Thursday, 29 June 2017

महान रामभक्त संत कबीर गुरु नानक देव संत रविदास और संत तुलसीदास

संत कबीर 
 'हरिमोर पिउ, मैं राम की बहुरिया' तो कभी कहते हैं, 'हरि जननी मैं बालक तोरा'।

राम बिनु तन को ताप न जाई।
जल में अगन रही अधिकाई॥
राम बिनु तन को ताप न जाई॥
तुम जलनिधि मैं जलकर मीना।
जल में रहहि जलहि बिनु जीना॥
राम बिनु तन को ताप न जाई॥
तुम पिंजरा मैं सुवना तोरा।
दरसन देहु भाग बड़ मोरा॥
राम बिनु तन को ताप न जाई॥
तुम सद्गुरु मैं प्रीतम चेला।
कहै कबीर राम रमूं अकेला॥
राम बिनु तन को ताप न जाई॥


भजो रे भैया राम गोविंद हरी ।
राम गोविंद हरी भजो रे भैया राम गोविंद हरी ॥
जप तप साधन नहिं कछु लागत, खरचत नहिं गठरी ॥
संतत संपत सुख के कारन, जासे भूल परी ॥
कहत कबीर राम नहीं जा मुख, ता मुख धूल भरी ॥


गुरु नानक देव

राम सुमिर, राम सुमिर, एही तेरो काज है॥
मायाकौ संग त्याग, हरिजूकी सरन लाग।
जगत सुख मान मिथ्या, झूठौ सब साज है॥१॥
सुपने ज्यों धन पिछान, काहे पर करत मान।
बारूकी भीत तैसें, बसुधाकौ राज है॥२॥
नानक जन कहत बात, बिनसि जैहै तेरो गात।
छिन छिन करि गयौ काल्ह तैसे जात आज है॥३॥

संत रविदास 

परचै राम रमै जै कोइ।
पारस परसें दुबिध न होइ।। टेक।।
जो दीसै सो सकल बिनास, अण दीठै नांही बिसवास।
बरन रहित कहै जे रांम, सो भगता केवल निहकांम।।१।।
फल कारनि फलै बनराइं, उपजै फल तब पुहप बिलाइ।
ग्यांनहि कारनि क्रम कराई, उपज्यौ ग्यानं तब क्रम नसाइ।।२।।
बटक बीज जैसा आकार, पसर्यौ तीनि लोक बिस्तार।
जहाँ का उपज्या तहाँ समाइ, सहज सुन्य में रह्यौ लुकाइ।।३।।
जो मन ब्यदै सोई ब्यंद, अमावस मैं ज्यू दीसै चंद।
जल मैं जैसैं तूबां तिरै, परचे प्यंड जीवै नहीं मरै।।४।।
जो मन कौंण ज मन कूँ खाइ, बिन द्वारै त्रीलोक समाइ।
मन की महिमां सब कोइ कहै, पंडित सो जे अनभै रहे।।५।।
कहै रैदास यहु परम बैराग, रांम नांम किन जपऊ सभाग।
ध्रित कारनि दधि मथै सयांन, जीवन मुकति सदा निब्रांन।।६।।


रांम राइ का कहिये यहु ऐसी। 
जन की जांनत हौ जैसी तैसी।। टेक।। 
मीन पकरि काट्यौ अरु फाट्यौ, बांटि कीयौ बहु बांनीं। 
खंड खंड करि भोजन कीन्हौं, तऊ न बिसार्यौ पांनी।।१।। 
तै हम बाँधे मोह पासि मैं, हम तूं प्रेम जेवरिया बांध्यौ। 
अपने छूटन के जतन करत हौ, हम छूटे तूँ आराध्यौ।।२।। 
कहै रैदास भगति इक बाढ़ी, अब काकौ डर डरिये। 
जा डर कौं हम तुम्ह कौं सेवैं, सु दुख अजहँू सहिये।।३।।

संत तुलसीदास 

मो सम दीन न दीन हित तुम्ह समान रघुबीर
अस बिचारि रघुबंस मनि हरहु बिषम भव भीर ॥


अर्थात – हे रघुवीर, मेरे जैसा कोई दीनहीन नहीं है और तुम्हारे जैसा कोई दीनहीनों का भला करने वाला नहीं है. ऐसा विचार करके, हे रघुवंश मणि.. मेरे जन्म-मृत्यु के भयानक दुःख को दूर कर दीजिए.

कामिहि नारि पिआरि जिमि लोभिहि प्रिय जिमि दाम ।
तिमि रघुनाथ निरंतर प्रिय लागहु मोहि राम ॥

अर्थात – जैसे काम के अधीन व्यक्ति को नारी प्यारी लगती है और लालची व्यक्ति को जैसे धन प्यारा लगता है,वैसे हीं हे रघुनाथ, हे राम, आप मुझे हमेशा प्यारे लगिए.

Wednesday, 28 June 2017

शिवलिंगम

लिंग का अर्थ संस्कृत में चिन्ह ,प्रतीक होता है
जबकी जनर्नेद्रीय को संस्कृत मे शिशिन कहा जाता है
शिवलिंग
शिवलिंग का अर्थ हुआ शिव का प्रतीक
पुरुषलिंग का अर्थ हुआ पुरुष का प्रतीक
इसी प्रकार स्त्रीलिंग का अर्थ हुआ स्त्री का प्रतीक
और नपुंसकलिंग का अर्थ हुआ ..नपुंसक का प्रतीकअब यदि जो लोग पुरुष लिंग को मनुष्य के जनेन्द्रिय समझ कर आलोचना करते है..तो वे बताये ”स्त्री लिंग ”’के अर्थ के अनुसार स्त्री का लिंग होना चाहिए
और वो खुद अपनी औरतो के लिंग को बताये फिर आलोचना करे

"शिवलिंग”’क्या है
शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है। स्कन्दपुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है।शिवलिंग वातावरण सहित घूमती धरती तथा सारे अनन्त ब्रह्माण्ड ( क्योंकि, ब्रह्माण्ड गतिमान है ) का अक्स/धुरी (axis) ही लिंग है।
शिव लिंग का अर्थ अनन्त भी होता है अर्थात जिसका कोई अन्त नहीं है नाही शुरुवात |

शिवलिंग का अर्थ लिंग या योनी नहीं होता ..दरअसल ये गलतफहमी भाषा के रूपांतरण और मलेच्छों द्वारा हमारे पुरातन धर्म ग्रंथों को नष्ट कर दिए जाने तथा अंग्रेजों द्वारा इसकी व्याख्या से उत्पन्न हुआ हो सकता है
खैर जैसा कि हम सभी जानते है कि एक ही शब्द के विभिन्न भाषाओँ में अलग-अलग अर्थ निकलते हैं
उदाहरण के लिए

यदि हम हिंदी के एक शब्द “सूत्र” को ही ले लें तो…….
सूत्र मतलब डोरी/धागा गणितीय सूत्र कोई भाष्य अथवा लेखन भी हो सकता है| जैसे कि नासदीय सूत्र ब्रह्म सूत्र इत्यादि |
उसी प्रकार “अर्थ” शब्द का भावार्थ : सम्पति भी हो सकता है और मतलब (मीनिंग) भी |
ठीक बिल्कुल उसी प्रकार शिवलिंग के सन्दर्भ में लिंग शब्द से अभिप्राय चिह्न, निशानी, गुण, व्यवहार या प्रतीक है।धरती उसका पीठ या आधार है और सब अनन्त शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा है तथा कई अन्य नामो से भी संबोधित किया गया है जैसे : प्रकाश स्तंभ/लिंग, अग्नि स्तंभ/लिंग, उर्जा स्तंभ/लिंग, ब्रह्माण्डीय स्तंभ/लिंग (cosmic pillar/lingam)


ब्रह्माण्ड में दो ही चीजे है : ऊर्जा और प्रदार्थ | हमारा शरीर प्रदार्थ से निर्मित है और आत्मा ऊर्जा है
इसी प्रकार शिव पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का प्रतीक बन कर शिवलिंग कहलाते है |
ब्रह्मांड में उपस्थित समस्त ठोस तथा उर्जा शिवलिंग में निहित है. वास्तव में शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड की आकृति है. (The universe is a sign of Shiva Lingam.)

