श्री गणेशाय नमः ।
नया सवेरा मूलनिवासी अवधारणा का सत्य आपके सामने रख रहा है । जिसका प्रमाण और परिणाम का लिंक भी आपको शेयर किया है ।
मूलनिवासी अवधारणा
क्या है मूलनिवासी दिवस ?
अमेरिका में आदिवासी जाति रहती थी । वहां पर आदिवासी जाति अंग्रेजो की गुलामी स्वीकार नहीं करती थी । वहां की आदिवासी जाति को नष्ट करने के लिए अंग्रेजो ने समाज तोड़ो शासन करो नीति के तहत । मूलनिवासी मुद्दा को उठाया । जिससे मूलनिवासी ने अमेरिका के निवासी के विरूद्ध लड़ाई छेड़ दिया । उसके बाद अंगेजो ने बड़ी बर्बरता के साथ वहाँ के मूलनिवासी का सफाया किया था ।
यह मूलनिवासी दिवस पश्चिम के गोरों की देन है. कोलंबस दिवस के रूप में भी मनाये जाने वाले इस दिन को वस्तुतः अंग्रेजों के अपराध बोध को स्वीकार करनें के दिवस के रूप में मनाया जाता है. अमेरिका से वहां के मूलनिवासियों को अतीव बर्बरता पूर्वक समाप्त कर देनें की कहानी के पश्चिमी पश्चाताप दिवस का नाम है मूलनिवासी दिवस. इस पश्चिमी फंडे मूलनिवासी दिवस के मूल में अमेरिका के मूलनिवासियों पर जो बर्बरतम व पाशविक अत्याचार हुए व उनकी सैकड़ों जातियों को जिस प्रकार समाप्त कर दिया गया वह मानव सभ्यता के शर्मनाक अध्यायों में शीर्ष पर हैं. इस सबकी चर्चा एक अलग व वृहद अध्ययन का विषय है जो यहां पर इस संक्षिप्त रूप में ही वर्णन किया है .
. In contrast to "the myth" Solomon quotes Las Casas who describes Spaniards driven by "insatiable greed" — "killing, terrorizing, afflicting, and torturing the native peoples" with "the strangest and most varied new methods of cruelty" and how systematic violence was aimed at preventing "[American] Indians from daring to think of themselves as human beings." The Spaniards "thought nothing of knifing [American] Indians by tens and twenties and of cutting slices off them to test the sharpness of their blades", wrote Las Casas. "My eyes have seen these acts so foreign to human nature, and now I tremble as I write" Solomon
wikipedia and historyisaweapon.
दलित नेता जोगेंद्र नाथ मंडल और मूलनिवासी
नया सवेरा मूलनिवासी अवधारणा का सत्य आपके सामने रख रहा है । जिसका प्रमाण और परिणाम का लिंक भी आपको शेयर किया है ।
मूलनिवासी अवधारणा
क्या है मूलनिवासी दिवस ?
अमेरिका में आदिवासी जाति रहती थी । वहां पर आदिवासी जाति अंग्रेजो की गुलामी स्वीकार नहीं करती थी । वहां की आदिवासी जाति को नष्ट करने के लिए अंग्रेजो ने समाज तोड़ो शासन करो नीति के तहत । मूलनिवासी मुद्दा को उठाया । जिससे मूलनिवासी ने अमेरिका के निवासी के विरूद्ध लड़ाई छेड़ दिया । उसके बाद अंगेजो ने बड़ी बर्बरता के साथ वहाँ के मूलनिवासी का सफाया किया था ।
यह मूलनिवासी दिवस पश्चिम के गोरों की देन है. कोलंबस दिवस के रूप में भी मनाये जाने वाले इस दिन को वस्तुतः अंग्रेजों के अपराध बोध को स्वीकार करनें के दिवस के रूप में मनाया जाता है. अमेरिका से वहां के मूलनिवासियों को अतीव बर्बरता पूर्वक समाप्त कर देनें की कहानी के पश्चिमी पश्चाताप दिवस का नाम है मूलनिवासी दिवस. इस पश्चिमी फंडे मूलनिवासी दिवस के मूल में अमेरिका के मूलनिवासियों पर जो बर्बरतम व पाशविक अत्याचार हुए व उनकी सैकड़ों जातियों को जिस प्रकार समाप्त कर दिया गया वह मानव सभ्यता के शर्मनाक अध्यायों में शीर्ष पर हैं. इस सबकी चर्चा एक अलग व वृहद अध्ययन का विषय है जो यहां पर इस संक्षिप्त रूप में ही वर्णन किया है .
