धर्म क्या है ?
एस धम्मो सनंतनो अर्थात यही है सनातन धर्म। बुद्ध का मार्ग ही सच्चे अर्थों में धर्म का मार्ग है। दोनों तरह की अतियों से अलग एकदम स्पष्ट और साफ। जिन्होंने इसे नहीं जाना उन्होंने कुछ नहीं जाना।
धर्मराज (भगवान काल) द्वारा जीवो के लिए बनाये गए नियम पालन ही धर्म है |
धर्म शाश्त्र के सूक्ष्म अध्यनों से पता चलता है की बुद्ध महावीर मीरा कबीर तुलसीदास सूरदास रविदास नानक मेंही दास इत्यादि महपुरुषों ने वैदिक सनातन धर्म को जनमानस के लिए लोकभाषा (प्रचलित बोलने और समझने वाले) भाषा में पडोसा | लोकभाषा में होने के कारन अनेक पंथ और ग्रन्थ हुए| जो वैदिक सनातन धर्म को बचाने में कामयाब रहे |
बुद्ध की शिक्षा-दिक्षा : वैसे तो राजपुत्र सिद्धार्थ ने कई विद्वानों को अपना गुरु बनाया किंतु गुरु विश्वामित्र के पास उन्होंने वेद और उपनिषद् पढ़े, साथ ही राजकाज और युद्ध-विद्या की भी शिक्षा ली।
सिद्धार्थ ने गुरु विश्वामित्र के पास वेद और उपनिषद् तो पढ़े ही, राजकाज और युद्ध-विद्या की भी शिक्षा ली। कुश्ती, घुड़दौड़, तीर-कमान, रथ हाँकने में कोई उसकी बराबरी नहीं कर पाता। सोलह वर्ष की उम्र में सिद्धार्थ का कोली कन्या यशोधरा के साथ विवाह हुआ। पिता द्वारा ऋतुओं के अनुरूप बनाए गए वैभवशाली और समस्त भोगों से युक्त महल में वे यशोधरा के साथ रहने लगे जहाँ उनके पुत्र राहुल का जन्म हुआ। लेकिन विवाहके बाद उनका मन वैराग्यमें चला और सम्यक सुख-शांतिके लिए उन्होंने आपने परिवार का त्याग कर दिया
काल धर्मराज का ज्ञान कैसे हुआ ?
राजा शुद्धोधन ने सिद्धार्थ के लिए भोग-विलास का भरपूर प्रबंध कर दिया। तीन ऋतुओं के लायक तीन सुंदर महल बनवा दिए। वहाँ पर नाच-गान और मनोरंजन की सारी सामग्री जुटा दी गई। दास-दासी उसकी सेवा में रख दिए गए। पर ये सब चीजें सिद्धार्थ को संसार में बाँधकर नहीं रख सकीं।
धर्मराज (भगवान काल) द्वारा जीवो के लिए बनाये गए नियम पालन ही धर्म है |
धर्म शाश्त्र के सूक्ष्म अध्यनों से पता चलता है की बुद्ध महावीर मीरा कबीर तुलसीदास सूरदास रविदास नानक मेंही दास इत्यादि महपुरुषों ने वैदिक सनातन धर्म को जनमानस के लिए लोकभाषा (प्रचलित बोलने और समझने वाले) भाषा में पडोसा | लोकभाषा में होने के कारन अनेक पंथ और ग्रन्थ हुए| जो वैदिक सनातन धर्म को बचाने में कामयाब रहे |
वेद पुराण कहता है भगवन ब्रह्मा ने जीवो की आयु और कर्म के लिए नियम बनाये है | नियम को मृत्युभुवन का राजा काल और इंद्र है | नियम को पालन करना ही धर्म है | मृत्यु एक सच्चाई है |
