ट आबू में लेखराज अपने व्यभिचार व पापाचार को धर्म का जामा पहनाता रहा। अन्ततोगत्वा *18 जनवरी 1969* को हार्ट-अटैक से काल के गाल मेें समा गया। लेखराज ने सन् 1951 से सन् 1969 तक मृत्यु पर्यन्त जो कुछ मूर्खतापूर्ण बकवास सुनाया उसे *'ज्ञान मुरली'* कहा जाता है। ब्रह्माकुमारियों द्वारा प्रतिदिन इन्हीं पाँच वर्ष की बकवास को पढ़ाया व सुनाया जाता है तथा हर पाँच वर्ष बाद दोहराया जाता है। लेखराज के जीवन काल से ही मुरलियों में फेरबदल होता आ रहा है। उसे टैप रिकार्ड में टैप करके भी रखा जाता था। लेखराज की मृत्यु के बाद सारी रिकार्ड की गयी कैसटों को नेस्तनाबूद कर दिया गया। काट-छाँट की हुई 2 या 4 कैसटें दिखावे के लिये रखी हैं। अब लेखराज की मृत्यु के बाद एक और झूठ व अंधविश्वास का पुलिंदा जोड़ा गया है कि गुलजार दीदी के शरीर में लेखराज व शिव बाबा आते हैं।
ब्रह्माकुमारियों द्वारा लेखराज को *ब्रह्मा* बताकर उसका ध्यान करने को कहा जाता है। ब्रह्मा, विष्णु व महादेव के संयुक्त चित्रों में ब्रह्मा के स्थान पर लेखराज का चित्र रखते हैं, लेखराज की पत्नी *जसोदा* को आदि देवी सरस्वती बताकर इनका चित्र भी लेखराज के साथ रखते हैं। ईश्वर के विषय में इस मत की पुस्तकों में ऊटपटांग, अप्रमाणित, सनातन धर्म-विरोधी वर्णन मिलता है ।
*ब्रह्माकुमारी के संस्थापक लेखराज के काले कारनामे:*
हैदराबाद (सिन्ध) पाकिस्तान *15 दिसम्बर 1876* में जन्मा लेखराज अपनी अधेड़ उम्र तक कलकत्ते में *हीरे का व्यापार* करता रहा। उसने दस लाख रुपये कमाये जो उस जमाने में काफी अधिक राशि थी। हीरा का धन्धा बन्द कर एक बंगाली बाबा को दस हजार रुपये देकर सम्मोहन, कालाजादू आदि तंत्र-मंत्र सीखा। सन् 1932 से इसने खुद के समाज में मनगढ़न्त भाषण शुरु किया तथा *'ओम मंडली'* नामक संगठन बनाया। सन् 1938 तक इसने 300 सहयोगी बना लिये। इसके रिश्तेदार जमात बढ़ाने के लिये प्रचारित करने लगे कि दादा लेखराज के शरीर में *शिवजी* प्रवेश करके ज्ञान सुनाते हैं।
*मायावी लेखराज की पापलीला :*
लेखराज हैदराबाद में जहां रहता था उसे उसने *आश्रम* नाम दे दिया, जिससे वहाँ महिलाआें का आना-जाना शुरु हो गया। *लेखराज ने महिलाओं को उनके पति और परिवारों को छोड़ने के लिये उत्साहित किया।* महिलाएं अपने पति व घर-परिवार को छोड़ने लगीं तब *सिन्धी समाज* भड़क गया। ब्रह्माकुमारियों को उनके परिवार वालों ने अच्छी तरह पीटा। राजनैतिक पार्टियों व आर्य समाज जैसे संगठनों के हस्तक्षेप से लेखराज के जादू-टोना और भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ हुआ। सम्मोहन की कला के माध्यम से लोगों को सम्मोहित करके एक विकृत पंथ बनाने की बात पायी गयी।