शिवलिंग भगवान शिव और देवी शक्ति (पार्वती) का आदि-आनादी एकल रूप है तथा पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतिक भी अर्थात इस संसार में न केवल पुरुष का और न केवल प्रकृति (स्त्री) का वर्चस्व है अर्थात दोनों सामान है

अब बात करते है योनि शब्द पर
मनुष्ययोनि ”पशुयोनी”पेड़-पौधों की योनि”’पत्थरयोनि”
योनि का संस्कृत में प्रादुर्भाव ,प्रकटीकरण अर्थ होता है..जीव अपने कर्म के अनुसार विभिन्न योनियों में जन्म लेता है..कुछ धर्म में पुर्जन्म की मान्यता नहीं है ..इसीलिए योनि शब्द के संस्कृत अर्थ को नहीं जानते है जबकी हिंदू धर्म मे 84 लाख योनी यानी 84 लाख प्रकार के जन्म है अब तो वैज्ञानिको ने भी मान लिया है कि धरती मे 84 लाख प्रकार के जीव (पेड, कीट,जानवर,मनुष्य आदि) है…
मनुष्य योनी पुरुष और स्त्री दोनों को मिलाकर मनुष्य योनि होता है..अकेले स्त्री या अकेले पुरुष के लिए मनुष्य योनि शब्द का प्रयोग संस्कृत में नहीं होता है…
तो कुल मिलकर अर्थ ये है
लिंग का तात्पर्य प्रतीक से है, शिवलिंग का मतलब है पवित्रता का प्रतीक | दीपक की प्रतिमा बनाये जाने से इस की शुरुआत हुई, बहुत से हठ योगी दीपशिखा पर ध्यान लगाते हैं | हवा में दीपक की ज्योति टिमटिमा जाती है और स्थिर ध्यान लगाने की प्रक्रिया में अवरोध उत्पन्न करती है इसलिए दीपक की प्रतिमा स्वरूप शिवलिंग का निर्माण किया गया ताकि निर्विघ्न एकाग्र होकर ध्यान लग सके | लेकिन कुछ विकृत मुग़ल काल से कुछ दिमागों ने इस में जननागों की कल्पना कर ली और झूठी कुत्सित कहानियां बना ली और इस पीछे के रहस्य की जानकारी न होने के कारण अनभिज्ञ भोले हिन्दुओं को भ्रमित किया गया

छोटे छोटे बच्चो को बताते है कि हिन्दू लोग लिंग और योनी की पूजा करते है..मूर्खों को संस्कृत का ज्ञान नहीं होता है..और छोटे छोटे बच्चो को हिन्दुओ के प्रति नफ़रत पैदा करके उनको आतंकी बना देते है…अब मै इसका अर्थ बता रहा हूँ
क्या यहां कोई आर्य समाजी या मुस्लिम टपकेगा जो शिव लिंग को अश्लील बोलता हो
वे कहते हैं शिवपुराण में शिवलिंग के बारे में अश्लीलता है
आइये पूरी तरह से जानिए
शिवपुराण के अनुसार
शिवलिंग, ब्रह्म क्या है

नन्दिकेश्वर कहते हैं - कि वे दोनों (ब्रह्मा और विष्णु ) भगवान शंकर को प्रणाम करके उनके दाएं-बाएं भाग में चुपचाप खड़े हो गए।
और बहुत सी पूजा करने योग्य वस्तुओं से उनकी पूजा अर्चना की ।
महेश्वर बोले - आज का दिन बहुत महान है। इसमें तुम्हारे द्वारा जो मेरी पूजा हुई है उससे मैं तुम लोगों पर बहुत प्रसन्न हूँ। आज का दिन परम् पवित्र औऱ महान होगा। आज की तिथि 'शिवरात्रि' के नाम से विख्यात होगी।
इस समय में जो मेरे लिंग (निष्कल -यानि अंग आकृति से रहित निराकार स्वरूप के प्रतीक)
और मूर्ति (साकार स्वरूप के प्रतीक की पूजा करेगा, वह जगत का पालन आदि कार्य कर सकता है।
जहाँ पर श्री ब्रह्मा , श्री विष्णु वहां पर शंकर ज्योतिर्मय स्तम्भ रुप (लिंग रुप) में प्रकट होकर बहुत बड़ा हो गया था। अतः उस लिंग के कारण यह भूतल 'लिंगस्थान' के नाम् से प्रसिद्ध हुआ। जगत के लोग इसका पूजन एवं दर्शन कर सके, इसके लिए यह अनादि एवं अनन्त ज्योतिर्मय स्तम्भ ( लिंग ) अत्यंत छोटा हो गया।
यह लिंग मोक्ष का एकमात्र साधन है। अग्नि के पहाड़ जैसा जो शिवलिंग यहाँ प्रकट हुआ,इस कारण यह स्थान अरुणाचल नाम से प्रसिद्ध होगा।

मेरे दो रुप हैं सकल और निष्कल।
दूसरे किसी देवता के ऐसे रूप नहीं है। पहले मैं स्तम्भ रूप में प्रकट हुआ,फिर अपने साक्षात रूप में।
ब्रह्मभाव मेरा निष्कल रूप (लिंग रूप) है एवम महेश्वर भाव मेरा सकल रूप।
ये दोनों मेरे ही सिद्धरूप हैं।
ब्रह्मरूप होने के कारण मैं ईश्वर हूँ। मैं ही जगत की वृद्धि करने वाला ब्रह्म हूँ।
मेरी ब्रह्म रूपता का बोध कराने के लिए ही निष्कल (बिना किसी अंग के ) लिंग रुप प्रकट हुआ।
फिर अज्ञात ईश्वर का बोध कराने के लिए मैं सकल रुप में अवतरित हुआ।



Monday, 26 June 2017

माँ सीता अग्नि परीक्षा और त्याग का खंडन

क्या माँ सीता का अग्नि परीक्षा ली थी और राम ने धोबी के कहने पर त्याग किया था ?
उत्तर : नहीं
माँ सीता का अग्निपरीक्षा एक झूठ मात्र है | जो वाल्मीकि रामायण में ,महाभारत और मनुस्मृति में छेड़खानी के कारन हुई थी |
माँ सीता स्वयं महामाया है | महामाया सीता के सामने  विष्णु महेश नतमस्तक रहते है | भगवान शिव ने माँ सती का त्याग महामाया सीता के रूप ग्रहण करने के कारन ही किया था | श्री राम स्वयं महानारायण है | जिन्होंने अनेको ब्रह्मा विष्णु और महेश उत्पन्न किये | अतः आप माँ महामाया सीता की अग्निपरीक्षा सोच भी नहीं सकते |

जो हर (शिव ) को वश में करे हरि और जो हरि ( नारायण ) को वश में रखे हरे (महामाया सीता राधा ) और जो हरे को वश में करे महानारायण ( श्रीराम श्री कृष्ण ) है |

यही सब मंत्रो का सार है |

हरे राम हरे राम | राम राम हरे हरे |
हरे कृष्णा हरे कृष्णा | कृष्णा कृष्णा हरे हरे |  |

माँ सीता के स्मरण मात्र से अग्नि शीतल हो जाती है | वीर हनुमान माँ सीता के आशीर्वाद से लंका दहन किये और अग्नि को माँ सीता ने ही अग्नि को हनुमान के लिए शीतल हो जाने को कहा था |
माँ सीता के आशीर्वाद से ही हनुमान जी अजर अमर गुणनिधान हो गए |

सुन्दर कांड दोहा
अजर अमर गुणनिधि सूत होहु | करहुँ बहुत रघुनायक छोहू | हनुमान

हनुमान चालीसा
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता | अस बर दीन जानकी माता |