जीव की आत्मा अमर है | आत्मा का एक मात्र आश्रय और एक मात्र अंतिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति या आत्मा का श्री हरि (नारायण) में मिल जाना है | यानी आत्मा का परमात्मा में मिलना ही मोक्ष है | जो जीव मोक्ष प्राप्त करता है उसका पुनः जन्म नहीं होता है |
जीव की आत्मा अमर है | आत्मा का एक मात्र आश्रय और एक मात्र अंतिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति या आत्मा का श्री हरि (नारायण) में मिल जाना है | यानी आत्मा का परमात्मा में मिलना ही मोक्ष है | जो जीव मोक्ष प्राप्त करता है उसका पुनः जन्म नहीं होता है |
ज्ञान वैराग्य भक्तिमार्ग तपस्या योग इत्यादि सत्य (श्री हरि सत्यनारायण ) को पाने का रास्ता है | अतः श्री हरि विष्णु (नारायण) को पाने का अनेक रास्ता है लेकिन भक्ति प्रेम आसान रास्ता है |
वाल्मीकि बुद्ध महावीर शंकराचार्य रामकृष्ण परमहंस विवेकानंद ने ज्ञान और वैराग्य का रास्ता चुना | जो सामान्य जीवों से संभव नहीं है | ये तपस्वी और कर्मयोगी द्वारा संभव है |
वाल्मीकि बुद्ध महावीर शंकराचार्य रामकृष्ण परमहंस विवेकानंद ने ज्ञान और वैराग्य का रास्ता चुना | जो सामान्य जीवों से संभव नहीं है | ये तपस्वी और कर्मयोगी द्वारा संभव है |
मीरा कबीर तुलसीदास सूरदास रविदास नानक मेंही दास इत्यादि महपुरुषों ने भक्तिमार्ग चुना जो आसान और सुगम है |
हे धर्म धुरंधर जागो | श्री राम श्री कृष्ण स्वयं नहानरायण है | जिनका भक्तिमार्ग से केवल नाम लेकर ही मनुष्य के जीवन को सार्थक करे |
हरे राम हरे राम | राम राम हरे हरे ||
हरे कृष्ण हरे कृष्ण | कृष्ण कृष्ण हरे हरे ||
हरे कृष्ण हरे कृष्ण | कृष्ण कृष्ण हरे हरे ||
हरि ॐ तत्सत |
सिद्धार्थ ने गुरु विश्वामित्र के पास वेद और उपनिषद् तो पढ़े ही, राजकाज और युद्ध-विद्या की भी शिक्षा ली। कुश्ती, घुड़दौड़, तीर-कमान, रथ हाँकने में कोई उसकी बराबरी नहीं कर पाता। सोलह वर्ष की उम्र में सिद्धार्थ का कोली कन्या यशोधरा के साथ विवाह हुआ। पिता द्वारा ऋतुओं के अनुरूप बनाए गए वैभवशाली और समस्त भोगों से युक्त महल में वे यशोधरा के साथ रहने लगे जहाँ उनके पुत्र राहुल का जन्म हुआ। लेकिन विवाहके बाद उनका मन वैराग्यमें चला और सम्यक सुख-शांतिके लिए उन्होंने आपने परिवार का त्याग कर दिया
काल धर्मराज का ज्ञान कैसे हुआ ?