. In contrast to "the myth" Solomon quotes Las Casas who describes Spaniards driven by "insatiable greed" — "killing, terrorizing, afflicting, and torturing the native peoples" with "the strangest and most varied new methods of cruelty" and how systematic violence was aimed at preventing "[American] Indians from daring to think of themselves as human beings." The Spaniards "thought nothing of knifing [American] Indians by tens and twenties and of cutting slices off them to test the sharpness of their blades", wrote Las Casas. "My eyes have seen these acts so foreign to human nature, and now I tremble as I write" Solomon
wikipedia and historyisaweapon.
जोगेंद्र नाथ मंडल ने जिन्ना का साथ दिया और मुसलमान को गले लगाया दलित- मुसलिम भाई भाई का नारा दिया था । मूलनिवासी जिंदाबाद कहा । जिन्ना के इसारे पर जोगेंद्र नाथ मंडल ने मुस्लिम - दलित साथ मिलकर भारत के खिलाफ जंग छेड़ दी । बंगाल, असम में सवर्णो की खून की होली खेली । कलकत्ता की धरती खून से लाल हो गयी । जिन्ना ने कहा हम बर्बाद भारत या अलग भारत चाहिए । जो आंदोलन का अंत बिहार में हुआ । बिहार में बखूबी इस खून की होली का बदला लिया गया । इस मुस्लिम - दलित आंदोलन के कारन भारत का विभाजन पूर्वी पाकिस्तान के नाम से हुआ जिसका आज नाम बांग्लादेश है ।
बाबा साहब और मूलनिवासी
भारत में जाति व्यवस्था अपनी दुर्गति व परस्पर विद्वेष के शिखर पर पहुंची यह बात विभिन्न अध्ययनों में स्थापित हो चुकी है. भारतीय समाज को जाति व्यवस्था के कुचक्र में बांटे बिना और उंच नीच का भेद उत्पन्न किये बिना भारत में शासन करना संभव नहीं था अतः मुगलों ने इस हेतु वह सब किया जो जो वे अपनी सत्ता व सेना के भय के आधार पर कर सकते थे. भारत के दलितों व जनजातीय समाज को द्रविड़ कहकर मूलनिवासी बताना व उनपर आर्यों के आक्रमण की षड्यंत्रकारी अवधारणा को स्वयं बाबा साहब अम्बेडकर सिरे से खारिज करते थे. बाबा साहब ने अपनी एक पुस्तक में लिखा है – “आर्य आक्रमण की अवधारणा पश्चिमी लेखकों द्वारा बनाई गई है जो बिना किसी प्रमाण के सीधे जमीन पर गिरती है. आर्य जातिवाद की अवधारणा केवल कल्पना है और कुछ भी नहीं. अम्बेडकर जी आगे लिखते हैं – इस पश्चिमी सिद्धांत का विश्लेषण करनें से मैं जिस निर्णय पर पहुंचा हूँ व निम्नानुसार है –