क्यों माँ सीता ने लक्ष्मण रेखा लांघी , माँ सीता का रावण ने अपहरण कैसे कर लिया और माँ सीता ने रावण को दंड क्यों नहीं दिया ?
सत्य :सम्पूर्ण रामायण पढ़ने के बाद भी सीता कौन है ? पता नहीं
उत्तर : माँ सीता को जन्म देने वाली माँ मंदोदरी और पिता रावण है |  
देवी भागवत पुराण 
देवी भागवत पुराण के अनुसार, जब रावण ने मंदोदरी से विवाह करने की इच्छा को व्यक्त किया तब उसे चेतावनी दी गयी थी कि उसकी पहली संतान उसे मार देगी।  इसके बावजूद, रावण ने मंदोदरी से विवाह किया और जब उसकी पत्नी ने उसके लिये लड़की को जन्म दिया, तब उसने नवजात को पिटारे में छुपा दिया और पिटारे को मिथिला भेज दिया था। और इस तरह जनक को सीता प्राप्त हुयी थी।
वासुदेव हिंदी और उत्तर-पुराण
वासुदेव हिंदी और उत्तर-पुराण, रामायण का जैन रूपांतरण कहता है कि सीता, रावण और मंदोदरी की संतान है, और जब उनके बारे में भविष्यवाणी हुई कि वह रावण और उनके परिवार के अंत का कारण होगी तब उन्हें छोड़ दिया गया।
अद्भुत रामायण
ब्रह्मा जी: तपस्या छोड़ो अब वर मांगों. रावण ने ब्रह्मा जी से कहा, ‘ मैं किसी से कभी न मरूं, मुझे अमर होने का वरदान दीजिए.’ ब्रह्माजी ने कहा यह असंभव है. जो पैदा हुआ है मरेगा. कुछ और मांगो.
ब्रह्मा जी को वर देने में असहाय देख रावण ने कहा, यह वर नहीं दे सकते तो ऐसा वर दीजिए कि मुझे सुर, असुर, पिशाच, नाग, किन्नर या अप्सरा कोई भी न मार सके. मानव तो मुझे क्या मार सकेगा पर जब मैं अपनी कन्या को अपनी रानी बनाने पर आऊं तब मेरी मृत्यु हो. ब्रह्मा जी ने ठीक है कहा और ब्रह्मलोक चले गए.
http://www.vaidikbharat.in/2017/03/Weiredfacts-Ramayan.html 
थाईलैंड के रामायण ‘रामाकिएन’ 
थाईलैंड के रामायण ‘रामाकिएन’ के अनुसार सीता, रावण की बेटी थी। तत्कालीन ऋषि-मुनियों ने बताया कि उनके कुल का नाश सीता की वजह से होगा। इस कारण रावण ने सीता को समुद्र में प्रवाहित कर दिया, जो बाद में जनक को तपस्या करते हुए समुद्र किनारे मिली थी।
माँ सीता माँ मंदोदरी के बेटी है | जब माँ सीता का जन्म हुआ तो आकाशवाणी हुई की हे मंदोदरी तेरी पुत्री तेरे पति रावण का मौत कारन बनेगी | इसलिए रावण ने माँ सीता को राक्षसों द्वारा राजा जनक के राज्य में धरती में घड़े में रख कर गाड़ दिया था | जब राजा जनक ने हल चलायी तो घड़े में माँ सीता मिली थी |राजा जनक माँ सीता के धर्म पिता थे और रावण पिता थे |
इसलिए अपने पिता को अपने सामने पाकर और भीख मांगते देख लक्ष्मण रेखा लांघी थी | अपने पिता को मना नहीं किया और न ही युद्ध किया | इसलिए बारम्बार भगवान् राम ने सीता को लौटाने के लिए अनुरोध किये |
रावण को पता था जिस दिन उसकी पुत्री सीता लंका में कदम रखेगी | लंका में राक्षस का नाश होगा | इसलिए रावण ने अपनी बेटी सीता को लंका ले आया था | जिससे राक्षस का अंत और भगवान् श्री राम के हाथो मुक्ति मिले | जिसका माँ मंदोदरी, सीता के नाना(मंदोदरी के पिता मालयवन्त ), चाचा कुम्भकर्ण और चाचा विभीषण ने विरोध किया था |
माँ सीता ने रावण के बहुत अनुरोध और नाराजगी के बावजूद नगर जाने से मना किया और नगर के बाहर अशोक वाटिका में रही | श्री राम के भाई धर्म राज भरत और माँ सीता ने श्रीराम के वनवास के समय नगर जाने से इंकार किया था | भरत ने भी नगर के बाहर कुटिया बना कर और खड़ाऊं राज सिंहासन पर रखा था |
राज्य श्री शत्रुघन ही देखते थे |  अतः माता सीता ने खुद ही इक्षानुसार अशोकवाटिका में निवास किया | मेघनाद उनके सहोदर भ्राता थे | अपने माता और पिता के घर रहने के कारन सीता की पवित्रता पर सवाल करना ही गलत और अधर्म ही है |
माँ सीता राजा अपने पिता जनक , महर्षि वसिष्ठ, तीनो महारानी कौसल्या सुमित्रा, कैकयी के आशीर्वाद और खुद की इक्षानुसार और भगवान् श्रीराम की अनुमति से गयी थी | महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में गयी थी |
उस समय आश्रम प्रथा थी | बच्चे के देखभाल और अच्छे संस्कार के लिए गयी थी | बच्चे गर्भावस्था में सिख जाते है | अभिमन्यु ने गर्भ में ही चक्रव्यूह तोडना अर्जुन से सीखा था |

धोबी कांड एक झूठ का पुलिंदा  
वेद और शास्त्र के अनुसार हमलोग अभी कलियुग में जी रहे हैं जिसके 5018 वर्ष बीत चुके हैं। द्वापरयुग का काल 864000 वर्ष (आठ लाख चौसठ हज़ार) का हैं। अर्थात त्रेतायुग और कलियुग के बीच द्वापरयुग का 864000 वर्ष समाप्त हो चूके हैं। अगर कलियुग और द्वापर के समय को जोड़ा जाय तो 869018 तो आठ लाख उनहत्तर हज़ार अठारह बर्ष होते है | अतः भगवान श्री राम कम से कम 9 लाख बर्ष पहले आये है  | नासा के वैज्ञानिक के अनुसार श्री राम सेतु  लगभग  9 लाख बर्ष पुराना है | धोबी नाम की कोई शब्द नहीं था | त्रेता युग में जाती प्रथा नहीं थी | जाती प्रथा कलियुग में आया | जाती प्रथा मुग़ल ने और वर्ण व्ययस्था राजा भोज ने बनाया था | जो परिवर्तनीय थी | अतः यह भ्रामक और झूठ है |
मनु स्मृति ,वालमीकि रामायण में उत्तरकाण्ड और महाभारत में छेड़खानी हुई है

महर्षि वाल्मीकि  का संक्षिप्त परिचय 
महर्षि वाल्मीकि ने रामायण मे स्वयं कहा है कि :प्रेचेतसोंह दशमाः पुत्रों रघवनंदन। मनसा कर्मणा वाचा, भूतपूर्व न किल्विषम्।।हे राम मै प्रचेता मुनि का दसवा पुत्र हू और राम मैंने अपने जीवन में कभी भी पापाचार कार्य नहीं किया है।
महर्षि कश्यप और अदिति के नवम पुत्र वरुण (आदित्य) से इनका जन्म हुआ। इनकी माता चर्षणी और भाई भृगु थे। वरुण का एक नाम प्रचेत भी है, इसलिए इन्हें प्राचेतस् नाम से उल्लेखित किया जाता है। उपनिषद के विवरण के अनुसार यह भी अपने भाई भृगु की भांति परम ज्ञानी थे। एक बार ध्यान में बैठे हुए वरुण-पुत्र के शरीर को दीमकों ने अपना घर बनाकर ढंक लिया था। साधना पूरी करके जब यह दीमकों के घर, जिसे वाल्मीकि कहते हैं, से बाहर निकले तो लोग इन्हें वाल्मीकि कहने लगे। 
पंजाब हरियाणा उच्च न्यालय का निर्णय 
जिससे कि रत्नाकर की कहानी मिथ्या ही प्रतीत होती है क्योकि ऐसा ऋषि जिसके पिता स्वयं एक मुनि हो तो भला वह डाकू कैसे बन सकता है और वह स्वयं राम के सामने सीता जी की पवित्रता के बारे मे रामायण जैसी रचना मे अपना परिचय देता है तो वह गलत प्रतीत नहीं होता।