18 जनवरी सन् 1939 मेें 12 और 13 साल की दो लड़कियों की माताओं ने कराची के ऍडिशनल मजिस्ट्रेट के न्यायालय में *ओम मंडली* के खिलाफ एक याचिका दायर की। महिलाओं की शिकायत थी कि उनकी बेटियों को गलत तरीके से उनकी मरजी के बिना ओम मंडली ने कराची में अपने पास रखा है। अदालत ने लड़कियों को उनकी माताओं के साथ भेजने का आदेश दिया।
*लेखराज का पाखण्ड व उस पर कानूनी कार्यवाही :*
सिन्ध में *ओम मंडली* ने भयंकर पाखण्ड किया। लोगों की जवान बहन, बेटियों व पत्नियों को लेखराज अपनी गोद में बिठाने लगा। लेखराज का जवान-जवान लड़कियों के साथ सोना, बैठना, साथ में नहाना आदि देखकर जनता में काफी आक्रोश व ओम मंडली के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन हुआ। उस समय सिन्ध में लेखराज की अनैतिक कारनामों के कारण धार्मिक जनता में बड़ी खलबली मच गई थी। इसके विरुद्ध *भाई बंध मंडली* के प्रमुख मुखी मेघाराम, साधु श्री टी. एल. वास्वानी आदि लोक-सेवकों ने धरना दिया। ओम मंडली में गयी सैकड़ों लड़कियों को छुड़ाकर उनके घरवालों तक पहुँचाया गया। सिन्ध प्रान्त की सरकार के दो हिन्दू मंत्रियों ने विरोध-प्रदर्शनात्मक इस्तीफा भी दे दिया था।
*सन् 1939 में ओम मंडली के विरुद्ध धरना:*
मई 1939 में सिन्ध सरकार ने सन् 1908 के आपराधिक
कानून संशोधन अधिनियम का इस्तेमाल कर ओम मंडली को गैर कानूनी संगठन घोषित किया। ओम मंडली को बंद करने व अपने परिसर को खाली करने का आदेश पारित किया गया।
लेखराज विरोध और कानून से बचने के लिए अपने कुछ साथियों के साथ कराची भाग गया। वहाँ *ओम निवास* नाम से उसने एक हाईटेक अड्डा (भवन) बनाया। कराची में कुछ समय बाद ओम मंडली में लेखराज व गुरु बंगाली के दो विभाग हुए। ओम राधे सहित तमाम महिलाओं के साथ लेखराज हैदराबाद से *माउण्ट आबू* भाग आया और यहाँ अपना पाखण्ड शुरु किया। लेखराज की जवान लड़की *'पुट्टू'* एक गैरबिरादरी वाले अध्यापक *'बोधराज'* को लेकर भाग गयी और उससे शादी भी कर लिया।
*लेखराज के बाद दूसरा शिव बना वीरेन्द्र देव दीक्षित:*
वीरेन्द्र देव दीक्षित ब्रह्माकुमारी संस्था माउण्ट आबू से लेखराज का ज्ञान सीखा और अहमदाबाद में रहकर इस पाखण्ड का प्रचार-प्रसार करने लगा। यहाँ बहुत समय बाद वीरेन्द्र खुद को *शंकर* सिद्ध करने लगा। इसके लिये वह खुद की *मुरली* (जिसे वह *नगाड़ा* कहता था) सुनाने लगा। इसके तमाम अधार्मिक कुकृत्यों के लिये अहमदाबाद की जनता ने इसे खूब पीटा। अहमदाबाद से भाग कर वह *पुष्पा माता* के पास दिल्ली चला गया। इनके घर एक गरीब चपरासी की 9 साल की लड़की *कमला दीक्षित* रहती थी। वीरेन्द्र कमला के साथ बलात्कार करता रहा और उसे रोज कहता कि मैं तुम्हें *जगदम्बा* बना रहा हूँ। पुष्पा माता का घर छोड़ दिल्ली में ही *प्रेमकान्ता* के घर चला गया। यहाँ प्रेमकान्ता का भी बलात्कार करता रहा और इसे भी कहा कि मैं तुम्हें जगदम्बा बना रहा हूँ। वीरेन्द्र लोगों को कहता था कि मैं *कामीकांता* (कामी देवता) हूँ और मेरे पास 8 पटरानियाँ हैं। सन् 1973 से सन् 1976 तक तथाकथित शिव बनकर इन लड़कियों को *पटरानी* बनाकर सहवास करता रहा।