राजा शुद्धोधन ने सिद्धार्थ के लिए भोग-विलास का भरपूर प्रबंध कर दिया। तीन ऋतुओं के लायक तीन सुंदर महल बनवा दिए। वहाँ पर नाच-गान और मनोरंजन की सारी सामग्री जुटा दी गई। दास-दासी उसकी सेवा में रख दिए गए। पर ये सब चीजें सिद्धार्थ को संसार में बाँधकर नहीं रख सकीं।
वसंत ऋतु में एक दिन सिद्धार्थ बगीचे की सैर पर निकले। उन्हें सड़क पर एक बूढ़ा आदमी दिखाई दिया। उसके दाँत टूट गए थे, बाल पक गए थे, शरीर टेढ़ा हो गया था। हाथ में लाठी पकड़े धीरे-धीरे काँपता हुआ वह सड़क पर चल रहा था। दूसरी बार कुमार जब बगीचे की सैर को निकला, तो उसकी आँखों के आगे एक रोगी आ गया। उसकी साँस तेजी से चल रही थी। कंधे ढीले पड़ गए थे। बाँहें सूख गई थीं। पेट फूल गया था। चेहरा पीला पड़ गया था। दूसरे के सहारे वह बड़ी मुश्किल से चल पा रहा था।
तीसरी बार सिद्धार्थ को एक अर्थी मिली। चार आदमी उसे उठाकर लिए जा रहे थे। पीछे-पीछे बहुत से लोग थे। कोई रो रहा था, कोई छाती पीट रहा था, कोई अपने बाल नोच रहा था।
इस तरह उन्हें धर्मराज का राजा होने का ज्ञान हुआ |
इन दृश्यों ने सिद्धार्थ को बहुत विचलित किया। उन्होंने सोचा कि ‘धिक्कार है जवानी को, जो जीवन को सोख लेती है। धिक्कार है स्वास्थ्य को, जो शरीर को नष्ट कर देता है। धिक्कार है जीवन को, जो इतनी जल्दी अपना अध्याय पूरा कर देता है। क्या बुढ़ापा, बीमारी और मौत सदा इसी तरह होती रहेगी सौम्य? चौथी बार कुमार बगीचे की सैर को निकला, तो उसे एक संन्यासी दिखाई पड़ा। संसार की सारी भावनाओं और कामनाओं से मुक्त प्रसन्नचित्त संन्यासी ने सिद्धार्थ को आकृष्ट किया।
राजा कितने है?
देवराज इंद्र :पूण्य के लिए स्वर्ग
धर्मराज काल :पापी के लिए नरक
बोधीवृक्ष : उसी रात को ध्यान लगाते समय सिद्धार्थ को सच्चा बोध हुआ। वहीं उन्हें बुद्धत्व उपलब्ध हुआ। भारत के बिहार में बोधगया में आज भी वह वटवृक्ष विद्यमान है जिसे अब बोधीवृक्ष कहा जाता है।
यहीं सत्य ( हरि ॐ तत्सत ) का ज्ञान हुआ |
राजपुत्र सिद्धार्थ ने राजपाट त्याग कर सच्चा ज्ञान प्राप्त किया बुद्ध बने और सत्य( हरि ॐ तत्सत ) की शरणगति ली |
धर्म शरणम : धर्मराज मृत्यु के देवता का शरणगत होना |
संघम शरणम : सत्संग धर्मात्मा का शरणगति होना |
सत्यम शरणम : सत्य (हरि ॐ तत्सत या राम नाम सत्य है) की शरण गति होना |
अतः बुद्ध ने सत्संगत सद्मार्ग मृत्यु लोक के राजा धर्मराज और सत्यनारायण श्री राम की शरणगति होना ही जीव का लक्ष्य है |
अब भगवन कल्कि कलियुग के अंतिम चरण में आएंगे |
जय श्री राम | हरी ॐ तत्सत |
देवराज इंद्र :पूण्य के लिए स्वर्ग
धर्मराज काल :पापी के लिए नरक
बोधीवृक्ष : उसी रात को ध्यान लगाते समय सिद्धार्थ को सच्चा बोध हुआ। वहीं उन्हें बुद्धत्व उपलब्ध हुआ। भारत के बिहार में बोधगया में आज भी वह वटवृक्ष विद्यमान है जिसे अब बोधीवृक्ष कहा जाता है।
यहीं सत्य ( हरि ॐ तत्सत ) का ज्ञान हुआ |
राजपुत्र सिद्धार्थ ने राजपाट त्याग कर सच्चा ज्ञान प्राप्त किया बुद्ध बने और सत्य( हरि ॐ तत्सत ) की शरणगति ली |
धर्म शरणम : धर्मराज मृत्यु के देवता का शरणगत होना |
संघम शरणम : सत्संग धर्मात्मा का शरणगति होना |
सत्यम शरणम : सत्य (हरि ॐ तत्सत या राम नाम सत्य है) की शरण गति होना |
अतः बुद्ध ने सत्संगत सद्मार्ग मृत्यु लोक के राजा धर्मराज और सत्यनारायण श्री राम की शरणगति होना ही जीव का लक्ष्य है |
अब भगवन कल्कि कलियुग के अंतिम चरण में आएंगे |
जय श्री राम | हरी ॐ तत्सत |
Complete untruth!!!
ReplyDelete