अब वाल्मीकि रामायण में छेडखाणी की समीक्षा करे | 

सीता के अग्नि परीक्षण की यदि बात की जाये तो मैं इस में कई कमियां देखता हूँ। रामायण काल स्त्रियों को उनके सम्पूर्ण गौरव और अधिकार प्रदान करने वाला काल रहा है।
संपूर्ण रामायण का अवलोकन करने के बाद इस में कोई संदेह नहीं रहता कि राम एक अत्युत्तम आदर्श थे। जिन थोड़े लोगों ने मुझे प्रेरित किया है – उन में श्री कृष्ण और हनुमान के आलावा मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम चंद्र प्रमुख हैं। राम धर्म के मूर्तिमंत स्वरुप हैं। इसलिए ऐसे प्रसंग राम के चरित्र से कोई मेल नहीं रखते और यह प्रसंग रामायण की स्वाभाविक कथा और उस में वर्णित अन्य सिद्धांतों के विपरीत भी है।
किसी स्त्री के सतीत्व के परीक्षण की ऐसी अवधारणा वेदों और मनुस्मृति के बिलकुल ख़िलाफ़ है।
यह तथ्य है कि रामायण एक ऐतिहासिक ग्रन्थ है, अल्लादीन के जादुई चिराग की कहानी नहीं है। और न ही सिर्फ हिन्दू परम्पराओं से ही जुडा हुआ कोई ग्रन्थ है। राम किसी धर्म विशेष के ही नहीं परंतु सम्पूर्ण मानव जाति के आदर्श पुरुष हैं।
आइये सच्चाई जानें:
वेदों की तरह, रामायण कोई ईश्वरीय ग्रन्थ नहीं है, बल्कि एक महाकाव्य है। वेद तो अपनी अनूठी रक्षण विधियों से जन्मकाल से ही सम्पूर्ण सुरक्षित हैं, उन में लेशमात्र भी परिवर्तन संभव नहीं है। लेकिन, अन्य ग्रंथों में रक्षण की ऐसी कोई कारगर प्रणाली उपलब्ध नहीं है। यही कारण है कि बाद के काल में रामायण और महाभारत, बड़ी मात्रा में मिलावट के शिकार हुए। मनुस्मृति का भी यही हाल है।
छपाई के अविष्कार से पहले, युगों तक ग्रन्थ हाथों से लिखे जाते रहे और उन्हें कंठस्थ करके याद रखा गया। अतः उन में मिलावट करना बहुत ही आसान था। इसलिए इन ग्रंथों के विशुद्ध संस्करण मिलना कठिन है। अब सभी प्रक्षेपण इतनी आसानी से तो
पकड़ में नहीं आते, परन्तु विश्लेषण करने पर जो स्पष्टत*:* मिलावट है उसे पहचाना जा सकता है। जैसे – भाषा में बदल हो, लिखने की शैली अलग हो, कथा के प्रवाह से मेल न खाए, असंगत हो, सन्दर्भ के विरुद्ध हो, पूर्वापर सम्बन्ध न हो, ऐसा लगे कि अचानक बीच में कोई ‘चमत्कार’ हुआ है और कथा फिर से अपनी गति से चलने लगे, ग्रन्थ के मूल विषय से विपरीत हो, इत्यादी।
हम पहले देख चुके हैं कि मनुस्मृति में मिलावट किये गए श्लोकों की संख्या पचास प्रतिशत से भी अधिक है।
यदि रामायण में भी सीता की अग्निपरीक्षा वाले श्लोकों का विश्लेषण किया जाये तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आते हैं।
युद्ध कांड के सर्ग तक कथा का प्रवाह सामान्य है। यहाँ हनुमान सीता को राम की विजय का समाचार देने जाते हैं।
सर्ग ११४ श्लोक २७ में राम कहते हैं कि स्त्रियों का सम्मान उन्हें राष्ट्र से मिलने वाले आदर और उनके अपने सदाचार से होता है। सम्मान की रक्षा में उन पर किसी भी तरह का कोई बंधन या घर, कपड़ों या चारदिवारी का प्रतिबन्ध लगाना मूर्खता है। यह श्लोक स्त्रियों के प्रति हिन्दू अवधारणा को दर्शाता है। अंतिम श्लोक को छोड़कर इस सर्ग ११४ के अन्य श्लोक प्रक्षिप्त दिखाई देते हैं – जो कथा को किंचित भी आगे नहीं बढ़ाते।
सर्ग ११५ के प्रथम छः श्लोकों में राम शत्रु संहार का भावपूर्ण वर्णन करते हैं। इससे अगले चार श्लोक हनुमान, सुग्रीव और विभीषण के अथक प्रयासों को बताने वाले हैं। श्लोक ११ और १२ स्पष्टत*:* मिलावट ही हैं और वे कथानक को भटकाने के लिए डाले गए लगते हैं। सर्ग ११५ के श्लोक १३ और १४ सीता को वापस पाकर राम की संतुष्टि का बखान करने वाले हैं।
लेकिन इस स्थिति से परिवर्तित होकर १५ वां श्लोक अचानक राम से कहलवाता है कि उन्होंने यह सब सीता को प्राप्त करने के लिए नहीं किया। सम्पूर्ण रामायण में राम सीता के वियोग से अत्यंत व्याकुल हैं, यहाँ तक कि वे दुःख में आंसू बहाते भी नजर आते हैं। लेकिन, इस श्लोक से कथा पूरी तरह दूसरी दिशा में परिवर्तित हो जाती है। और यह पहले के सन्दर्भों से विपरीत भी है। यदि राम सीता की अग्निपरीक्षा ही लेना चाहते थे तो वे सीधे तौर पर कह सकते थे, उन्हें इस तरह झूठ बोलने की कोई आवश्यकता नहीं थी। सम्पूर्ण रामायण में राम एक सत्यवादी और सत्यशोधक के रूप में चित्रित हैं पर यह श्लोक उनके स्वभाव और उनके चरित्र की इस विशेषता को दूषित करने वाला है, जो साफ़ तौर पर मिलावट किया गया है।
सर्ग ११५ के इस से आगे के सभी श्लोक स्पष्ट रूप से मिलावट ही लगते हैं, उदाहरण *:* श्लोक २२ और २३ – जिसमें राम सीता से भरत, लक्ष्मण, सुग्रीव, शत्रुघ्न या विभीषण के पास रहने के लिए कहते हैं।
सर्ग ११६ भी पूरी तरह से ऐसे जाली श्लोकों से भरा हुआ है – जिन में सीता राम के लगाये हुए आरोपों का उत्तर देती है, लक्ष्मण से अपने लिए चिता बनवाती है और अग्नि में प्रवेश करती है। तब अचानक ही सभी ऋषि, गन्धर्व और देवता प्रकट हो जाते हैं – जो अभी तक कहीं नहीं थे।
सर्ग ११७ में सभी प्रमुख देवता राम से वार्ता करने पहुँचते हैं, यही एक मात्र स्थल है रामायण में जहाँ अचानक देवत्व कथा पर हावी हो जाता है, यहीं पहली बार राम को ‘परब्रह्म’ कहा गया है।यदि राम ही परब्रह्म थे तो अन्य छोटे देवताओं को उन्हें समझाने की क्या आवश्यकता थी? और राम ने उन सब को बुलाया भी क्यों? इस का कोई उत्तर यहाँ नहीं मिलता। इस सर्ग के श्लोक ३२ तक राम के दैवीय होने की प्रशंसा की गयी है।
सर्ग ११८ में अग्निदेव सीता को गोद में लिए बाहर आते हैं और उन्हें राम को सौंपते हैं। तब राम यह कहते हैं कि वे यह सारा प्रपंच – सब को सीता की पवित्रता का विश्वास दिलाने के लिए कर रहे थे। और अंत में श्लोक २२ कहता है कि ” ऐसा कह कर राम सीता से अत्यंत प्रसन्नता से मिले।”
यदि सर्ग ११५ के श्लोक १५ से लेकर सर्ग ११८ के श्लोक २१ तक के बीच वाले सभी श्लोक हटा दिए जाएँ तो कथा सुगम हो जाती है और अपने सामान्य प्रवाह से चलती है। और यह बीच वाला जो प्रपंच है, जिस में यह सब वार्ता आती है उसकी कोई प्रासंगिकता रहती नहीं।
सर्ग ११५ का श्लोक १४, याद करिये जिस में राम ने अपने महान प्रयासों से सीता को पुनः प्राप्त करने का वर्णन अत्यंत भाव प्रवण होकर समझाया था। और उसके बाद सर्ग ११८ के इस श्लोक २२ को रखिये जो कहता है कि ” ऐसा
कह कर राम सीता से अत्यंत प्रसन्नता से मिले।” इन दोनों टूटी कड़ियों को जोड़ देने से और बीच वाली नाटकीय घटनाओं को हटा देने से कथा में निरंतरता आती है और असली कथा उभरती है।
अगले सर्ग ११९ और १२० भी पूरे मिलावटी हैं। इन में देवताओं से राम की और भी प्रशंसा करवाई गयी है, फिर महाराज दशरथ भी इन्द्र देव के साथ आ गए हैं, उनके बीच लम्बी वार्ता का वर्णन है। इंद्र देव अपने चमत्कार से मरे हुए सैनिकों को पुनः जीवित कर देते हैं, इत्यादि। सर्ग १२१ कहता है कि ” राम उस रात शांतिपूर्वक सोये और प्रातः विभीषण से उनकी बात हुई।” छुट-पुट मिलावटों के साथ कथा अपनी स्वाभाविक गति से आगे बढ़ते हुए सीता के साथ राम की अयोध्या वापसी का वर्णन करती है। इस के बाद अंत तक कोई चमत्कारी प्रसंग नहीं आता।
यदि कोई इस प्रसंग को सिर्फ ऊपरी तौर पर ही देख ले तब भी पता लग जायेगा कि यह बाद में की गयी मिलावट है। जिस ने राम को तो कलंकित किया ही है, साथ ही भारत वर्ष में जहर घोलने का काम भी किया है – कई तरह के संगठन, हिन्दू विरोधी
मानसिकता, स्त्री विरोधी मानसिकता, धर्म परिवर्तन इत्यादि कई जटिल समस्याओं को जन्म दिया है। जबकि इन सब का कोई आधार नहीं है, यह सब संदिग्ध है।
निम्नलिखित सभी श्लोक स्पष्टत*:* मिलावट हैं –
सर्ग ११४ *:* श्लोक २८ से आगे वाले सभी, सिर्फ अंतिम श्लोक को छोड़कर।
सर्ग ११५ *:* श्लोक १५ से आगे वाले सभी।
सर्ग ११६ और सर्ग ११७ सम्पूर्ण।
सर्ग ११८ *:* अंतिम श्लोक को छोड़कर सभी।
सर्ग ११९ और सर्ग १२० सम्पूर्ण।
अगर इन्हें हटा दें तो कहानी तार्किकता से, सरलता से और अबाध गति से आगे बढती है।
भगवान् काल (यमराज) ने राज्यभार सँभालते समय त्रिदेवों से दो अस्वासन मांगे थे | पहला की मृत्यभुवन पर विधि के विधान में कोई भी हेरफेर बिना काल की अनुमति के बिना न हो | दूसरा भगवान् भी मृत्युभुवन का सम्मान करे अर्थात जीव को काल की कैद से बिना चमत्कार किये अवतार लेकर मुक्त करना और जिस रूप में जन्म ले मर्यादा का पालन करना | ये सारे कर्म, चमत्कार वेद और मर्यादा के विरुद्ध है | अतः २८०० बर्ष पूर्व जो मिलावट किया गया है | यह मनुस्मृति , रामायण और महाभारत के साथ - साथ कुछ और धार्मिक ग्रंथो का मिलावटी तथ्य है |
सत्य को पहचानने की सबसे प्रमुख कसौटी यह है कि वह वेदों के अनुकूल और तर्क संगत हो। अन्यथा उसे मिलावट ही माना जाएगा। यदि छोटी -छोटी बातें तर्क से विरुद्ध हो तो उस में न उलझ कर, मूल विषय का ही अनुसरण करें।
वेद ही एकमात्र सत्य धर्म हैं, जिनकी सुदृढ़ नींव पर हमारी संस्कृति आरूढ़ है। समग्र विश्व के लिए राम एक आदर्श हैं और हमें उनके वंशज होने का गौरव मिला है। चाहे हम राम को भगवान मानें या धर्माचारी महापुरुष यह हमारा निजी विचार है। परन्तु, राम चरित्र अत्यंत पवित्र, उज्जवल और खरा सोना है। और हम अपने आदर्शों के सम्मान में सदैव प्रतिबद्ध हैं।
https://www.bhaskar.com/news/BIH-PAT-sita-is-daughter-of-lanka-king-ravan-4373756-PHO.html
http://www.deepawali.co.in/janaki-jayanti-navami-katha-hindi.html