1. वेदों में आर्य जातिवाद का उल्लेख नहीं है. 2. वेदों में आर्यों द्वारा आक्रमण व उनके द्वारा उन दास व दस्युओं (दलित व जनजातीय) पर विजय प्राप्त करनें का कोई प्रमाण नहीं है, जिन्हें भारत का मूल निवासी माना जाता है. 3. ऐसा कोई प्रमाण नहीं है जो आर्यों, दासों व दस्युओं में नस्लीय भेद को प्रदर्शित करता हो. 4. वेद इस बात का भी समर्थन नहीं करते कि आर्यों का रंग दासों या दस्युओं से अलग था. स्पष्ट है कि आज बाबा साहब के नाम पर जो मूलनिवासी वाद का नया वितंडा खड़ा किया जा रहा है
बाबा साहब अम्बेडकर के धर्म परिवर्तन के समय दो धर्मों; इस्लाम एवं इसाईयत में उपजी निराशा में है. ईसाइयत व इस्लाम धर्म नहीं अपनानें को लेकर बाबा साहब के विचार सुस्पष्ट व सुउच्चारित रहें हैं, उन्होंने सस्वर इस बात को बार बार कहा था कि उनकें अनुयायी हर प्रकार से इस्लाम व ईसाइयत से दूर रहें. किंतु आज मूलनिवासी वाद के नाम पर भारत का दलित व जनजातीय समाज एक बड़े पश्चिमी षड्यंत्र का शिकार हो रहा है. एक बड़े और एकमुश्त धर्म परिवर्तन की आस में बैठे ईसाई धर्म प्रचारक तब बहुत ही निराश व हताश हो गए थे जब बाबासाहब अम्बेडकर ने किसी भारतीय भूमि पर जन्में व भारतीय दर्शन आधारित धर्म में जानें का निर्णय अपनें अनुयाइयों को दिया था. किन्तु पश्चिम में या ईसाईयों में उपजी तबकी यह निराशा बाद में भी प्रयासरत रही व अपने धन, संसाधनों, बुद्धि, कौशल के आधार पर सतत षड्यंत्रों को बुननें में लगी रही. पश्चिमी इसाई धर्म प्रचारकों के इसी षड्यंत्र का क्रम है मूलनिवासी वाद का जन्म!
मूलनिवासी का वैज्ञानिक अवधारणा ।
वैज्ञानिक अध्ययनों, शिलालेखों, जीवाश्मों, श्रुतियों, पृथ्वी की सरंचनात्मक विज्ञान, जेनेटिक अध्ययनों आदि के आधार पर जो तथ्य सामनें आते हैं उनके अनुसार पृथ्वी पर प्रथम जीव की उत्पत्ति गोंडवाना लैंड पर हुई थी जिसे तब पेंजिया कहा जाता था और जो गोंडवाना व लारेशिया को मिलाकर बनता था. गोंडवाना लैंड के अमेरिका, अफ्रीका, अंटार्कटिका, आस्ट्रेलिया एवं भारतीय प्रायद्वीप में विखंडन के पश्चात यहां के निवासी अपने-अपने क्षेत्र में बंट गए थे. जीवन का विकास सर्वप्रथम भारतीय दक्षिण प्रायद्वीप में नर्मदा नदी के तट पर हुआ जो विश्व की सर्वप्रथम नदी है. यहां बड़ी मात्रा में डायनासोर के अंडे व जीवाश्म प्राप्त होते रहें हैं. भारत के सबसे पुरातन आदिवासी गोंडवाना प्रदेश के गोंड कोरकू समाज की है । प्राचीन कथाओं में यह तथ्य कई बार आता है.