सन् 1976 में वीरेन्द्र ने *एडवांस पार्टी* नामक संगठन खड़ा किया तथा *'आध्यात्मिक ईश्वरीय विश्वविघालय'* चालू किया। सन् 1976 में उत्तर प्रदेश के *कम्पिल* गाँव (जिला फर्रुखाबाद) में एक आश्रम बनाया। वीरेन्द्र लोगों को कहने लगा कि लेखराज मेरे शरीर में आ गये हैं और मैं *कृष्ण की आत्मा* हूँ, इसलिए मुझे 16108 गोपियों की जरुरत है। आश्रम में आती जवान औरतों के साथ बलात्कार करना चालू किया।
लेखराज की तरह वीरेन्द्र ने भी घोर अनैतिकता व पाखण्ड फैलाया, जिसके लिये फर्रुखाबाद की युवा शक्ति, मिसाइल फोर्स, रेड आर्मी आदि की महिला संगठनों ने इन कुकृत्यों के खिलाफ आन्दोलन किया। सन् 1998 में बलात्कार के केस में वीरेन्द्र व उसके साथियों को 6 महीने तक जेल में रहना पड़ा। इसी दौरान आयकर वालों ने इसके आश्रम में छापा मारकर 5 करोड़ रुपये जब्त किये।

*ब्रह्माकुमारी के पाखण्डी मतों का खण्डन :*
*(1) ब्रह्माकुमारी मत*- मैं इस कलियुगी सृष्टि रुपी वेश्यालय से निकालकर सतयुगी, पावन सृष्टि रुप शिवालय में ले जाने के लिये आया हूँ । (सा.पा.पेज 170)
*खण्डन-* लेखराज अगर इस सृष्टि को नरक व वेश्यालय मानता है तो इस वेश्यालय में रहने वाली सभी ब्रह्माकुमारियां भी साक्षात् वेश्यायें होनी चाहिए। क्या यह सत्य है?
*(2) ब्रह्माकुमारी मत-* रामायण तो एक नॉवेल (उपन्यास) है, जिसमें 101 प्रतिशत मनोमय गप-शप डाल दी गई है। मुरली सं. 65 में लेखराज कहता है कि राम का इतिहास केवल काल्पनिक है। (घोर कलह -युग विनाश, पेज सं.15)
*खण्डन-* भूगर्भशास्त्रियों को अयोध्या, श्रीलंका आदि की खुदाई से प्राप्त वस्तुओं से तथा नासा का अन्वेषण समुद्र में श्रीरामसेतु का होना आदि रामायण को प्रमाणित करता है। पूरा हिन्दू इतिहास रामायण के प्रमाण से भरा हुआ है। इसे उपन्यास व गप-शप कहना और सनातन-धर्म पर अनर्गल बातें कहना ही वास्तव में गप्पाष्टक है, कमीनापन है।
*(3) ब्रह्माकुमारी मत-* जप, तप, तीर्थ, दान व शास्त्र अध्ययन इत्यादि से भक्ति मार्ग के कर्मकाण्ड और क्रियायों से किसी की सद्गति नहीं हो सकती। (सतयुग में स्वर्ग कैसे बने? पे. सं. 29)
*खण्डन -* यह बातें तथ्यों से परे, नासमझी से पूर्ण हैं। जप से संस्कार शुद्ध होते हैं। तप से मन के दोष मिटते हैं )। जहाँ संत रहते हैं उन तीर्थों में जाने से, उनके सत्संग से विचारों में पवित्रता व ज्ञान मिलता है। दान व परोपकार से पुण्य बढ़ता है। शुभ कर्म का शुभ फल मिलता है। शास्त्र अध्ययन से ज्ञान बढ़ता है, सन्मार्ग दर्शन मिलता है, विवेक, बुद्धि जागृत होती है। कर्मकाण्ड से मानव की प्रवृत्ति धर्म व परोपकार में लगी रहती है और इन सब बातों से जीवों का तथा स्वयं मानव का कल्याण होता है। ईन शुभ कर्मों की निंदा करना लेखराज एवं उसके सर्मथकों की मूर्खता प्रकट करता है। जो वेदों और शास्त्रों का विरोध करता है वह मनुष्य रुप में साक्षात असुर है।