http://www.mangalmurti.in/2017/01/what-was-relation-between-sita-rawan.html
http://www.gazabpost.com/do-you-know-about-these-relationships-of-hindu-mythology/

http://www.vaidikbharat.in/2017/03/Weiredfacts-Ramayan.html


वेद के लिए फैलाया गया कुछ भ्रम

जय श्री राम।।

माँ सरस्वती की उत्पत्ति माँ महाकाली ने की है

१. )शंका : क्या माँ सरस्वती की उत्पत्ति ब्रह्मा ने की है ?
क्या माँ सरस्वती ब्रह्मा की बेटी है ?
उत्तर : नहीं
भगवान् ब्रह्मा के ऊपर कोई भी सांसारिक ब्रह्मा का विधान लागु नहीं होता है | इसलिए कोई सांसारिक सम्बन्ध नहीं होता है |  गणेश, शिव , विष्णु , ब्रह्मा , दुर्गा (लक्ष्मी, सरस्वती, काली) इत्यादि पर  सांसारिक सम्बन्ध नहीं होता है |  ये एक दूसरे के आह्वान  पर प्रकट होते है | कार्य में सहायता करते है |
भगवान् ब्रह्मा ने कल्पना से ही संसार बनाया है | ब्रह्मा ने कल्पना से ही सबको पैदा किया है न की सम्बन्ध से इन्होने मानस पुत्र को जन्म दिया है | अतः ब्रह्मा की शक्ति माँ सरस्वती माँ गायत्री और गणेश जी है जिनके सहायता से वो विधान लिखते है | भगवन विष्णु की शक्ति लक्ष्मी है | जो पालन पोषण में सहायता करती है | महदेव की शक्ति कालि है जो शिव को प्रलय संहार में सहायता करती है |
दुर्गा सप्तशती में रहस्य में बताया गया है | माँ सरस्वती की उत्पत्ति माँ महाकाली ने की है |ब्रह्मा की सृष्टि की कल्पना कर रहे हो वो ब्रह्मा की सृष्टि से ऊपर है | इसलिए वास्तव में न तो देवता हैं , न असुर, न मनुष्य हैं न तिर्यक् ( मनुष्य से नीची – पशु , पक्षी आदि किसी ) योनीके प्राणी हैं । न वे स्त्री हैं, न पुरुष और न नपुंसक हीं हैं । नवे ऐसे कोई जीव हैं , जिनका इन तीनों ही श्रेणियों में समावेश न हो सके । न वे गुण हैं न कर्म, न कार्य हैं न तो कारण ही। सबका निषेध हो जानेपर जो कुछ बचा रहता है, वही उनका स्वरुप है तथा वे ही सब कुछ हैं।इसलिए कोई भी सांसारिक सम्बन्ध माँ सरस्वती पर लागू नहीं होता है| 
२ .) शंका : क्या माँ सीता का अग्नि परीक्षा ली थी और राम ने धोबी के कहने पर त्याग किया था ?
उत्तर : नहीं
 माँ सीता का अग्निपरीक्षा एक झूठ मात्र है | जो वाल्मीकि रामायण में ,महाभारत और मनुस्मृति में छेड़खानी के कारन हुई थी |
माँ सीता के स्मरण मात्र से अग्नि शीतल हो जाती है | वीर हनुमान माँ सीता के आशीर्वाद से लंका दहन किये और अग्नि को माँ सीता ने ही अग्नि को हनुमान के लिए शीतल हो जाने को कहा था |
माँ सीता के आशीर्वाद से ही हनुमान जी अजर अमर गुणनिधान हो गए |

सुन्दर कांड दोहा
अजर अमर गुणनिधि सूत होहु | करहुँ बहुत रघुनायक छोहू |  हनुमान

हनुमान चालीसा
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता | अस बर दीन जानकी माता |

क्यों माँ सीता ने लक्ष्मण रेखा लांघी , माँ सीता का रावण ने अपहरण कैसे कर लिया और माँ सीता ने रावण को दंड क्यों नहीं दिया ?

सत्य : माँ सीता माँ मंदोदरी के बेटी है  | जब माँ सीता का जन्म हुआ तो आकाशवाणी हुई की हे मंदोदरी तेरी पुत्री तेरे पति  रावण का मौत कारन बनेगी | इसलिए रावण ने माँ सीता को राक्षसों द्वारा राजा जनक के राज्य में धरती में घड़े में रख कर गाड़ दिया था | जब  राजा जनक ने हल चालयी तो घड़े में माँ सीता मिली थी |राजा जनक माँ सीता के धर्म पिता थे और रावण पिता थे |
इसलिए अपने पिता को अपने सामने पाकर और भीख मांगते देख लक्ष्मण रेखा लांघी थी | अपने पिता को मना नहीं किया और न ही युद्ध किया | इसलिए बारम्बार भगवान् राम ने सीता को लौटाने के लिए अनुरोध किये |

रावण को पता था जिस दिन उसकी पुत्री सीता लंका में कदम रखेगी | लंका में राक्षस का नाश होगा | इसलिए रावण ने अपनी बेटी सीता को लंका ले आया था | जिससे राक्षस का अंत और भगवान् श्री राम के हाथो मुक्ति मिले | जिसका माँ मंदोदरी, सीता के नाना(मंदोदरी के पिता ) चाचा कुम्भकर्ण और चाचा विभीषण ने विरोध किया था |   अतः मंदोदरी के आज्ञानुसार महल के बाहर ही माता सीता को रखा गया था | अपने माता और पिता के घर रहने के कारन सीता की पवित्रता पर सवाल करना ही गलत और अधर्म ही है |

माँ सीता राजा अपने पिता जनक , महर्षि वसिष्ठ, तीनो महारानी कौसल्या सुमित्रा, कैकयी के आशीर्वाद और खुद की इक्षानुसार और भगवान् श्रीराम की अनुमति से गयी थी | महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में गयी थी |
उस समय आश्रम प्रथा थी | बच्चे के देखभाल और अच्छे संस्कार के लिए गयी थी | बच्चे गर्भावस्था में सिख जाते है | अभिमन्यु ने गर्भ में ही चक्रव्यूह तोडना अर्जुन से सीखा था |


धोबी नाम की कोई शब्द नहीं था | त्रेता युग में जाती प्रथा नहीं थी | जाती प्रथा कलियुग में आया | जाती प्रथा मुग़ल ने और वर्ण व्ययस्था राजा भोज ने बनाया था | जो परिवर्तनीय थी | अतः यह भ्रामक और झूठ है |
मनु स्मृति ,वालमीकि रामायण में उत्तरकाण्ड और महाभारत में छेड़खानी हुई है