अतः इससे स्पष्ट होता है की मानव की उत्त्पति नर्मदा नदी के तट पर हुआ है । जहाँ भारतीय मानव सभ्यता का विकास हुआ । अतः सभी यहाँ के मूलनिवासी है।आप सच्चाई जानने के लिए वैज्ञानिक तथ्य के लिंक शेयर कर रहा हूँ ।
wikipedia गोंडवाना महाद्वीप एनीमेशन गोंडवाना
पश्चिमी देश और मूलनिवासी अवधारणा
अमेरिका में इस मूलनिवासी अवधारणा का परिणाम से उत्साहित पश्चिमी धर्मान्तर संघटन समाज में मार्क्सवादी बुद्धिजीवी और मार्क्सवादी राजनीतिज्ञो द्वारा समाज में भारतीय समाज में मूलनिवासी अवधारणा का जहर बंटवाने में कामयाब होता नजर आ रहा है ।
पश्चिम में या ईसाईयों में उपजी तबकी यह निराशा बाद में भी प्रयासरत रही व अपने धन, संसाधनों, बुद्धि, कौशल के आधार पर सतत षड्यंत्रों को बुननें में लगी रही. पश्चिमी इसाई धर्म प्रचारकों के इसी षड्यंत्र का क्रम है मूलनिवासी वाद का जन्म! भारतीय दलितों व आदिवासियों को पश्चिमी अवधारणा से जोड़नें व भारतीय समाज में विभाजन के नए केंद्रों की खोज इस मूलनिवासी वाद के नाम पर प्रारंभ कर दी गई है. इस पश्चिमी षड्यंत्र के कुप्रभाव में आकर कुछ दलित व जनजातीय नेताओं ने अपनें आन्दोलनों में यह कहना प्रारंभ कर दिया है कि भारत के मूल निवासियों (दलितों) पर यूरेशिया से आकर आर्यों ने हमला किया और उन्हें अपना गुलाम बनाकर हिन्दू वर्ण व्यवस्था को लागू किया. यूरेशिया की उत्तर ओर आर्कटिक महासागर, पच्छिम ओर अटलांटिक महासागर, दक्खिन ओर भूमध्य सागर और हिन्द महासागर और पूरुब ओर प्रशांत महासागर है।
यूरेशिया में विशाल आकार की वजह से बहुत भौगोलिक विविधता मिलेगी।
यूरेशिया का क्षेत्रफल लगभग 52,990,000 वर्ग किलोमीटर बा ज़मीन है पूरा पृथ्वी क जमीनी हिस्सा क 36.2% है। यूरेशिया में पुरा दुनिया क लगभग 35% लोग रहते थे (जनसंख्या ४.६ बिलियन)। मनुष्य इस भूभाग पर अबसे करीब 60,000 से 125,000 हजार साल पहिले रहा करते थे।
बाबा साहब और मूलनिवासी
भारत में जाति व्यवस्था अपनी दुर्गति व परस्पर विद्वेष के शिखर पर पहुंची यह बात विभिन्न अध्ययनों में स्थापित हो चुकी है. भारतीय समाज को जाति व्यवस्था के कुचक्र में बांटे बिना और उंच नीच का भेद उत्पन्न किये बिना भारत में शासन करना संभव नहीं था अतः मुगलों ने इस हेतु वह सब किया जो जो वे अपनी सत्ता व सेना के भय के आधार पर कर सकते थे. भारत के दलितों व जनजातीय समाज को द्रविड़ कहकर मूलनिवासी बताना व उनपर आर्यों के आक्रमण की षड्यंत्रकारी अवधारणा को स्वयं बाबा साहब अम्बेडकर सिरे से खारिज करते थे. बाबा साहब ने अपनी एक पुस्तक में लिखा है – “आर्य आक्रमण की अवधारणा पश्चिमी लेखकों द्वारा बनाई गई है जो बिना किसी प्रमाण के सीधे जमीन पर गिरती है. आर्य जातिवाद की अवधारणा केवल कल्पना है और कुछ भी नहीं. अम्बेडकर जी आगे लिखते हैं – इस पश्चिमी सिद्धांत का विश्लेषण करनें से मैं जिस निर्णय पर पहुंचा हूँ व निम्नानुसार है –