*(4) ब्रह्माकुमारी मत-* श्रीकृष्ण ही श्री नारायण थे और वे द्वापरयुग में नहीं हुए, बल्कि पावन सृष्टि अर्थात् सतयुग में हुए थे। श्रीकृष्ण श्रीराम से पहले हुए थे। (साप्ताहिक पाठ्यक्रम, पृ.सं.140,143)
*खण्डन-* भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद भगवद्गीता के अध्याय 10 के 31 वें श्लोक में कहा 'पवनः पवतामस्मि रामः शस्त्रभृतामहम्' अर्थात् मैं पवित्र करने वालों में वायु और शस्त्रधारियों में श्रीराम हूँ। इस प्रकार श्रीकृष्ण ने श्रीराम का उदाहरण देकर श्रीराम को अपने से पूर्व होना घोषित किया है, दृष्टान्त सदैव अपने से पूर्व हुई अथवा वर्तमान बात का ही दिया जाता है। इससे स्पष्ट है कि इस मत का संस्थापक लेखराज पूरा गप्पी, शेखचिल्ली था जिसने पूरी श्रीमदभगवद्गीता भी नहीं पढ़ी थी।
*(5) ब्रह्माकुमारी मत-* गीता ज्ञान परमपिता परमात्मा (लेखराज के मुख से) शिव ने दिया था। (सा.पा.पेज सं.144)
*खण्डन -* गीता को लेखराज द्वारा उत्पन्न बताना यह किसी तर्क व प्रमाण पर सिद्ध नहीं होता। इतिहास साक्षी है कि 5151 वर्ष पूर्व श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता ज्ञान दिया था।

*(6) ब्रह्माकुमारी मतः* आत्मा रूपी ऐक्टर तो वही हैं, कोई नई आत्मायें तो बनती नहीं हैं, तो हर एक आत्मा ने जो इस कल्प में अपना पार्ट बजाया है अगले कल्प में भी वह वैसे ही बजायेगी, क्योंकि सभी आत्माओं का अपना जन्म-जन्मान्तर का पार्ट स्वयं आत्मा में ही भरा हुआ है । जैसे टेप रिकार्डर में अथवा ग्रामोफोन रिकार्डर में कोई नाटक या गीत भरा होता है, वैसे ही इस छोटी-सी ज्योति-बिन्दु रुप आत्मा में अपने जन्म-जन्मान्तर का पार्ट भरा हुआ है। यह कैसी रहस्य-युक्त बात है। छोटी-सी आत्मा में मिनट-मिनट का अनेक जन्मों का पार्ट भरा होना, यही तो कुदरत है। यह पार्ट हर 5000 वर्ष (एक कल्प) के बाद पुनरावृत्त होता है, क्योंकि हरेक युग की आयु बराबर है अर्थात् 1250 वर्ष है। (सा.पा., पृ.सं. 86)

*खण्डन-* एक *कल्प* में एक हजार चतुर्युग होते हैं, इन एक हजार चतुर्युगों में चौदह *मन्वन्तर* होते हैं। एक मन्वन्तर में 71 *चतुर्युग* होते हैं, प्रत्येक चतुर्युगी में *चार युग* (कलियुग 4,32,000 वर्ष, द्वापर 8,64,000 वर्ष, त्रेता 12,96,000 वर्ष एवं सतयुग 17,28,000 वर्ष के) होते हैं।
हर पाँच हजार साल में कर्मो की हूबहू पुनरावृत्ति होती है, इसको सिद्ध करने के लिए ब्रह्माकुमारी के पास कोई तर्क या कोई भी शास्त्रीय प्रमाण नहीं है, सिर्फ और सिर्फ इनके पास लेखराज की गप्पाष्टक है जिसे मूर्ख व कुन्द बुद्धि वाले लोग ही सत्य मानते हैं। मानों यदि व्यक्ति की ज्यों की त्यों पुनरावृत्ति हो तो वह कर्म-बंधन व जन्म-मरण से कैसे मुक्त होगा?