३. ) शंका : क्या माँ द्रौपदी के पांच पति थे ?
उत्तर : नहीं
माँ द्रौपदी पांचाल नरेश की पुत्री थी | जिससे उनका नाम पांचाली पड़ा था |
वामपंथी और अधर्मी ने हिन्दू धर्म को बदनाम करने के लिए झूठ फैलाया था |
४.) शंका : क्या शिव की पारवती और काली पत्नी ,माँ लक्ष्मी भगवान विष्णु की पत्नी और ब्रह्मा की पत्नी सरस्वती है ?
उत्तर : ये देवी शक्ति है | जिन्हे समय समय पर ब्रह्मा विष्णु महेश आह्वान करते है | आप पत्नी को सहयोगी समझ सकते है |
ब्रह्मा वेद की रचना और सृष्टि के लिए कानून लिखते है | जिसे भगवान् गणेश और माँ सरस्वती सहयोग करती है | इसलिए माँ सरस्वती को ब्रह्मा की शक्ति माना जाता है |
भगवान् विष्णु पालन पोषण माँ लक्ष्मी के सहयोग या शक्ति से करते है | इसलिए माँ लक्ष्मी को भगवान् विष्णु की संगिनी माना गया है |
भगवान् विष्णु स्वयं लक्ष्मी धन्वंतरि अमृत मोहिनी के रूप में प्रकट लिए थे |
भगवान भोलेनाथ संसार के मालिक और संहारकरता है | माँ पारवती को तप के समय और माँ काली को विनास के समय संगिनी शक्ति कहा गया है |
अतः आप पत्नी को शक्ति या सहयोगी के लिए समझ सकते है | लेकिन ब्रह्मा के श्रष्टि के ऊपर नर नारी जैसी कोई प्रथा नहीं है |
५.) राधा से कृष्ण की शादी क्यों नहीं हुई |
उत्तर : माँ राधा भगवान् श्री कृष्ण की अन्तरंगिणी माया है | जो समय आने पर श्री कृष्ण स्वयं माँ राधा के रूप में हर युग में प्रकट होते है | माँ राधा रूप श्री कृष्ण का मंगलकारी है जिसे योगी और भक्त्जन समझ सकते है | साधारण जन माँ रुक्मिणी को राधा समझ सकते है | माँ रुक्मिणी माँ लक्ष्मी और माँ राधा तीनो श्री कृष्ण के ही रूप और शक्ति है |

भगवान् के अनन्त रूप है | गणपति ब्रह्मा विष्णु महेश दुर्गा  एक दूसरे से प्रकट और एक दूसरे में व्याप्त होते रहते है | अन्नंत सूर्य है | भगवान् हमारी तर्क शक्ति से बाहर है |
भगवान् को हम नमन करते है |
त्राहि मा शरणागतम |

बोलो राधे राधे |

दुर्गा सप्तशती रहस्य 


Friday, 23 June 2017

प्रकाश की गति

प्रकाश की गति : ऋग्वेद में मोजूद हे | Speed of light in Rigveda
माना जाता है की आधुनिक काल में प्रकाश की गति की गणना Scotland के एक भोतिक विज्ञानी James Clerk Maxwell (13 June 1831 – 5 November 1879) ने की थी ।
जबकि आधुनिक समय में महर्षि सायण , जो वेदों के महान भाष्यकार थे , ने १४वीं सदी में प्रकाश की गति की गणना कर डाली थी जिसका आधार ऋग्वेद के प्रथम मंडल के ५ ० वें सूक्त का चोथा श्लोक था ।
तरणिर्विश्वदर्शतो ज्योतिष्कृदसि सूर्य ।
विश्वमा भासि रोचनम् ॥ ...ऋग्वेद १. ५ ० .४
अर्थात् हे सूर्य, तुम तीव्रगामी एवं सर्वसुन्दर तथा प्रकाश के दाता और जगत् को प्रकाशित करने वाले हो।
Swift and all beautiful art thou, O Surya (Surya=Sun), maker of the light, Illuming all the radiant realm.
उपरोक्त श्लोक पर टिप्पणी/भाष्य करते हुए महर्षि सायण ने निम्न श्लोक प्रस्तुत किया
तथा च स्मर्यते योजनानां सहस्त्रं द्वे द्वे शते द्वे च योजने एकेन निमिषार्धेन क्रममाण नमोऽस्तुते॥
-सायण ऋग्वेद भाष्य १. ५ ० .४
अर्थात् आधे निमेष में 2202 योजन का मार्गक्रमण करने वाले प्रकाश तुम्हें नमस्कार है
[O light,] bow to you, you who traverse 2,202 yojanas in half a nimesha..
-Sage Sayana 14th AD
yojana and nimesha are ancient unit of distance and time respectively.
उपरोक्त श्लोक से हमें प्रकाश के आधे निमिष में 2202 योजन चलने का पता चलता है अब समय की ईकाई निमिष तथा दुरी की ईकाई योजन को आधुनिक ईकाईयों में परिवर्तित कर सकते है ।
किन्तु उससे पूर्व प्राचीन समय व् दुरी की इन ईकाईयों के मान जानने होंगे .
निमेषे दश चाष्टौ च काष्ठा त्रिंशत्तु ताः कलाः |
त्रिंशत्कला मुहूर्तः स्यात् अहोरात्रं तु तावतः || ........मनुस्मृति 1-64
मनुस्मृति 1-64 के अनुसार :
पलक झपकने के समय को 1 निमिष कहा जाता है !
18 निमीष = 1 काष्ठ;
30 काष्ठ = 1 कला;
30 कला = 1 मुहूर्त;
30 मुहूर्त = 1 दिन व् रात (लगभग 24 घंटे )
As per Manusmriti 1/64 18 nimisha equals 1 kashta, 30 kashta equals 1 kala, 30 kala equals 1 muhurta, 30 muhurta equals 1 day+night
अतः एक दिन (24 घंटे) में निमिष हुए :
24 घंटे = 30*30*30*18= 486000 निमिष
hence, in 24 hours there are 486000 nimishas.
24 घंटे में सेकंड हुए = 24*60*60 = 86400 सेकंड
86400 सेकंड =486000 निमिष
अतः 1 सेकंड में निमिष हुए :
1 निमिष = 86400 /486000 = .17778 सेकंड
1/2 निमिष =.08889 सेकंड
in 1/2 nimisha approx .08889 seconds
अब योजन ज्ञान करना है , श्रीमद्भागवतम 3.30.24, 5.1.33, 5.20.43 आदि के अनुसार
1 योजन = 8 मील लगभग
2202 योजन = 8 * 2202 = 17616 मील
As per Shrimadbhagwatam 1 yojana equals to approx 8 miles.
सूर्य प्रकाश 1/2 (आधे) निमिष में 2202 योजन चलता है अर्थात
.08889 सेकंड में 17616 मील चलता है ।
.08889 सेकंड में प्रकाश की गति = 17616 मील
1 सेक में = 17616 / .08889 = 198177 मील लगभग
Speed of light in vedas 198177 miles per second approximately .
आज की प्रकाश गति गणना 186000 मील प्रति सेकंड लगभग
In morden science , its 186000 miles per second approximately.

Sunday, 18 June 2017

क्या आर्य विदेशी है ? नहीं

क्या आर्य हिन्दू विदेशी है ?
उत्तर : नहीं
एशिया और यूरोप को अंग्रेजी में यूरेसिया हिंदी (आर्याव्रत) कहते है |
यूरेशिया में एशिया |
एशिया में भारत  है | कावेरी नदी भारत में है |

आर्य का जन्म कावेरी नदी के किनारे गोंडवाना लैंड के पास हुआ !
यूरेसिया (यरोप+एशिया) | एशिया में भारत |
भारत में कावेरी नदीके गोंडवाना लैंड में जन्मे आर्य स्वदेशी है |
कावेरी नदी के किनारे से ही मानव (मनु के संतान - मनुष्य) सभ्यता का जन्म और विकास हुआ था |

आर्य शब्द का अर्थ विशिष्ट तथा श्रेष्ठ गुण जन है। आर्यो के आक्रमण से संबंद्धित सिद्धांत औपनिवेशिक भारत के दुष्परिणामों में से एक है। ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा प्रायोजित विद्वानों ने बलपूर्वक आर्य शब्द के जातीय संदर्भ ढूंढ़कर द्रविड़ के सामने खड़ा किया। उत्तर-दक्षिण तथा निम्न उच्च आदि विवाद भारत की अखंडता के लिए खतरा हैं।

हिंदी शब्द के अंग्रेजी और संस्कृत में समानार्थक शब्द
पृथ्वी:
अर्थ EARTH = पृथ्वी
आर्याव्रत :
यूरेसिया (यरोप+एशिया) EURASIA ( Europe + Asia )  = आर्याव्रत
जम्बू द्वीप :
एशिया  =  जम्बू द्वीप
भारतबर्ष:
ईरान + अफगानिस्तान+पाकिस्तान+नेपाल +भारत +म्यांमार +भूटान +बंग्लादेश + श्रीलंका = भारतबर्ष
हिन्दुस्तान
इंडिया = हिन्दुस्थान

क्या ब्राह्मण ने जाती प्रथा प्रारम्भ किया ?
उत्तर : नहीं
राजा भोज ने हिन्दू को कार्य बांटा था जिसे मुगलो ने चालाकी से जाती प्रथा बना दिया | अंग्रेज , कांग्रेस और वामपंथी बुद्धिजीवी ने जहर घोल कर विषाक्त कर दिया |
क्या आप बता सकते हो की आप के पूर्वज किस जाती से थे शायद नहीं मुग़ल के पहले जाती प्रथा नहीं थी | एक बात तो पक्की है आप के पूर्वज वीर हिन्दू थे कायर नहीं और गुलाम नहीं | अरब वाले सिर्फ कनवर्टेड मुस्लिम को गुलाम मानते है | भारत में बहुत सारे राज्य थे | जिसमे मुग़ल का शासन नहीं था | स्वतंत्र थे | कभी मुग़ल की गुलामी नहीं की | जाती प्रथा के लिए सब जिम्मेवार है | केवल ब्राह्मण नहीं | छुवा छूट सिर्फ ब्राह्मण नह करते थे | सब हिन्दू करते थे | कसाई और गंदगी पेशा के कारन सब छुवा छूत करते थे | मुग़ल ने इनको प्रताड़ित करके चंवर वंशीय को चमड़ा छिलवा कर अपमानित किया | हिन्दू तो चमड़े का इस्तेमाल नहीं करते थे | खड़ाऊं करते थे | मंदिर में आज भी बेल्ट जूता खोल के जाते है |