1. वेदों में आर्य जातिवाद का उल्लेख नहीं है. 2. वेदों में आर्यों द्वारा आक्रमण व उनके द्वारा उन दास व दस्युओं (दलित व जनजातीय) पर विजय प्राप्त करनें का कोई प्रमाण नहीं है, जिन्हें भारत का मूल निवासी माना जाता है. 3. ऐसा कोई प्रमाण नहीं है जो आर्यों, दासों व दस्युओं में नस्लीय भेद को प्रदर्शित करता हो. 4. वेद इस बात का भी समर्थन नहीं करते कि आर्यों का रंग दासों या दस्युओं से अलग था. स्पष्ट है कि आज बाबा साहब के नाम पर जो मूलनिवासी वाद का नया वितंडा खड़ा किया जा रहा है
बाबा साहब अम्बेडकर के धर्म परिवर्तन के समय दो धर्मों; इस्लाम एवं इसाईयत में उपजी निराशा में है. ईसाइयत व इस्लाम धर्म नहीं अपनानें को लेकर बाबा साहब के विचार सुस्पष्ट व सुउच्चारित रहें हैं, उन्होंने सस्वर इस बात को बार बार कहा था कि उनकें अनुयायी हर प्रकार से इस्लाम व ईसाइयत से दूर रहें. किंतु आज मूलनिवासी वाद के नाम पर भारत का दलित व जनजातीय समाज एक बड़े पश्चिमी षड्यंत्र का शिकार हो रहा है. एक बड़े और एकमुश्त धर्म परिवर्तन की आस में बैठे ईसाई धर्म प्रचारक तब बहुत ही निराश व हताश हो गए थे जब बाबासाहब अम्बेडकर ने किसी भारतीय भूमि पर जन्में व भारतीय दर्शन आधारित धर्म में जानें का निर्णय अपनें अनुयाइयों को दिया था. किन्तु पश्चिम में या ईसाईयों में उपजी तबकी यह निराशा बाद में भी प्रयासरत रही व अपने धन, संसाधनों, बुद्धि, कौशल के आधार पर सतत षड्यंत्रों को बुननें में लगी रही. पश्चिमी इसाई धर्म प्रचारकों के इसी षड्यंत्र का क्रम है मूलनिवासी वाद का जन्म!
मूलनिवासी का वैज्ञानिक अवधारणा ।
वैज्ञानिक अध्ययनों, शिलालेखों, जीवाश्मों, श्रुतियों, पृथ्वी की सरंचनात्मक विज्ञान, जेनेटिक अध्ययनों आदि के आधार पर जो तथ्य सामनें आते हैं उनके अनुसार पृथ्वी पर प्रथम जीव की उत्पत्ति गोंडवाना लैंड पर हुई थी जिसे तब पेंजिया कहा जाता था और जो गोंडवाना व लारेशिया को मिलाकर बनता था. गोंडवाना लैंड के अमेरिका, अफ्रीका, अंटार्कटिका, आस्ट्रेलिया एवं भारतीय प्रायद्वीप में विखंडन के पश्चात यहां के निवासी अपने-अपने क्षेत्र में बंट गए थे. जीवन का विकास सर्वप्रथम भारतीय दक्षिण प्रायद्वीप में नर्मदा नदी के तट पर हुआ जो विश्व की सर्वप्रथम नदी है. यहां बड़ी मात्रा में डायनासोर के अंडे व जीवाश्म प्राप्त होते रहें हैं. भारत के सबसे पुरातन आदिवासी गोंडवाना प्रदेश के गोंड कोरकू समाज की है । प्राचीन कथाओं में यह तथ्य कई बार आता है.