*(7) ब्रह्माकुमारी मत-* परमात्मा तो सर्व आत्माओं का पिता है, वह सर्वव्यापक नहीं है।...भला बताइये कि अगर परमात्मा सर्वव्यापक है तो शरीर में से आत्मा निकल जाने पर परमात्मा तो रहता ही है तब उस शरीर में चेतना क्यों नहीं प्रतीत होती? मोहताज व्यक्ति, गधे, कुत्ते आदि में परमात्मा को व्यापक मानना तो परमात्मा की निन्दा करने के तुल्य है। (साप्ताहिक पाठ्यक्रम, पृ. सं. 44, 55, 68)
*खण्डन-* ईश्वर सर्वव्यापक है क्योंकि जोे एक देश में रहता है वह सर्वान्तर्यामी, सर्वर्ज्ञ, सर्वनियन्ता, सब का सृष्टा, सब का धर्ता और प्रलयकर्ता नहीं हो सकता। अप्राप्त देश में कर्ता की क्रिया का (होना) असम्भव है।
प्राण-अपान की जो कला है जिसके आश्रय में शरीर होता है। मरते समय शरीर के सब स्थानों को प्राण त्याग जाते हैं और मूर्छा से जड़ता आ जाती है। महाभूत, कर्मेन्द्रिय, ज्ञानेन्द्रिय, प्राण, अन्तःकरण, अविद्या, काम, कर्म के संघातरुप पुर्यष्टक शरीर को त्यागकर निर्वाण हो जाता है। शरीर अखंडित पड़ा रहता है, जिसमें सामान्य रूप से चेतन परमात्मा स्थित रहता है। कुन्द बुद्धि लोगों को यह समझना चाहिए कि एक बल्ब बुझा देने से पूरा पॉवर हाऊस बंद नहीं हो जाता।
लेखराज व उसके सर्मथकों ने सनातन धर्म की सनातन सत्यता पर आक्षेप करने के पूर्व विधिवत अध्ययन, श्रवण, मनन व निदिध्यासन कर लिया होता तो ऐसी धूर्तता व पाखण्ड भरी बातेें नहीं करते ।

*वैदिक संस्कृति विश्व मानव संस्कृति:*
विश्व की प्राचीनतम *आर्य संस्कृति* के अवशेष किसी न किसी रूप में मिले हैं। वैदिक काल से विश्व के प्रत्येक कोने में वैदिक आर्यों की पहुँच हुई और समस्त प्रकार का ज्ञान-विज्ञान एवं सभ्यता उन्होंने ही विश्व को प्रदान की थी। नवीनतम खोज के अनुसार अमेरिका में रिचमण्ड से 70 किलोमीटर दूर केप्सहिल पर जो अवशेष पुरातत्व अन्वेषकों ने खोजे हैं, वह 17 हजार वर्ष पुरानी सभ्यता के हैं और उस समय विश्व में केवल आर्य संस्कृति ही विकसित थी तथा अपने चरमोत्कर्ष पर थी। जर्मनी आदि के विश्वविद्यालय में चरकॉलोजी, इंडोलोजी आदि के नाम से वेदों की गुह्यतम विद्याओं पर अन्वेषण हो रहे हैं। विश्व के कोने-कोने में सनातन संस्कृति के अवशेष, प्रमाण मिले है।
*ब्रह्माकुमारों के काले-कारनामे*-
*बलात्कार व जबरन गर्भपात*
छतरपुर, जिला भोपाल (म.प्र.) की एक 26 वर्षीय दलित महिला ने ब्रह्माकुमारीयों का अड्डा सिंगरौली और भोपाल में ब्रह्माकुमारों द्वारा बलात्कार करने तथा गर्भ ठहर जाने पर जबरन गर्भपात करा देने का आरोप लगाया। महिला ने बताया 17 साल की उम्र में तलाक होने के बाद 2001 में वह शांति पाने के लिए छतरपुर स्थित ब्रह्माकुमारी अड्डे में आयी जहां से उसे भोपाल भेज दिया गया। एस.पी. को लिखित शिकायती आवेदन में महिला ने कहा कि सिंगरौली और भोपाल के ब्रह्माकुमारीयों के अलग-अलग अड्डो में युवकों द्वारा बलात्कार किया गया।