औरंगजेब का अत्याचार की कोई सीमा नही था | उसका अत्याचार दिनों दिन बढ़ता गया | वह रोज ढाई मन जनेऊ न जला लेता था तब तक उसे नींद नहीं आती थी l
औरंगजेब अपने शासन के आखिरी बर्षो में रोज ढाई मन जनेऊ जला कर ब्राह्मण क्षत्रिय को गुलाम बना कर अछूत(मैला चमड़ा) काम करवाता था |
आप इसी बात से अंदाजा लगा सकते हैं की ढाई मन जनेऊ एक दिन में जलाने से कितने हिन्दुओं को मारा सताया जाता होगा और कितने बड़े स्तर पर धर्म परिवर्तन किया जाता होगा, कितनी ही औरतों का शारीरिक मान मर्दन किया जाता होगा और कितने ही मन्दिरों तथा प्रतिमाओं का विध्वंस किया जाता होगा |वर्तमान के पाकिस्तान ईरान अफगानिस्तान बंग्लादेश जो भारत के अंग थे मुगलो ने अत्याचार कर धर्मपरिवर्तन करवाया था | आततायी औरंगजेब प्रतिदिन शाम में ढाई मन जनेऊ जलाते थे | जनेऊ पहनने पर यातना देते थे | इसलिए उपनयन संस्कार बंद और मैला चमड़ा के कारोबार में ब्राह्मणो वैश्यों क्षत्रियो को लगाया गया जिससे अछूत बने | हमारे वीर पूर्वज हिन्दू ( ब्राह्मण क्षत्रिय वैस्य शूद्र ) अछूत बने लेकिन धर्म नहीं त्यागा |
Eurasia /jʊˈrʒə/ is a combined continental landmass of Europe and Asia.[2][3][4] The term is a portmanteau of its constituent continents (Europe & Asia). Located primarily in the Northern and Eastern Hemispheres, it is bordered by the Atlantic Ocean to the west, the Pacific Ocean to the east, the Arctic Ocean to the north, and by Africa, the Mediterranean Sea, and the Indian Ocean to the south.[5] The division between Europe and Asia as two different continents is a historical and cultural construct, with no clear physical separation between them; thus, in some parts of the world, Eurasia is recognized as the largest of five or six continents.[4] In geology, Eurasia is often considered as a single rigid megablock. However, the rigidity of Eurasia is debated based on the paleomagnet data.[6][7]

Eurasia (orthographic projection).svg
Area55,000,000 km2(21,000,000 sq mi)
Population5,132,000,000 (on 2015, 1 July) [1]
Population density93/km2 (240/sq mi) 3 thousands cunta
DemonymEurasian
Countries~90 countries
Dependencies9 dependencies
Time zonesUTC−1 to UTC+12

कश्मीर में पत्थरबाज इस्लामिक झंडा लेके प्रदर्सन करते है | वामपंथी सेक्युलर कांग्रेस समर्थन करती है | सात लाख ब्राह्मण पंडित मार दिए | कोई मानवाधिकार कोई कानून काम ना आया | मतलब साफ़ है | ये क्या चाहते है | भारत में शरिया लागू हो और हिन्दू मारा जाय |
पाक ,गद्दार और सेक्युलर एक साथ मिलकर युद्ध कर रहा है | वामपंथी और कोंग्रेसी जहाँ सत्ता में है वहां हिन्दू को मार रहे है |
जिस प्रकार कल गद्दार कौम ने बता दिया वो भारत को हारते हुए देखना चाहते है |
वामपंथी ने जिस प्रकार माओवाद नक्सलवाद जैसे बहुत सारे उग्रवादी संगठन बनाये है ये सिर्फ आने वाले खतरे के संकेत है |
कश्मीर केरल बंगाल ह्यदेरबाद JNU यादवपुर में जिस प्रकार पाकिस्तान के झंडे फहराए जाते है | भारतीयों को गाली और तिरंगा राष्ट्रगीत राष्ट्रगान अपमान होता है | ये खतरे के संकेत है |
हमें लगता है चीन पाकिस्तान से जब लड़ाई होगी | #गद्दार कौम तलवार लेके हिन्दुओ का सर कलम करने में देर नहीं करेगी |
#गद्दारो कायर सेक्युलरों को देख कर लगता है | हिंदुस्तान जल्द ही गुलाम होगा |
अगर आज भी नहीं जागे तो हमारे आने वाली नस्ले पाकिस्तान का कौमी नारा लगा लगा के ख़ुदकुश हमलावर बनेंगे | हिंदुस्तान बर्बाद होगा एक भी हिन्दू नहीं बचेगा | सीरिया की तरह हालात होंगे | उसके जिम्मेवार होंगे हम |
जय हिन्द भारत माता की जय |

33 कोटी देवी देवता हैँ

33 करोड नहीँ 33 कोटी देवी देवता हैँ हिँदू
धर्म मेँ।
कोटि = प्रकार।
देवभाषा संस्कृत में कोटि के दो अर्थ होते है,
कोटि का मतलब प्रकार होता है और एक अर्थ करोड़ भी होता।
हिन्दू धर्म का दुष्प्रचार करने के लिए ये बात उडाई गयी की हिन्दुओ के 33 करोड़ देवी देवता हैं और अब तो मुर्ख हिन्दू खुद ही गाते फिरते हैं की हमारे 33 करोड़ देवी देवता हैं...
कुल 33 प्रकार के देवी देवता हैँ हिँदू धर्म मे :-
12 प्रकार हैँ
आदित्य , धाता, मित, आर्यमा,
शक्रा, वरुण, अँश, भाग, विवास्वान, पूष,
सविता, तवास्था, और विष्णु...!
8 प्रकार हे :-
वासु:, धर, ध्रुव, सोम, अह, अनिल, अनल, प्रत्युष और प्रभाष।
11 प्रकार है :-
रुद्र: ,हर,बहुरुप, त्रयँबक,
अपराजिता, बृषाकापि, शँभू, कपार्दी,
रेवात, मृगव्याध, शर्वा, और कपाली।
एवँ
दो प्रकार हैँ अश्विनी और कुमार।
कुल :- 12+8+11+2=33 कोटी

सनातन धर्म खतरे में

भारत में मात्र २% ब्राह्मण है क्या इनका अंत करने से शांति आएगी|
उत्तर : नहीं
ईरान अफगानिस्तान पाकिस्तान बंग्लादेश में पंडित पुजारी का कत्लेआम हुआ |
पाकिस्तान बंग्लादेश अफगानिस्तान इंडोनेसिया थाईलैंड में ब्राह्मण के अंत के साथ ही हिन्दू का अंत हो गया अशांति है |


केरल के ब्राह्मण का अंत होने के बाद , आसाम में पंडित कश्मीर में पंडित का कत्ले आम हुआ
कश्मीर केरल बंगाल असम ह्यदेरबाद में ब्राह्मण का अंत किया जा रहा है | त्राहि त्राहि मची है |
भारत में १००० ब्राह्मण में सिर्फ २ ब्राह्मण पंडित और पुजारी है| बाकी अलग पेशा में हैजिस दिन ब्राह्मण का अंत हुआ सनातन धर्म का अंत होगा और विश्व पूर्ण रूप से इलुमिनाटी का गुलाम हो जायेगा |
राम नाम सत्य है |

क्या आर्य हिन्दू विदेशी है ?
उत्तर : नहीं
एशिया और यूरोप को यूरेसिया कहते है |

भारत एशिया में है | कावेरी नदी भारत में है |

आर्य का जन्म कावेरी नदी के किनारे गोंडवाना लैंड के पास हुआ !

कावेरी नदी के किनारे से ही मानव (मनु के संतान - मनुष्य) सभ्यता का जन्म और विकास हुआ था |


यूरेसिया(यरोप+एशिया) | एशिया में भारत |

भारत में कावेरी नदीके गोंडवाना लैंड में जन्मे आर्य स्वदेशी है |

क्या ब्राह्मण ने जाती प्रथा प्रारम्भ किया ?