अतः इससे स्पष्ट होता है की मानव की उत्त्पति नर्मदा नदी के तट पर हुआ है । जहाँ भारतीय मानव सभ्यता का विकास हुआ । अतः सभी यहाँ के मूलनिवासी है।आप सच्चाई जानने के लिए वैज्ञानिक तथ्य के लिंक शेयर कर रहा हूँ ।
wikipedia गोंडवाना महाद्वीप एनीमेशन गोंडवाना
पश्चिमी देश और मूलनिवासी अवधारणा
अमेरिका में इस मूलनिवासी अवधारणा का परिणाम से उत्साहित पश्चिमी धर्मान्तर संघटन समाज में मार्क्सवादी बुद्धिजीवी और मार्क्सवादी राजनीतिज्ञो द्वारा समाज में भारतीय समाज में मूलनिवासी अवधारणा का जहर बंटवाने में कामयाब होता नजर आ रहा है ।
पश्चिम में या ईसाईयों में उपजी तबकी यह निराशा बाद में भी प्रयासरत रही व अपने धन, संसाधनों, बुद्धि, कौशल के आधार पर सतत षड्यंत्रों को बुननें में लगी रही. पश्चिमी इसाई धर्म प्रचारकों के इसी षड्यंत्र का क्रम है मूलनिवासी वाद का जन्म! भारतीय दलितों व आदिवासियों को पश्चिमी अवधारणा से जोड़नें व भारतीय समाज में विभाजन के नए केंद्रों की खोज इस मूलनिवासी वाद के नाम पर प्रारंभ कर दी गई है. इस पश्चिमी षड्यंत्र के कुप्रभाव में आकर कुछ दलित व जनजातीय नेताओं ने अपनें आन्दोलनों में यह कहना प्रारंभ कर दिया है कि भारत के मूल निवासियों (दलितों) पर यूरेशिया से आकर आर्यों ने हमला किया और उन्हें अपना गुलाम बनाकर हिन्दू वर्ण व्यवस्था को लागू किया. यूरेशिया की उत्तर ओर आर्कटिक महासागर, पच्छिम ओर अटलांटिक महासागर, दक्खिन ओर भूमध्य सागर और हिन्द महासागर और पूरुब ओर प्रशांत महासागर है।
यूरेशिया में विशाल आकार की वजह से बहुत भौगोलिक विविधता मिलेगी।
यूरेशिया का क्षेत्रफल लगभग 52,990,000 वर्ग किलोमीटर बा ज़मीन है पूरा पृथ्वी क जमीनी हिस्सा क 36.2% है। यूरेशिया में पुरा दुनिया क लगभग 35% लोग रहते थे (जनसंख्या ४.६ बिलियन)। मनुष्य इस भूभाग पर अबसे करीब 60,000 से 125,000 हजार साल पहिले रहा करते थे।
लिंक पढ़े https://en.wikipedia.org/wiki/Eurasia
भारत में जो भी जातिगत विद्वेष व भेदभाव चला वह जाति व जन्म आधारित है क्षेत्र आधारित नहीं. वस्तुतः इस मूलनिवासी फंडे पर आधारित यह नई विभाजनकारी रेखा एक नए षड्यंत्र के तहत भारत में लाई जा रही है जिससे भारत को सावधान रहनें की आवश्यकता है. यह भी ध्यान देना चाहिए कि भारत में सामाजिक न्याय का व सामाजिक समरसता का जो नया सद्भावी वातावरण अपनी शिशु अवस्था से होकर युवावस्था की ओर बढ़ रहा है; उसे समाप्त करनें का यह पश्चिमी षड्यंत्र है ।
भारत में जो भी जातिगत विद्वेष व भेदभाव चला वह जाति व जन्म आधारित है क्षेत्र आधारित नहीं. वस्तुतः इस मूलनिवासी फंडे पर आधारित यह नई विभाजनकारी रेखा एक नए षड्यंत्र के तहत भारत में लाई जा रही है जिससे भारत को सावधान रहनें की आवश्यकता है. यह भी ध्यान देना चाहिए कि भारत में सामाजिक न्याय का व सामाजिक समरसता का जो नया सद्भावी वातावरण अपनी शिशु अवस्था से होकर युवावस्था की ओर बढ़ रहा है; उसे समाप्त करनें का यह पश्चिमी षड्यंत्र है ।
correct
ReplyDelete