(देशबन्धु, 15 दिसम्बर 2013)
*सेक्स व व्यभिचार का अड्डा बना ब्रह्माकुमारी ध्यान-योग केन्द्र*
पुलिस के मुताबिक 'ब्रह्माकुमारी ध्यान योग केन्द्र' ट्राँस यमुना कॉलोनी आगरा, व्यभिचार एवं अय्याशी का अड्डा है, न कि ध्यान केंद्र। केन्द्र पर रहने वाले हरि भाई से सेविका भारती के अवैध संबंध ऐसे थे। पूरा केंद्र ही व्यभिचार का अड्डा बना हुआ था। भारती चाहती थी कि हरिभाई उससे शादी कर ले लेकिन वह तैयार नहीं हुआ। इस पर भारती ने हरिभाई की पोल खोलने की धमकी दी। जब भारती को यह पता चला कि हरिभाई उसे सिर्फ मौजमस्ती का साधन समझता है तो वह काफी उत्तेजित हो उठी थी। उसने बड़ा हंगामा मचाया। इसी के बाद वकील की सलाह से उसे ठिकाने लगाने की योजना तैयार की गई। 27 दिसम्बर 2003 की रात को हरिभाई भारती के साथ जिस कमरे में हमबिस्तर होता था, उसी कमरे में भारती को बेहद क्रूर तरीके से और अत्यन्त रहस्यमय परिस्थितियों में जिंदा जलाकर मार दिया गया। उसकी लाश को उसी रात फरह (मथुरा) पुल के नीचे फेंक दिया गया।
(नवभारत टाइम्स 18 जनवरी 2004, पल-पल इडिया 14 दिसम्वर, 2013)


*सर्वोच्च न्यायालय की दृष्टि में हिन्दुत्व -*
हिन्दुत्व भारतीय समाज की परम्परा, संस्कृति तथा विरासत की सामूहिक अभिव्यक्ति है। देवत्व, विश्वत्व तथा मनुष्यता का संयोग है हिन्दुत्व। हिन्दुत्व किसी के प्रति असहिष्णु का भाव नहीं रखता है, यह जीवन का एक मार्ग है।

*जनता की आवाज:*
वास्तव में प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय ना तो कोई विश्वविद्यालय है और ना ही कोई धर्म, बल्कि सिर्फ और सिर्फ एक झूठ, फरेब से काम करने वाला अधार्मिक एवं गैरकानूनी काम करने वाले लोगों का संगठन है। - *डॉ. सुरेंद्रसिंह नेगी* (अधिकारी, सीमा सुरक्षा बल)
लेखराज की करतूतों को छुपाने के लिए धर्म का इस्तेमाल किया गया है। वह धर्म के बारे में कुछ भी नहीं जानता और ना ही किसी धर्म का उसने कभी पालन किया है । - *लोबो और कालुमल* (न्यायाधीश उच्चतम न्यायालय हैदराबाद)
ब्रह्माकुमारियों को साक्षात् विषकन्या समझना चाहिए। ये हिन्दू-सभ्यता, इतिहास, शास्त्र, धर्म एवं सदाचार सभी की शत्रु हैं। इनके अड्डे दुराचार प्रचार के केन्द्र होते हैं । - *डा. श्रीराम आर्य* (लेखक व महान विचारक)
ब्रह्माकुमारियाँ शब्दाडम्बर में हिन्दू जनता को फँसाने के लिए गीता का नाम लेकर अनेक प्रकार के भ्रम मूलक विचार बड़ी चालाकी से फैलाने का यत्न करती हैं। - *श्री रामगोपाल शालवाले* (लेखक व वरिष्ट आर्य समाजी)

*वेद व उपनिषदों पर विद्वानों के विचार:*
भारत वेदों का देश है। इनमें न केवल सम्पूर्ण जीवन के लिए धार्मिक विचार मौजूद हैं, बल्कि ऐसे तथ्य भी हैं जिनको विज्ञान ने सत्य प्रमाणित किया है। वेदों के सर्जकों को बिजली, रेडियम, इलेक्टॉनिक्स, हवाई जहाज, आदि सबकुछ का ज्ञान था। - *एल्ला व्हीलर विलकॉक्स* (अमेरिकी कवयित्री व पत्रकार)