उत्तर : नहीं
राजा भोज ने हिन्दू को कार्य बांटा था जिसे मुगलो ने चालाकी से जाती प्रथा बना दिया | अंग्रेज , कांग्रेस और वामपंथी बुद्धिजीवी ने जहर घोल कर विषाक्त कर दिया |
क्या आप बता सकते हो की आप के पूर्वज किस जाती से थे शायद नहीं मुग़ल के पहले जाती प्रथा नहीं थी | एक बात तो पक्की है आप के पूर्वज वीर हिन्दू थे कायर नहीं और गुलाम नहीं | अरब वाले सिर्फ कनवर्टेड मुस्लिम को गुलाम मानते है | भारत में बहुत सारे राज्य थे | जिसमे मुग़ल का शासन नहीं था | स्वतंत्र थे | कभी मुग़ल की गुलामी नहीं की | जाती प्रथा के लिए सब जिम्मेवार है | केवल ब्राह्मण नहीं | छुवा छूट सिर्फ ब्राह्मण नह करते थे | सब हिन्दू करते थे | कसाई और गंदगी पेशा के कारन सब छुवा छूत करते थे | मुग़ल ने इनको प्रताड़ित करके चंवर वंशीय को चमड़ा छिलवा कर अपमानित किया | हिन्दू तो चमड़े का इस्तेमाल नहीं करते थे | खड़ाऊं करते थे | मंदिर में आज भी बेल्ट जूता खोल के जाते है |
ब्राह्मण को जातिवाद ,कट्टरवाद कभी विदेशी बता कर नष्ट करना चाहते है |
इल्लुमिनाटी ने विश्व के सारे धर्म ख़त्म कर दिए सिर्फ सनातन बचा है |
इसलिए वो किसी प्रकार ब्राह्मण का अंत चाहते है|
इल्लुमिनाती ही ब्राह्मण का सबसे बड़ा दुश्मन है

Saturday, 17 June 2017

मुसलामानों की जाति

मुसलामानों में 300 से अधिक जातियाँ हैं।
1-महकमिय्या 2-अजराकिया 3- आयुजि 4-नजरात 5-असफरिया 6-अबाजिया 7-अहसाम्य्या 8-बहशिस्यह 9-नागलियाह 10-अजजदह 11-अख्वास्या 12-शैबानीयह्ह् 13-मकराम्या 14-वासलिय्या 15- हज़ेलिया 16-नजामिया 17-अस्वारिया 18-अस्काफिया 19-मज्वारिया 20-बशरिया 21-अस्मरिया 22-हसामिया 23-साल्जियह 24 हाबतिया 25-मुकमरिया 26-समामिया 27-जाख्तिया 28-हरीबा 29-जाफरिया 30-बहशमिया 31-जबानिया 32-कबेया 33-ख्यातेया 34-गरसानिया 35-सोबानिया 36-सोबेया 37-अहदया 38-बर्गोसिया 39-नाफेरानिया 40-ब्यानिया 41-मुगिरिया 42-कामलिया 43-मंसूरिया 44-खताबिया 45-अजआबिया 46-जमिया 47-मुस्तदरिकिया48-मुजसामिया 49-करामिया 50-जाहिमिया

51-हनफिया 52-मालकिय्या 53-शाफ्या 54-हम्बिलिया 55-सूफिया 56-दावड़िया 57-सबाइया 58-मफज़जलिया 59-जारिया 60-इशहकिया 61-शेतानिया 62-मफुजिया 63-कसानिया 64-रजानिया 65-इस्माइल्लिया66-नासिरिया 67-जैदिया 68-नारुसिया 69-अहफटया 70-वाकफीफीया 71-गलात 72-हशविया 73-उल्वेया 74-अबड़िया 75-शमसिया 76-अब्बासिया 77-इमामिया 78-नावस्या 79-तनासुख्या 80-मूर्तजिया 81-राजइय्या 82-खलिफिया 83-कंजिया 84-हज़तरिया 85-मोतजलिया 86-मैमुनिया 87-अफालिया 88-माबिया 89-तारक्या 90-नजमैमुनिया 91-हज़तिया 92-कंदरिया 93-अहरिया 94-वहमिय्या 95-मोटलिया 96-मुतरआ बसिया 97-मुतरफिया 98-मखलुखिया 99-मुतराफिया 100-वबरिया

101-मजिया 102-शाबाइया 103-अमालिया 104-मुस्तसिया105-मुशबह्य्या 106-सालमिया 107-कास्मिया 108-कनामिया 109-खारिजया 110-तर्किया 111-हज़ीमिया112-दहरिया 113-साआल्बिया 114-वहाबिया 115-नसारिया 116-मझुलिया 117-सलया 118-अख़बसया 119-बहसिया 120-समराख्या 121-अतबिया 122-गालिया 123-कतएया 124-कुर्बिया 125-मुहमदीया 126-हसनिया 127-क़राबतइया 128-मुबारिकिया 129-श्मतिया 130-अमारिया 131-मख्तुरिया 132-मोसुमिया 133-नानेया 134-तयारिया 135-यतरायह 136-सैरफिया 137-सरीइयह 138-जारुदिया 139-सुलेमनिया 140-तबारिया 141-नइमया 142-याक़ूबिया 143-शमरिया 144-युनानिया 145-बखारिया 146-गेलिन्या 147-शाएबिया 148-समहाज़िया 149-मरसिया 150-हासमिया

151-खरारिया 152-क्लाबिया 153-हालिया 154-बाटनिया155-अबाजिया 156-ब्राह्मिया 157-अशअरिया 158-सोफ्सतैया 159-फिलसफिया 160-समिनिया 161-मशाईन 162-अश्राकिन 163-अजुसियह 164-उम्बिया 165-वजीदीया 166-अलीळालाहिया167-सादकिया 168-फुरकानिया 169-फरुकिया 170-शेखिय्या 171-शम्ससया 172-सम्मिस्या 173-फरकिया 174-नक़्शबंदिया 175-कादरिया 176-नेचीरिया 177-मिजाइय्या 178-आगखानिया 179-शहर बदीया 180-चिश्तिया 181-क्रानिया 182-नजदीया 183-बाबिया184-मवाहदीया वहाबी 185-राफजिया 186-नजिया 187-जस्तीया 188-इबारिया 189-जबरिया 190-टबरिया 191-सल्फिया 192-अकलिया 193-सफत्या 194-तकलिया 195-मुट्सफिया 196-हमाओसत 197-शमाफिया 198-हफ्तइमामिया199-हश्तइमामिया200-अशन अशारिया

2०1-अखबारिय्यिन 202-मुतकल्लमिन 203-मुत्सररइन 204-रोशनियां 205-कोकबिया 206-तबकुमिया 207-अर्शेआसेयानी 208-तातिलिया 209 अन्सारिया 210-रखबिया 211-रहमानिया 212-रुहानिया 213-अन्नजिया 214-हबिबिया 215-अजिया 216-हबिरिया 217-सक्तिया 218-जनिदिया 219-जबिया 220-आरहिमिया 221-क्लद्रिया 222-फिरडोमिया 223-मदारिया 224-रजजिया 225-सफाइय्या 226-खाकिया 227-वादिया 228-तशनिया 229-आविया 230-तैकुरिया 231-दवाया 232-शैतारिया 233-तबकानिया 234-सय्यद जमालुद्दीन 235-मतबरिया 236-आर्गुनिया 237-आल्याया 238-गजिरुनिया 239-जाहडिया 240-तोबिया 241-कजिया 242-तशिरिया 243-हलालिया 244-नूरिया 245-एदुसिया 246-यस्विया 247-रफइय्या 248-मोइन्या 249-शकरगजिया 250-महबुने इलहिया

251-महमुदिया 252-फखरुदिनिया 253-नुरे मुहामादिया 254-वुनसुया 255-अल्लाहबक्षिया 256-हाफजिया 257-खिजरुया 258-कर्मनिया 259-करिमियऑ 260-जलिलिया 261-जमालिया 262-कुडिसिया 263-साबरिया 264-मखदुमिया 265-हज़रूमिया 266-निजामिया 267-अबूलअलैया 268-हसमिया चितस्या 269-निजमहिरिया270-बखारिया 271-हमजआशाही 272-फखरिया 273-नायजिया274-जायइया 275-फक्रिया फरीदइया 276-शमशिया सुलमानिया 277-फखरिया सुलमानिया 278-सुदुशाही 279-रजाकिया 280-वहाविया 281-नोशाही 282-शय्येदशाही 283-हुस्सैनशाही284-कबिसिया 285-मुहम्मदशाही286-बहलोलशाही 287-हासशाही 288-सुदुशाही 289-मुकियशाही 290-महुवदशाही 291-कासिमशाही 292-नंतुल्लाहशाही 293-मिरशाही 294-सुफियाहमीडिया 295-कंमसिय्या 296-दोलशाही 297-रसुलशाही 298-सुहागशाही 299-सफबीय्या 300-लालशाही

301-बाजिया 302-बुखारिया 303-कर्मजहलि 304-हबिबशाही 305-मूर्तज़शाही 306-अब्दुलकरिमि307-इस्मैलशाही 308-हलिमशाही 309-रुजाकशाही 310-मिजाकशाही 311- संगरिया 312-अय्याजिया 313-नासिरिया

अब जातिगत नफरत इनमे क़ातिलाना है