पूरी दुनिया में उपनिषदों के ज्ञान जैसा लाभदायक और उन्नतिकारक और कोई अध्ययन नहीं है, यह मेरे जीवन का आश्वासन रहा है और यही मेरी मृत्यु पर भी आश्वासन रहेगा। यह उच्चतम विद्या की उपज है। - *आर्थर सोपेनहर* (जर्मनी के दार्शनिक व लेखक)
हम लोग भारतीयों के अत्यधिक ऋणी हैं जिन्होंने हमें गिनना सिखाया, जिसके बगैर कोई भी महत्वपूर्ण खोज संभव नहीं था । - *अलवर्ट आईंस्टाईन* (महान वैज्ञानिक)
उपनिषदों की दार्शनिक धाराएँ न केवल भारत में, संभवतः सम्पूर्ण विश्व में अतुलनीय है। - *पॉल डायसन*
यूरोप के प्रथम दार्शनिक प्लेटो और पायथागोरस, दोनों ने दर्शनशास्त्र का ज्ञान भारतीय गुरुओं से प्राप्त किया। - *मोनीयर विलियम्स*
जब-जब मैंने वेदों के किसी भाग का पठन किया है, तब-तब मुझे अलौकिक और दिव्य प्रकाश ने आलोकित किया है। वेदों के महान उपदेशों में सांप्रदायिकता की गंध भी नहीं है । यह सर्व युगों के लिए, सर्व स्थानों के लिए और सर्व राष्टों के लिए महान ज्ञान प्राप्ति का राजमार्ग है । - *हेनरी डेविड थोरो*
उपनिषदों का संदेश किसी देशातीत और कालातीत स्थान से आता है । मौन से उसकी वाणी प्रकट हुई है । उसका उद्देश्य मनुष्य को अपने मूल स्वरुप में जगाना है । - *बेनेडिफ्टीन फादर ली. सो.*
*विषघातक ब्रह्माकुमारियों से सावधान :*
सुन्दर, पढ़ी-लिखीं, श्वेत वस्त्रधारिणी नवयुवतीयाँ इस मत की प्रचारिका होती हैं। इनको ईश्वर, जीव, पुनर्जन्म, सृष्टि-रचना, स्वर्ग, ब्रह्मलोक, मुक्ति आदि के विषय में काल्पनिक (जो शास्त्र-सम्मत नहीं है) बेतुकी सिद्धांत कण्ठस्थ करा दिए जाते हैं, जिसेे वे अपने अन्धभक्त चेले-चेलियों को सुना दिया करती हैं। इस मत की पुस्तकों में जो कुछ लिखा है उनका कोई आधार नहीं है। आध्यात्मिकता और भक्ति की आड़ में ये लोग सैक्स (व्यभिचार) की भावना से काम कर रहे हैं। इनके अड्डे जहां भी रहे हैं सर्वत्र जनता ने इनके चरित्रों पर आक्षेप किये हैं। अनेक नगरों में इनके दुराचारों के भण्डाफोड़ भी हो चुके हैं।
*ब्रह्माकुमारियों का नयनयोग :*
लेखराज द्वारा *दृष्टिदान* अर्थात् *नयन योग* (एक दूसरे के आखों में आखें डालकर त्राटक करना) शुरु किया गया था। अब वही नयन योग ब्रह्माकुमारियाँ करती हैं। अपने यहां आने वाले युवकों से आंख लड़ाती हैं काजल लगाकर। ब्रह्माकुमारीयों का पाखण्ड तेजी से फैल रहा है। ये प्रत्येक समाज के लिए विषघातक हैं। इनके अड्डेे धूर्तता, पाखण्ड, व्यभिचार प्रचार के केन्द्र हैं। सभी को चाहिए कि इन अड्डों पर अपनी बहू-बेटियों को न जाने दें।
*इस संस्था का संस्थापक:*
लेखराज जिसने जीवन में सत्यता की बात नहीं कही, लोगों को धोखा दिया व झूठ बोलता रहा। उस पाखण्डी, धूर्त के मरने के बाद उसकी बातों पर विश्वास करके सम्प्रदाय चलाना बहुत बड़ा राष्टद्रोह है।